माँ ज्वालामुखी देवी की कथा। इक्यावन शक्ति पीठों में से एक

माँ ज्वालामुखी देवी की कथा। इक्यावन शक्ति पीठों में से एक

प्रेषित समय :18:48:56 PM / Sat, Oct 1st, 2022

ज्वालामुखी मंदिर, कांगडा घाटी से 30 कि-मी- दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है. यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है. ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है. उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी. इस स्थाल पर माता सती की जीभ गिरी थी. इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है. ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है. जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था. बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया. मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

देवी की उत्पत्ति कथा
दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था. इस युद्ध में असुरो की सेना विजयी हुई. असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलण करने लगे. तब पराजित देवता ब्रहमा जी को आगे कर के उस स्थान पर गये जहां शिवजी, भगवान विष्णु के पास गए. सारी कथा कह सुनाई. यह सुनकर भगवान विष्णु, शिवजी ने बड़ा क्रोध किया उस क्रोध से विष्णु, शिवजी के शरीर से एक एक तेज उत्पन्न हुआ. भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख, विष्णु के तेज से उस देवी की वायें, ब्रहमा के तेज से चरण तथा यमराज के तेज से बाल, इन्द्र के तेज से कटि प्रदेश तथा अन्य देवता के तेज से उस देवी का शरीर बना. फिर हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की. तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके. और हुआ भी ऐसा ही. देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी. इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया. जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया.

ज्वाला देवी का मंदिर भी के 51 शक्तिपीठों में से एक है जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा हुआ है . शक्तिपीठ वे जगह है जहा माता सती के अंग गिरे थे. शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी. मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी भगवान् शिव के साथ हमेशा निवास करती हैं. शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है. ज्वालामुखी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है.

ज्वाला रूप में माता
ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं. नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीये के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं. अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं.

क्यों जलती रहती है ज्वाला माता में हमेशा ज्वाला :
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गोरखनाथ माँ के अनन्य भक्त थे जो माँ के दिल से सेवा करते थे. एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं. माँ ने कहे अनुसार आग जलाकर पानी गर्म किया और गोरखनाथ का इंतज़ार करने लगी पर गोरखनाथ अभी तक लौट कर नहीं आये. माँ आज भी ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इन्तजार कर रही है. ऐसा माना जाता है जब कलियुग ख़त्म होकर फिर से सतयुग आएगा तब गोरखनाथ लौटकर माँ के पास आयेंगे. तब तक यह अग्नी इसी तरह जलती रहेगी. इस अग्नी को ना ही घी और ना ही तैल की जरुरत होती है.

चमत्कारी गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है. यह गोरखनाथ का मंदिर भी कहलाता है. मंदिर परिसर के पास ही एक जगह 'गोरख डिब्बी' है. देखने पर लगता है इस कुण्ड में गर्म पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है .

अकबर की खोली आँखे माँ के चमत्कार ने
अकबर के समय में ध्यानुभक्त माँ ज्योतावाली का परम् भक्त था जिसे माँ में परम् आस्था थी. एक बार वो अपने गाँव से ज्योता वाली के दर्शन के लिए भक्तो का कारवा लेकर निकला. रास्ते में मुग़ल सेना ने उन्हें पकड़ लिया और अकबर के सामने पेश किया. अकबर ने ध्यानुभक्त से पुछा की वो सब कहा जा रहे है. इस पर ध्यानुभक्त ने ज्योतावाली के दर्शन करने की बात कही. अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? ध्यानुभक्त जवाब ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं. ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है.

इस बात पर अकबर ने ध्यानुभक्त के घोड़े का सिर कलम कर दिया और व्यंग में कहा की तेरी माँ सच्ची है तो इसे फिर से जीवित करके दिखाये. ध्यानुभक्त ने माँ से विनती की माँ अब आप ही लाज़ रख सकती हो. माँ के आशिष से घोड़े का सिर फिर से जुड़ गया और वो हिन हिनाने लगा. अकबर और उसकी सेना को अपनी आँखों पर यकिन ना हुआ पर यही सत्य था. अकबर ने माँ से माफ़ी मांगी और उनके दरबार में सोने का छत्र चढाने कुछ अहंकार के साथ पंहुचा. जैसे ही उसने यह छत्र माँ के सिर पर चढाने की कोशिश की , छत्र गिर गया और उसमे लगा सोना भी दुसरी धातु में बदल गया. आज भी यह छत्र इस मंदिर में मौजुद है.

