नजरिया. कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के नेताओं के बीच नौवें दौर की वार्ता 15 जनवरी 2021 होनी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनों पर रोक लगाए जाने और चार सदस्यीय कमेटी के गठन के बाद अगली बैठक होगी या नहीं होगी, कोई नहीं जानता? अभी तो चार सदस्यीय कमेटी से भी एक सदस्य ने दूरी बना ली है, तो आगे क्या होगा?

वैसे भी केंद्र के साथ आठ दौर की बातचीत से किसानों को कोई फायदा नहीं मिला है और जहां किसान कृषि कानून खत्म करना चाहते हैं, वहीं केन्द्र सरकार कानूनों में संशोधन के लिए तो तैयार है, पर कानून रद्द नहीं करेगी, तो बातचीत का क्या मतलब?

उल्लेखनीय है कि किसानों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सामने जाने से इनकार कर दिया है, क्योंकि किसानों का मानना है कि कमेटी के चारों सदस्य सरकार समर्थक हैं और इसी वजह से उनकी बातें नहीं सुनी जाएंगी. 

हालांकि, खबरें हैं कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि सरकार खुले मन के साथ 15 जनवरी 2021 को किसान नेताओं के साथ बातचीत करने को तैयार है. उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के साथ शुक्रवार को नौवें दौर की वार्ता में सकारात्मक चर्चा की उम्मीद है. लेकिन, किसान जाएंगे या नहीं, इस पर प्रश्नचिन्ह है?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की कानूनों पर रोक अप्रत्यक्षरूप से सरकार के लिए राहतकारी है, क्योंकि इससे सरकार को कानून रद्द करने के बजाय संशोधन का अवसर मिल सकता है और शायद यही वजह है कि किसानों ने ससम्मान कमेटी की भूमिका को अस्वीकार कर दिया है.

सियासी सयानों का मानना है कि किसानों की जिद्द समझ में आती है क्योंकि कानून बनाना या समाप्त करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है, लेकिन सरकार की जिद्द समझ से परे है, क्योंकि केन्द्र सरकार के पास बहुमत और अधिकार हैं, वह इन कानूनों को रद्द करके फिर से नए कानून बना सकती है, तो क्या सरकार को अपने बहुमत पर भरोसा नहीं है?

कृषि कानूनों पर अड़े रहना मोदी सरकार को भारी पड़ सकता है?
https://www.palpalindia.com/2021/01/13/Delhi-Farmer-Protest-Agricultural-laws-Modi-government-political-Loss-Supreme-court-farmer-leader-news-in-hindi-23125.html