शिव और शंकर में भेद-आप शिव के उपासक हैं या शंकर के ?

शिव और शंकर में भेद-आप शिव के उपासक हैं या शंकर के ?

प्रेषित समय :20:22:30 PM / Mon, Mar 20th, 2023

वैसे भी कौन मानेगा कि शिव और शंकर अलग अलग है. हमें तो बचपन से यही बताया गया है ना कि शिवशंकर एक ही है. यहाँ तक की दोनों नाम हम अक्सर साथ में ही लेते है.
अगर हम आपको ये कहे कि शिव और शंकर ना सिर्फ अलग अलग है बल्कि शंकर की उत्पत्ति भी शिव से ही हुई है. शिव ही प्रारंभ है और शिव ही अंत है.
शिव और शंकर में सबसे बड़ा और समझने में आसान अंतर दोनों की प्रतिमा में है.
शंकर की प्रतिमा जहाँ पूर्ण आकार में होती है वही शिव की प्रतिमा लिंगम रूप में होती है या अंडाकार अथवा अंगूठे के आकार की होती है.

महादेव शंकर 
शंकर भी ब्रह्मा और विष्णु के तरह देव है और सूक्ष्म शरीरधारी है. ब्रम्हा और विष्णु की तरह शंकर भी सूक्ष्म लोक में रहते है. शंकर भी विष्णु और ब्रम्हा की तरह ही परमात्मा शिव की ही रचना है. शंकर को महादेव भी कहा जाता है परन्तु शंकर को परमात्मा नहीं कहा जाता क्योंकि शंकर का कार्य केवल संहार है. पालन एवं निर्माण शंकर का कर्तव्य नहीं है.

शिव 
शंकर से अलग शिव परमात्मा है. शिव का कोई शरीर नहीं कोई रूप नहीं है. शिव, शंकर, ब्रह्मा और विष्णु की तरह सूक्ष्म लोक में नहीं रहते. उनका निवास तो सूक्ष्म लोक से परे है. शिव ही ब्रह्मा विष्णु शंकर त्रिदेवों के रचयिता है. शिव ही विश्व का निर्माण, कल्याण और विनाश करते है जिसका माध्यम ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते है.
देखा आपने की कैसे एक दुसरे से भिन्न है शिव और शंकर. अब आपको आसानी होगी ये जानने की कि किसकी उपासना करते है आप बात को आगे बढ़ाते हुए आपको एक और जानकारी देते है.
सबका जन्म दिन होता है क्या आपने कभी सोचा है कि शिव ही एक मात्र ऐसे है जिनके जन्मदिन को शिवरात्रि कहा जाता है. इसका भी एक कारण है रात्रि का मतलब शाब्दिक नहीं है यहाँ रात्रि का अर्थ कुछ और है.
यहाँ रात्रि से अभिप्राय ये है कि पाप, अन्याय, बुराइयाँ. जब काल के साथ साथ मनुष्य नीचता की और बढ़ता चला गया उस समय की तुलना रात्रि से की गयी है और उस गहरी रात्रि को शिव प्रकट होते है अर्थात जन्म लेते है.
शिव के जन्म की रात्रि के बाद रात्रि अर्थात अन्धकार का अंत हो जाता है और मनुष्यता एक बार फिर उन्नत हो जाती है.
आओ हम आपको बताते हैं कि भगवान शिव के बारे में समाज में किस तरह की भ्रांतियां फैला रखी और उस भ्रांति को अभी तक बढ़ावा दिया जा रहा है.

