क्या आयातित कांग्रेसियों के बढ़ते महत्व के कारण मूल भाजपाइयों के उत्साह में कमी के नतीजे में है उदासीन मतदान?

क्या आयातित कांग्रेसियों के बढ़ते महत्व के कारण मूल भाजपाइयों के उत्साह में कमी के नतीजे में है उदासीन मतदान?

प्रेषित समय :21:52:06 PM / Sun, Dec 4th, 2022

प्रदीप द्विवेदी. गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में वह उत्साह नजर नहीं आया, जो पहले नजर आता था, लिहाजा सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है?
वैसे तो इस तरह के उदासीन मतदान ने सभी दलों के लिए सवालिया निशान लगा दिया है, लेकिन बीजेपी के लिए यह खतरे की घंटी इसलिए है कि बीजेपी के ज्यादा असरवाले शहरी क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ है!
इसी के मद्देनजर बीजेपी ने कार्यकर्ताओं, खासकर शहरी क्षेत्रों में, अधिक-से-अधिक मतदान के लिए सक्रिय होने के निर्देश दिए हैं.

आखिर बीजेपी के कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी क्यों है, इसके कई कारण हैं, मूल भाजपाइयों के समक्ष कई सवाल हैं....

एक- बीजेपी के लिए अनेक कार्यकर्ता इतने दशकों से बड़े उत्साह से काम कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं को ज्यादा महत्व मिल रहा है, जबकि कांग्रेसी नेताओं के बगैर भी मूल भाजपाइयों के दम पर बीजेपी लगातार कामयाब होती रही है.
दो- बीजेपी कार्यकर्ता अच्छे दिनों का इंतजार करते-करते थक गए हैं, उनका धैर्य जवाब देने लगा है और वे विरोधियों को ही नहीं, अपनों के सवालों के भी जवाब देने की हालत में नहीं हैं, कुछ समय पहले तो बीजेपी समर्थकों ने ही गैस सिलेंडर के रेट को लेकर स्मृति ईरानी से सवाल पूछ लिया था.
तीन- गुजरात के मुख्यमंत्री रहते जो भरोसा, नरेंद्र मोदी ने हासिल किया था, वह हवा हो चुका है, क्योंकि पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, डॉलर-रुपया, बेरोजगारी, महंगाई आदि को लेकर जो वादे-दावे किए गए थे, वे सब झूठे निकले हैं.
चार- गुजरात में मुस्लिम टोपी नहीं पहन कर हिन्दू हृदय सम्राट बने नरेंद्र मोदी गुजरात से बाहर न केवल मुस्लिम शालें ओढ़ रहे हैं, बल्कि देश-विदेश की सबसे ज्यादा मसजिदों, मजारों पर जानेवाले भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बन गए हैं.
पांच- यही नहीं, खबरें हैं कि नरेंद्र मोदी मजारों के लिए चादरें भी भेज रहे हैं, तो मजारों पर इत्र भी चढ़ा रहे हैं.
छह- नरेंद्र मोदी की यह मुखौटा राजनीति लोगों को समझ नहीं आ रही है, पीएम मोदी विश्व के मुस्लिम नेताओं से तो उत्साह से गले लगते हैं, लेकिन भारत के बड़े-बड़े हिन्दू नेताओं को ही नजरअंदाज कर देते हैं.
सात- गौ हत्या विरोधी कानून, चीनी सामान के बहिष्कारवाला स्वदेशी आंदोलन आदि मोदी राज में ठंडे बस्ते के हवाले हो चुका है.
आठ- नरेंद्र मोदी के विदेशी चश्मे, घड़ी, पेन आदि स्वदेशी आंदोलनवालों के लिए ही परेशानी का सबब बन गए हैं.
नौ- बीजेपी बोनसाई पॉलिटिक्स का शिकार है, जिसके कारण मोदी-शाह के अलावा बीजेपी का कोई बड़ा नेता उभर नहीं पा रहा है, गुजरात में इन आठ वर्षों में अनेक मंत्री-मुख्यमंत्री बदल गए, लिहाजा कई प्रमुख नेता सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं.
दस- नरेंद्र मोदी की ओवर ब्राडिंग बीजेपी को भारी पड़ रही है.
गुजरात में दूसरे चरण की 93 सीटों के लिए चुनाव प्रचार थम गया है, पहले चरण की 89 सीटों पर वोटिंग के बाद अब सभी दलों को 5 दिसंबर 2022 की वोटिंग का इंतजार है, जहां 2017 में 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था.
सियासी सयानों का मानना है कि यदि मूल भाजपाइयों की मतदान के लिए सक्रियता नहीं बढ़ी, तो गुजरात बीजेपी के हाथ से निकल जाएगा?

सबसे ज्यादा मस्जिद-मजार पर जाने वाले प्रधानमंत्री कौन हैं? किसके तुष्टीकरण के लिए?

पल-पल इंडिया (3 जनवरी 2022)....इनदिनों विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हिन्दू-मुस्लिम राजनीति जोरों पर है और इसे तुष्टीकरण के साथ जोड़कर सवाल उछाले जा रहे हैं!
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि.... सबसे ज्यादा विदेशों की मस्जिद-मजार पर जाने वाले भारत के प्रधानमंत्री कौन  हैं? और.... किसके तुष्टीकरण के लिए?
खबरों पर भरोसा करें तो विदेशों की मस्जिद-मजार पर जाने और विश्व के मुस्लिम नेताओं को गले लगाने के मामले में देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अव्वल हैं!
नरेन्द्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनने के बाद देश-विदेश की अनेक मस्जिदों में भी गए हैं, मजार के लिए चादरें भी भेजी हैं और फूल भी चढ़ाए हैं.
आज तक की खबर थी कि वर्ष 2017 में मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद में 16वीं सदी में बनी सिदी सैयद की जाली मस्जिद में गए थे.
विदेश यात्रा के दौरान वे इंडोनेशिया के इस्तकलाल मस्जिद भी गए थे, तो वर्ष 2018 की शुरूआत में पीएम मोदी ओमान के मस्कट में सुल्तान कबूज ग्रांड मस्जिद में गए थे.
यही नहीं, वे सिंगापुर की लगभग दो सौ साल पुरानी चिलुया मस्जिद भी गए थे.
इतना ही नहीं, पीएम मोदी प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, अजमेर में भी चादर भेजते रहे हैं.
पीएम मोदी वर्ष 2017 में म्यांमार यात्रा के दौरान बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर भी गए थे, जहां उन्होंने फूल भी चढ़ाए थे और इत्र भी छिड़का था.
जहां एक ओर मोदी के मस्जिद-मजार पर जाने की खबरें थी, वहीं बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक बयान में कहा था कि- राम मंदिर निर्माण में पीएम मोदी का तो कोई योगदान नहीं है, जिन लोगों ने काम किया उनमें राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और अशोक सिंघल के नाम शामिल हैं!

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https://www.aajtak.in/trending/photo/pm-narendra-modi-visits-in-mosque-and-grave-in-four-years-tkha-583992-2018-06-03-1

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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