ज्वाला रूप में माता
ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं. नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीये के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं. अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं.

क्यों जलती रहती है ज्वाला माता में हमेशा ज्वाला :
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गोरखनाथ माँ के अनन्य भक्त थे जो माँ के दिल से सेवा करते थे. एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं. माँ ने कहे अनुसार आग जलाकर पानी गर्म किया और गोरखनाथ का इंतज़ार करने लगी पर गोरखनाथ अभी तक लौट कर नहीं आये. माँ आज भी ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इन्तजार कर रही है. ऐसा माना जाता है जब कलियुग ख़त्म होकर फिर से सतयुग आएगा तब गोरखनाथ लौटकर माँ के पास आयेंगे. तब तक यह अग्नी इसी तरह जलती रहेगी. इस अग्नी को ना ही घी और ना ही तैल की जरुरत होती है.

चमत्कारी गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है. यह गोरखनाथ का मंदिर भी कहलाता है. मंदिर परिसर के पास ही एक जगह 'गोरख डिब्बी' है. देखने पर लगता है इस कुण्ड में गर्म पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है .

अकबर की खोली आँखे माँ के चमत्कार ने
अकबर के समय में ध्यानुभक्त माँ ज्योतावाली का परम् भक्त था जिसे माँ में परम् आस्था थी. एक बार वो अपने गाँव से ज्योता वाली के दर्शन के लिए भक्तो का कारवा लेकर निकला. रास्ते में मुग़ल सेना ने उन्हें पकड़ लिया और अकबर के सामने पेश किया. अकबर ने ध्यानुभक्त से पुछा की वो सब कहा जा रहे है. इस पर ध्यानुभक्त ने ज्योतावाली के दर्शन करने की बात कही. अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? ध्यानुभक्त जवाब ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं. ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है.

इस बात पर अकबर ने ध्यानुभक्त के घोड़े का सिर कलम कर दिया और व्यंग में कहा की तेरी माँ सच्ची है तो इसे फिर से जीवित करके दिखाये. ध्यानुभक्त ने माँ से विनती की माँ अब आप ही लाज़ रख सकती हो. माँ के आशिष से घोड़े का सिर फिर से जुड़ गया और वो हिन हिनाने लगा. अकबर और उसकी सेना को अपनी आँखों पर यकिन ना हुआ पर यही सत्य था. अकबर ने माँ से माफ़ी मांगी और उनके दरबार में सोने का छत्र चढाने कुछ अहंकार के साथ पंहुचा. जैसे ही उसने यह छत्र माँ के सिर पर चढाने की कोशिश की , छत्र गिर गया और उसमे लगा सोना भी दुसरी धातु में बदल गया. आज भी यह छत्र इस मंदिर में मौजुद है

प्रमुख त्योहार
ज्वालाजी में नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. साल के दोनों नवरात्रि यहां पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते है. नवरात्रि में यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है. इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है. अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है. नवरात्रि में पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है. कुछ लोग देवी के लिए लाल रंग के ध्वज भी लाते है.

मुख्य आकर्षण
मंदिर में आरती के समय अद्भूत नजारा होता है. मंदिर में पांच बार आरती होती है. एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ में की जाती है. दूसरी दोपहर को की जाती है. आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है. फिर संध्या आरती होती है. इसके पश्चात रात्रि आरती होती है. इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है. उसे फूलो और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है. इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है.
ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ सिद्धेस्वरी ज्वालामुखी ज्रांभिनी स्थाँभिनी मोहिनी वशिकरणी परमन क्षीभीणी सर्वशत्रु निवारिणी ॐ औँ त्रैँ ह्रीँ पाहि पाहि अक्षोभय अक्षोभय सर्वजन मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्रीं ज्वालामुखी मम् सर्व शत्रून भक्षय-भक्षय हुं फट स्वाहा..

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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