क्या शिवलिंग का अर्थ शिव का शिश्न है?
यह दुख की बात है कि बहुत से लोगों ने कालांतर में योनि और शिश्न की तरह शिवलिंग की आकृति को गढ़ा और वे उसके चित्र भी फेसबुक और व्हाट्सऐप पर पोस्ट करते रहते हैं. वे इसके लिए कुतर्क भी देते रहते हैं. उक्त सभी लोगों को मरने के बाद इसका जवाब देना होगा, क्योंकि शिव का अपमान करने वाला किसी भी परिस्थिति में बच नहीं सकता. शिव से ही सभी धर्म है और शिव से ही प्रलय भी.
दरअसल, शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरूप. शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है. जिस तरह भगवान विष्णु का प्रतीक चिन्ह शालिग्राम है उसी तरह भगवान शंकर का प्रतीक चिन्ह शिवलिंग है. इस पींड की आकृति हमारी आत्मा की ज्योति की तरह होती है.
स्कन्दपुराण- में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है. धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है. वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड (ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग है. पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि. लेकिन बौद्धकाल में धर्म और धर्मग्रंथों के बिगाड़ के चलते लिंग को गलत अर्थों में लिया जाने लगा जो कि आज तक प्रचलन में है.

ब्रह्मांड का प्रतीक ज्योतिर्लिंग
 शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है. यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है, कुछ लोग इसे यौनांगों के अर्थ में लेते हैं और उन लोगों ने शिव की इसी रूप में पूजा की और उनके बड़े-बड़े पंथ भी बन गए हैं. ये वे लोग हैं जिन्होंने धर्म को सही अर्थों में नहीं समझा और अपने स्वार्थ के अनुसार धर्म को अपने सांचे में ढाला.
शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप. शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है. स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है.
शिव की दो काया है. एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है. शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है. लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है. संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न. इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है. शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न.

ज्योतिर्लिंग : 
ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं. वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के 12 खंड हैं. शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है.

क्या भांग और गांजा पीते हैं भगवान शंकर?
इसका जवाब है नहीं. शिव पुराण सहित किसी भी ग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा है कि भगवान शिव या शंकर भांग, गांजा आदि का सेवन करते थे. बहुत से लोगों ने भगवान शिव के ऐसे ‍भी चित्र बना लिए हैं जिसमें वे चिलम पीते हुए नजर आते हैं. यह दोनों की कृत्य भगवान शंकर का अपमान करने जैसा है. यह भगवान शंकर की छवि खराब किए जाने की साजिश है.
यदि आपके घर, मंदिर या अन्य किसी भी स्थान पर भगवान शंकर का ऐसा चित्र या मूर्ति लगा है जिसमें वे चिलम पीते या भांग का सेवन करते हुए नजर आ रहे हैं तो उसे आप तुरंत ही हटा दें तो अच्‍छा है. यह भगवान शंकर का घोर अपमान है.
यह तो छोड़िये बड़े बड़े पंडित भी शिव के मंदिरों में जब भांग का अभिषेक करते हैं तो फिर अन्य किसी पर दोष देने का कोई मतलब नहीं. ये सभी पंडित नर्क की आग में जलने वाले हैं. यह तो अब आम हो चला है कि शिवरात्रि या महाशिवरात्रि के दिन लोग भांग घोटकर पीते हैं. किसी को भांग पीने की मनाही नहीं हैं लेकिन शिव के नाम पर पीना उनका अपमान ही है.
उत्तर :- भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना जरूरी है. उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं. लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं. एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें इन्वॉल्व होते हैं. वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं. दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाओं को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है. यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पूज्जनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती.
इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू किसी को नहीं मार रहा है. यह सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं. अब तो यह बस खेल है. बर्बरीक से जब महाभारत का वर्णन पूछा गया तो उसने कहा कि मुझे तो दोनों ही ओर से श्रीकृष्ण ही यौद्धाओं को मारते हुए नजर आ रहे थे. इसी तरह कहा जाता है क सहदेव को महाभारत का परिणाम मालूम था लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें चुप रहने के लिए कहा था. यही तो लीला है.

