नजरिया. कृषि क़ानूनों पर अड़े रहना मोदी सरकार को भारी पड़ सकता है, क्योंकि यह कोई चुनाव नहीं है, जिसमें सियासी प्रबंधन के दम पर विरोधियों को मात दे दी जाएगी. किसान नेताओं के बयान से साफ है कि किसान सरकार की सारी चतुराई को ठीक से समझते हैं और वे किसी जाल में नहीं उलझेंगे.

ख़बरें हैं कि संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सदस्यों को सरकार समर्थक बताते हुए कहा कि यह आंदोलन को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश है और कमेटी के सदस्य भरोसेमंद नहीं हैं,

क्योंकि उन्होंने लेख लिखे हैं कि कृषि कानून किस तरह से किसानों के हित में हैं. कमेटी का गठन केंद्र सरकार की शरारत है. लिहाजा, किसान नेताओं ने ऐलान किया कि वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे और इसे जारी रखेंगे.

यही नहीं, किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने प्रेस से कहा कि हम किसी भी कमेटी के सामने उपस्थित नहीं होंगे. हमारा आंदोलन तीनों कृषि क़ानूनों के खिलाफ है. हमने सुप्रीम कोर्ट से कमेटी बनाने का कभी अनुरोध नहीं किया और इसके पीछे सरकार का हाथ है. किसान नेताओं का कहना है कि कमेटी में शामिल लोगों के जरिए सरकार यह चाहती है कि कानून रद्द ना हो.

इतना ही नहीं, उनका कहना है कि 26 जनवरी 2021 का कार्यक्रम अपने तय समय के अनुसार होगा. वह शांतिपूर्ण होगा और उसके बाद भी आंदोलन जारी रहेगा.

जाहिर है, खबरों ने यह साफ कर दिया है कि किसानों को किसी भी तरीके से न तो बदनाम किया जा सकता है और न ही उलझाया जा सकता है.

इसके अलावा, किसान कृषि कानून रद्द करने की मांग पर इतना आगे बढ़ चुके हैं कि उनके लिए अब पीछे हटना संभव नहीं है, इसलिए इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया जाए और किसान हित में जल्दी-से-जल्दी समाधान तलाशा जाए, सरकार के लिए यही बेहतर होगा!

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