शारदीय नवरात्रि का त्यौहार 2022 में पूरे नौ दिनों तक मनाया जाएगा

शारदीय नवरात्रि का त्यौहार 2022 में पूरे नौ दिनों तक मनाया जाएगा

प्रेषित समय :19:42:50 PM / Sat, Sep 24th, 2022

नवरात्रि का अर्थ होता है नौ रातें यानी नवरात्रि पर नौ दिन तक भक्तों द्वारा माँ के सभी स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. किन्तु कई बार ग्रहों की गणनाओं के अनुसार नवरात्रि का त्यौहार नौ दिनों की जगह 8 दिनों तक मनाया जाता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार ऐसा अलग-अलग दिनों में बनने वाले योगों और शुभ मुहूर्त के आधार पर होता है. इन्हीं सब कारणों के चलते साल 2022 में शारदीय नवरात्रि कितने दिनों तक रहने वाली है, इसका संशय लोगों के मन में बना हुआ है. 

हम अपने इस विशेष ब्लॉग में आपको बताना चाहते हैं कि इस बार नवरात्रि का त्यौहार पूरे नौ दिनों तक मनाया जाएगा. शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर, 2022 सोमवार से हो रहा है और इसका समापन मंगलवार, 4 अक्टूबर, 2022 को होगा. इस बार माँ दुर्गा को नौ दिनों तक भक्तों द्वारा पूजा जाएगा, जिसकी शुरुआत पहले दिन घटस्थापना या कलश स्थापना के साथ की जाती है और आखिरी के दो दिन यानी अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन किया जाता है.    