क्या शिव-पार्वती हैं 'आदम और ईव'?
भगवान शंकर को आदिदेव भी कहा जाता है. शंकर के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय. जैसा कि कहा गया है कि आदम के दो पुत्र कैन और हाबिल थे. कैन बुरा और हाबिल अच्छा. पार्वती ही क्या ईव है. कुछ विद्वानों का मानना है कि स्वायंभुव मनु और शतरूपा ही आदम और हव्वा थे.
शिव का पहला विवाह राजा दक्ष की पुत्री सती से हुआ था जो आग में कूद कर भस्म हो गई थी. उनका दूसरा विवाह पर्वतराज हिमालय की पुत्री उमा से हुआ जिन्हें पार्वती कहा जाता है. पार्वती से उनको एक पुत्र मिला.
प्रमुख रूप से शिव के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय. गणेशजी की उत्पत्ति कैसे हुई यह सभी जानते हैं. यह शिव और पर्वती के मिलन से नहीं जन्में. शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय का जन्म शिव-पार्वती मिलन से हुआ. 
शिव का एक तीसरा पुत्र था जिसका नाम विद्युत्केश था. विद्युत्केश अनाथ बालक था जिसे शिव और पार्वती ने पालपोस कर बड़ा किया था. इसका नाम उन्होंने सुकेश रखा था. शिवजी का एक चौथा पुत्र था जिसका नाम था जलंधर. भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ. जलंधर शिव का सबसे बड़ा दुश्मन बना. 
इस तरह शिव के और भी कई पुत्र थे. जैसे अंधक, सास्तव, भूमा और खुजा. शिव की कथा और आदम की कथा में जरा भी मेल नहीं है.
माना जाता है कि प्रत्येक काल में अलग-अलग रुद्र हुए हैं. इस तरह 12 रुद्र हुए. शिव निकारार सत्य है तो शंकर साकार. पुराणों में ऐसी कई बातों का उल्लेख है जिसको शंकर से जोड़ दिया गया है. जैसे भैरव पीते हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि शंकर भी पीते हैं.

शिव, शंकर, महादेव : शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है. लोग कहते हैं– शिव, शंकर, भोलेनाथ. इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं. असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं. शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है. कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है.
शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विलय के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की. इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना. भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है. इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है.

12 रुद्र :-  पहले महाकाल, दूसरे तारा, तीसरे बाल भुवनेश, चौथे षोडश श्रीविद्येश, पांचवें भैरव, छठें छिन्नमस्तक, सातवें द्यूमवान, आठवें बगलामुख, नौवें मातंग, दसवें कमल. अन्य जगह पर रुद्रों के नाम:- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है.
अन्य रुद्र या शंकर के अंशावतार- इन अवतारों के अतिरिक्त शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है. हनुमान ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं.
भैरव :- भैरव भी कई हुए हैं जिसमें से काल भैरव और बटुक भैरव दो प्रमुख हैं. माना जाता है कि महेश (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं. रुद्र देवता शिव की पंचायत के सदस्य हैं. वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला.
शिव के द्वारपाल:-  नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल.
शिव पंचायत के देवता:- 1.सूर्य, 2.गणपति, 3.देवी, 4.रुद्र और 5.विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं.
शिव पार्षद:-- जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं ‍उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि ‍शिव के पार्षद हैं. यहां देखा गया है कि नंदी और भृंगी गण भी है, द्वारपाल भी है और पार्षद भी.
शिव गण:- भगवान शिव के गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है. उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र. जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है. भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव. दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया. देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया.
सप्तऋषि गण शिव के शिष्य हैं:- शिव ने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए. वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं. अब यदि उक्त ऋषियों या उनके परंपरा के किसी महान ऋषि को हम शिव या उनका अवतार ही मानने लगे और उनका गुणगान करने लगे तो यह उचित नहीं होगा. इस तरह भ्रम का विस्तार ही होता है. अंगिरा ऋषि को शिव का सक्षात् रूप माना जाता है. उसी तरह हम यदि भैरव को भी शिव माने तो यह पुराणिक विस्तार ही है.
देवों के देव महादेव :- देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी. ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे. दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव. वे दैत्यों, दानवों और भू
Koti Devi Devta
तों के भी प्रिय भगवान हैं. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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