अपराजिता के बीज सिर दर्द को हरने वाली है. इसके पुष्प-पत्ते-तने और मूल(जड़) बुद्धि बढ़ाने वाली, वात-पित्त और कफ को दूर करने वाली होती है. इसका प्रयोग शरीर में होने वाले विभिन्न रोगों में उतपन्न सूजन का नाशक है,खास कर गठिया रोग के सूजन में तो इसके जोर का अन्य कोई औषधि नहीं है.
इसे गौकर्णी,गिरिकर्णी,योनिपुष्प,विष्णुकांता, कोयल,कालीजार के अलावा अन्य स्थानीय भाषा में कई नामों से जाना जाता है. यह सफेद,नीले और बैगनी रंग के अलावा भी कई रंगों में देखा जाता है. किंतु देविं व देविं तन्त्र पूजन में नीले(ब्लू) रंग का तथा आयुर्वेद व वनस्पति तन्त्र में सफेद रंग की विशेष महत्व है. सफेद अपराजिता के पौधे-पुष्प क्रोनिक डिजीज से शरीर की रक्षा करती है. शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि तथा पाचन-तन्त्र को बल देकर ब्लड-प्रेशर और केंसर जैसे जानलेवा रोग के जोखिम को कम करती है.
पौराणिक ग्रन्थ 'स्कंद पुराण' एवम अन्य तन्त्र शास्त्रों के अनुसार अगर अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि नवमी तिथि से युक्त हो तो अपराजिता पुष्प के मूल(जड़) और शमी वृक्ष के मूल को देविं दुर्गा के "अपराजिता" रूप को समर्पित कर नीले रंग के अपरिजिता पुष्प और शमी पुष्प य्या पत्र से "अपरिजिता स्तोत्र" द्वारा पूजन कर इस मूल को चांदी के तावीज में डलवा कर अपने बाजू व गले में धारण किया जाय तो कोर्ट-कहचरी मुकदमा, चुनाव में विजय प्रदान करता है; शत्रु नाश का कारण बनता है एवम अर्पित पुष्प और मूल को अपने धन रखने वाले जगह में स्थान देकर प्रतिदिन धूप-दीप दिखाया जाय तो निश्चित ही सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. इसमें कोई संचय नहीं है.
अगर आपको विश्वास नहीं होता तो 04 अक्टूबर 2022; मंगलवार को आश्विन मास शुक्ल पक्ष का दोपहर 02:21 लगभग तक नवमी तिथि उपरांत दशमी तिथि है; आजमा कर देख लें.
"हे देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो. हे पृथ्वी की संताप-हारिणी, तुम्हारी जय हो. सर्व-व्यापिनी देवी, तुम्हारी जय हो, हे काल-रात्रि, तुम्हें नमस्कार हो.
हे देविं! तुम्हारे अपरिजिता रूप विजय प्रदान करने वाली, सुख-समृद्धि प्रदायक है, तुम्हारी जय हो."
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