शारदीय नवरात्रि ,आश्विन नवरात्रि घटस्थापना 26 सोमवार, सितम्बर 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त - 06;03 से 07;38 - अवधि - 01 घण्टा 34 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त -11;41 से 12;29 -अवधि - 00घण्टे 48 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त, द्वि-स्वभाव कन्या लग्न के दौरान है.
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - 26 सितम्बर 2022 को 03;23 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 27 सितम्बर , 2022 को 03 ;08 बजे
कन्या लग्न प्रारम्भ - 26 सितम्बर , 2022 को 06;03 बजे
कन्या लग्न समाप्त - 26 सितम्बर , 2022 को 07;38 बजे
नवरात्रि में किस दिन किन देवी की होगी पूजा
26 सोमवार सितंबर 2022 - मां शैलपुत्री -पहला दिन- प्रतिपदा
27 मंगलवार, सितंबर 2022- मां ब्रह्मचारिणी -दूसरा दिन- द्वितीय
28 बुधवार,सितंबर 2022- मां चंद्रघंटा -तीसरा दिन- तृतीया
29 गुरुवार, सितंबर 2022- मां कुष्मांडा -चौथा दिन- चतुर्थी
30 शुक्रवार' सितंबर 2022- मां स्कंदमाता -पांचवा दिन- पंचमी
1 शनिवार 'अक्टूबर 2022- मां कात्यायनी -छठा दिन) षष्ठी
2 रविवार 'अक्टूबर 2022- मां कालरात्रि -सातवां दिन- सप्तमी
3 सोमवार' अक्टूबर 2022- मां महागौरी -आठवां दिन- दुर्गा अष्टमी
4 मंगलवार,अक्टूबर 2022- महानवमी, -नौवां दिन- शरद नवरात्र व्रत पारण
5 बुधवार ,अक्टूब 2022- मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी -दशहरा-
नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व: अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है. नवरात्र में अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना होता है. परंम्परा है कि जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते है उन्हें जमीन पर सोना होता है.
नवरात्र में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा होती है.
जानिए इस वर्ष नवरात्र में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजन तिथि:
शरद नवरात्रि 2017 दिवस 1 पहला घटस्थापना 
कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं
मिट्टी का पात्र और जौ के 11  या 21 दाने
शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे पत्थर नहीं हो
शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी , सोना, चांदी, तांबा या पीतल का कलश
मोली (लाल सूत्र)
अशोक या आम के 5 पत्ते
कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
साबुत चावल
एक पानी वाला नारियल
पूजा में काम आने वाली सुपारी
कलश में रखने के लिए सिक्के
लाल कपड़ा या चुनरी
मिठाई
लाल गुलाब के फूलो की माला
नवरात्र कलश स्थापना की विधि
महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य पुराण में बताया गया है की कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना चाहिए. उसके उपरान्त एक लकड़ी का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर उसपर थोड़े चावल गणेश भगवान को याद करते हुए रख देने चाहिए | फिर जिस कलश को स्थापित करना है उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर उसमे जौ बो देना चाहिए | इसी कलश पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र बांध दे | कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रख दे और फिर कलश के मुख को ढक्कन से ढक दे. ढक्कन को चावल से भर दे. पास में ही एक नारियल जिसे लाल मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए. इस नारियल को कलश के ढक्कन रखे और सभी देवी देवताओं का आवाहन करे . अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करे . अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ा दे | अब हर दिन नवरात्रों में इस कलश की पूजा करे |
नवरात्रि का पर्व नौ शक्ति रुपी देवियों के पूजा के लिए है | यह सभी देवी रूप अपने आप में शक्ति और भक्ति के भंडार है | जगत में अच्छाई के लिए माँ का कल्याणकारी रूप सिद्धिदात्री , महागौरी आदि है, और इसी के साथ जगत में पनप रही बुराई के लिए माँ कालरात्रि , चन्द्रघंटा रूप धारण कर लेती है |
अब जाने वे बीज मंत्र जो इन नौ देवियों को प्रसन्न करते है | हर एक देवी का पृथक बीज मंत्र यहाँ दिया गया है |
1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:
2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
3. चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:
4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:
5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है ?
प्रथम् शैल-पुत्री च, द्वितियं ब्रह्मचारिणि
तृतियं चंद्रघंटेति च चतुर्थ कूषमाण्डा
पंचम् स्कन्दमातेती, षष्टं कात्यानी च
सप्तं कालरात्रेति, अष्टं महागौरी च
नवमं सिद्धिदात्री
शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है . पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी. इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी . एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी. उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है.
भ्रमाचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्माचारिणी की है. " ब्रह्मा " शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है . यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है "तप" . माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है. उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन ( कमंडल ) है. वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है . उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है |
चंद्रघंटा ( माँ का गुस्से का रूप )
तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है. वह शेर पर बैठी संगर्ष के लिए तैयार रहती है. उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है. वह आकर्षक और चमकदार है . वह ३ आँखों और दस हाथों में दस हतियार पकडे रहती है और उनका रंग गोल्डन है. वह हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है. उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है .
कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा. " कु" मतलब थोड़ा "शं " मतलब गरम "अंडा " मतलब अंडा. यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा . वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है. वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है. उनके पास आठ हाथ है ,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है. उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है.
स्कंदमाता ( माँ के आशीर्वाद का रूप )
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है " स्कंद माता ", हिमालय की पुत्री , उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी . उनका एक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा " था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था . स्कंदमाता आग की देवी है. स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है. उनकी तीन आँख और चार हाथ है. वह सफ़ेद रंग की है. वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है.
कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी )
माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी. एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था , जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे ,उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या करनी पढ़ी ,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त की थी. उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में.
कालरात्रि ( माँ का भयंकर रूप )
माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि. वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है. उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है ,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है. वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है. उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है. . जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं हाथ में है और उनके निचले बाएं हाथ में वह उनके भक्तों को निडर बनाती है. उन्हें "शुभकुमारी" भी कहा जाता है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है.
महागौरी ( माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप )
आठवीं दुर्गा " महा गौरी है।" वह एक शंख , चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है, वह आठ साल की है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है. उनकी तीन आँखें है ,उनकी सवारी बैल है ,उनके चार हाथ है. उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है ,ऊपर के बाएं हाथ में " त्रिशूल " है ,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है.वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण शैली में मौजूद है. यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धुल के वजह से और पृत्वी भी गन्दी हो गयी थी जब भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था. तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया.इसीलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है . यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान ,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है.
सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप )
माँ का नौवा रूप है " सिद्धिदात्री " ,आठ सिद्धिः है ,जो है अनिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,लिषित्वा और वशित्व. माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है. उनके पास कई अदबुध शक्तिया है ,यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से. उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह " अर्धनारीश्वर " के नाम से प्रसिद्ध हो गए. माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है ,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है. दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं , ऋषियों मुनीस , सिद्ध , योगियों , संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है.
दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र
1 आपत्त्ति से निकलने के लिए
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे .
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥
2 भय का नाश करने के लिए
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते .
भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥
3 जीवन के पापो को नाश करने के लिए
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् .
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
4 बीमारी महामारी से बचाव के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् .
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
5 पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए
देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते .
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
5 इच्छित फल प्राप्ति
एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः
7 महामारी के नाश के लिए
जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी .
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥
8 शक्ति और बल प्राप्ति के लिये
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि .
गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥
9 इच्छित पति प्राप्ति के लिये
ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि .
नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥
10 इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम् .
तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥

Astrology By Bhoj Sharma
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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