ख्यालों में खोना भी बीमारी… कहीं ये आपके एंग्जाइटी, डिप्रेशन की वजह तो नहीं?

ख्यालों में खोना भी बीमारी… कहीं ये आपके एंग्जाइटी, डिप्रेशन की वजह तो नहीं?

प्रेषित समय :10:37:15 AM / Sun, Mar 19th, 2023

क्या आप भी दिनभर ख्यालों में खोए रहते हैं. वैज्ञानिकों ने इसे फैंटेसी डिसऑर्डर नाम दिया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक इंसान रोजाना 30 फीसदी से अधिक समय सपने देखने में बर्बाद कर देता है. वो अपने चारों तरफ ऐसी ख्याली दुनिया बनाता है जो उसे फर्जी सुख का अनुभव कराती है, लेकिन असर में इसके कई नुकसान हैं. अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो आप डे-ड्रीमिंग के शिकार हैं. ब्रिटेन में इस पर हुई हालिया रिसर्च में नतीजे चौंकाने वाले हैंं.

इस पर रिसर्च करने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ सुसेक्स की एसोसिएट लेक्चरर ग्यूलिया पोरियो का कहना है, दुनियाभर के 20 करोड़ लोग डे-ड्रीमिंग यानी दिन में सपने देखने की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं. विज्ञान की भाषा में इसे मैलाडेप्टिव डे-ड्रीमिंग यानी ख्यालों में रहने का नशा कहा जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है, इसके कारण लोग अपने काम पर फोकस नहीं पाते. एक लिमिट के बाद यह इंसान का जीवन बुरी तरह से प्रभावित करने लगती है.

ऐसे समझें इस डिसऑर्डर को
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, दिनभर ख्यालों में खोए रहने वाले लोगों का मन किसी काम में नहीं लगता. स्टूडेंट्स पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते. नौकरी पेशा लोग ऑफिस में काम समय से पूरा नहीं कर पाते. इतना ही नहीं, उन्हें काम करने के दौरान अधिक दिमाग लगाने की जरूरत होती है. जैसे- कपड़ों की धुलाई करते समय या फिर सफाई करते समय इंसान का अधिक सोचना और इसके कारण इन कामों का देरी से पूरा होना.

रिश्ते कमजोर होने लगते हैं
शोधकर्ताओं का कहना है, ऐसे लोग दिन का ज्यादातर समय सोचते हुए ही बिता देते हैं. ख्यालों में ही समस्या का समाधान करने की कोशिश करते हैं. धीरे-धीरे वो अपनी जिम्मेदारियों से बचने लगते हैं. नतीजा, उनके पारिवारिक रिश्ते कमजोर होने लगते हैं. यही वजह है कि कई बार ये शर्मिंदगी महसूस करते हैं. कई बार कोशिश करने के बावजूद इससे ये इससे उबर नहीं पाते. इतना ही नहीं, इनकी नींद भी नहीं पूरी हो पाती.

कई बीमारियों की जड़ बनती है डे-ड्रीमिंग
शोधकर्ताओं का कहना है कि दिन में खोए-खोए रहने की आदत कई बीमारियों की वजह रही है. जैसे- डिप्रेशन, बेचैनी और OCD. जो अपने बारे में जरूरत से जयादा सोचते हैं और कुछ बेहतर करने के लिए सिर्फ सोचते रहते हैं. उनमें ऐसे मामले देखे जा रहे हैं. रिसर्च के मुताबिक, मैलाडेप्टिव डे-ड्रीमिंग से से जूझने वाले 50 फीसदी अधिक मरीज ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) से भी परेशान हैं.

वैज्ञानिकों ने इसके नुकसान के साथ इसके कुछ फायदे भी बताए हैं. उनका कहना है, कई बार डे-ड्रीमिंग की आदत लोगों को नशे और बोरियत से बाहर निकालने का काम करती है. कुछ मामलों में यह क्रिएटिविटी को बढ़ा सकती है. हालांकि इसके नुकसान ज्यादा हैं. अगर ऐसे हालात से जूझ रहे हैं तो विशेषज्ञ से एक बार राय जरूर लें.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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