हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र मास प्रारम्भ, जानें इस महीने की विशेषताएं

हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र मास प्रारम्भ, जानें इस महीने की विशेषताएं

प्रेषित समय :20:44:11 PM / Wed, Mar 27th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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होली के तुरंत बाद चैत्र मास का प्रारंभ हो जाता है। चैत्र हिन्दू धर्म का प्रथम महीना है।

चित्रा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने ककारण इसका नाम चैत्र पड़ा (चित्रानक्षत्रयुक्ता पौर्णमासी यत्र सः)

इस वर्ष 26 मार्च 2024 (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) से चैत्र का आरम्भ हो चूका है।

चैत्र मास को मधु मास के नाम से जाना जाता है।

इस मास में बसंत ऋतु का यौवन पृथ्वी पर देखने को मिलता है।

चैत्र में रोहिणी और अश्विनी शून्य नक्षत्र हैं इनमें कार्य करने से धन का नाश होता है।

चैत्र मास में दोनों पक्ष की अष्टमी और दोनों पक्ष की नवमी मास शून्य तिथियां होती हैं।

इन तिथियों शुभ काम नहीं करना चाहिए। कुछ लोग इन दिनों में गृहप्रवेश कर लेते हैं जो अमङ्गलकारी होता है।

चैत्र मास में गृह प्रवेश करने से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं ।

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १०६ के अनुसार---

*“चैत्रं तु नियतो मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्।*

*सुवर्णमणिमुक्ताढ्ये कुले महति जायते।।”*

जो नियम पूर्वक रहकर चैत्रमास को एक समय भोजन करते बिताता है, वह सुवर्ण, मणि और मोतियों से

सम्पन्न महान कुल में जन्म लेता है ।

चैत्र के महीने में गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए जिसके फलस्वरूप कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।

चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है। धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान ‘अलौने व्रत’ (बिना नमक के व्रत) करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), गुर्दा (किडनी) आदि के रोग नहीं होते।

शिवपुराण के अनुसार---

चैत्र में गौ का दान करने से कायिक, वाचिक तथा मानसिक पापों का निवारण होता है।

चैत्र मास में ब्राह्मण भोजन, दक्षिणा और उनको ताम्बूल देने का अतिविशेष महत्व है।

चैत्र मास में विष्णु की प्रीति के लिए ब्राह्मणों को भाँति-भाँति के वस्त्र, शय्या एवं आसनों का दान करना चाहिए।

यथा👇🏻👇🏻👇🏻

*"चैत्रे चित्राणि वस्त्राणि शयनान्यासनानि च।*

*विष्णोः प्रीत्यर्थमेतानि देयानि ब्राह्मणेष्वथ।।*

वामनपुराण

देव प्रतिष्ठा के लिये चैत्र मास शुभ है। परन्तु मुहूर्त देखना अनिवार्य है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रपादान व्रत आरम्भ किया जाता है प्रपादान का अर्थ है जलदान।

इस व्रत में सभी प्राणियों (मनुष्य, पशु, पक्षी आदि) को जल देना चाहिये। प्रतिदिन लगातार 04 महीने तक।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्ष का शुभारम्भ होता है। हिन्दू नववर्ष के चैत्र मास से ही शुरू होने के पीछे

पौराणिक मान्यता है कि भगवान ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी।

ताकि सृष्टि निरंतर प्रकाश की ओर बढ़े।

यथा👇🏻👇🏻👇🏻

*"चैत्रमासि जगद् ब्रह्मा स सर्वा प्रथमेऽवानि।*

*शुक्ल पक्षे समग्रं तत - तदा सूर्योदय सति।।"*

(ब्रह्मपुराण)

नारद पुराण में भी कहा गया है की चैत्रमास के शुक्लपक्ष में प्रथमदिं सूर्योदय काल में ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण जगत की सृष्टि की थी।

यथा👇🏻👇🏻👇🏻

*"चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससज प्रथमेऽहनि।*

*शुक्लपक्षे समग्रं वै तदा सूर्योदये सति।।"*

☝🏻 इस वर्ष नवसंवत्सर तथा नवरात्रारम्भ 09 अप्रैल 2024 को हो रहा है ।

*इसलिए विशेष है चैत्र---*

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।

यथा👇🏻👇🏻👇🏻

*“कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा।*

*रेवत्यां योग-विष्कुम्भे दिवा द्वादश-नाड़िका:।।*

*मत्स्यरूपकुमार्यांच अवतीर्णो हरि: स्वयम्।।”*

चैत्र शुक्ल तृतीया तथा चैत्र पूर्णिमा मन्वादि तिथियाँ हैं। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है।

भविष्यपुराण में चैत्र शुक्ल से विशेष सरस्वती व्रत का विधान वर्णित है

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र मनाये जाते हैं जिसमें व्रत रखने के साथ माँ जगतजननी की पूजा का विशेष विधान है।

चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयन्ती मनाई जाती है।

युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से माना जाता है।

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को हुआ था।

युगाब्द (युधिष्ठिर संवत) का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को माना जाता है।

उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को किया गया था।

चैत्र मास में ऋतु परिवर्तन होता है और हमारे आयुर्वेदाचार्यों ने इस मास को स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना है। आज बताते हैं एक ऐसी बात जो आपके अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी देगा।

*"पारिभद्रस्य पत्राणि कोमलानि विशेषत:।*

*सुपुष्पाणि समानीय चूर्णंकृत्वा विधानत:।*

*मरीचिं लवणं हिंगु जीरणेण संयुतम्।*

*अजमोदयुतं कुत्वा भक्षयेद्रोगशान्तये।*

नीम के कोमल पत्ते, पुष्प, काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा मिश्री और अजवाइन मिलाकर चूर्ण बनाकर चैत्र में सेवन करने से संपूर्ण वर्ष रोग से मुक्त रहते हैं। नीम के कोमल पत्तों को पानी में घोलकर सिल-बट्टे या मिक्सी में पीसकर इसकी लुगदी तैयार की जाती है। इसमें थोड़ा नमक और कुछ काली मिर्च डालकर उसे ग्राह्म बनाया जाता है। इस लुगदी को कपड़े में रखकर पानी में छाना जाता है। छाना हुआ पानी गाढ़ा या पतला कर प्रातः खाली पेट एक कप से एक गिलास तक सेवन करना चाहिए। यह रस एंटीसेप्टिक, एंटीबेक्टेरियल, एंटीवायरल, एंटीवर्म, एंटीएलर्जिक, एंटीट्यूमर आदि गुणों का खजाना है। ऐसे प्राकृतिक सर्वगुण संपन्न अनमोल नीम रूपी स्वास्थ्य-रस का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। वैसे तो आप प्रतिदिन पाँच ताजा नीम की पत्तियाँ चबा लें तो अच्छा है। मधुमेह रोगियों द्वारा प्रतिदिन इसका सेवन करने पर रक्त सर्करा का स्तर कम हो जाता है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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