छग के गांवों में फैली जानलेवा बीमारी, अब तक 39 की मौत, 50 से ज्यादा गंभीर

छग के गांवों में फैली जानलेवा बीमारी, अब तक 39 की मौत, 50 से ज्यादा गंभीर

प्रेषित समय :15:18:17 PM / Fri, Sep 23rd, 2022

बीजापुर. छत्तीसगढ़ में बीते दो महीनों से हो रही बारिश और बाढ़ ने आदिवासी इलाकों में तबाही मचा दी है. बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाके में सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण मौत के आगोश में समा रहे हैं. नदी, नालों और बाढ़ से डूबे रास्तों ने मरीजों के जीवन को टापू में तब्दील कर रखा है. छत्तीसगढ़ के दो जिले बीजापुर व नारायणपुर इन गंभीर हालातों से मौतों की आगोश में हैं. यहां मरने वालों में ज्यादा जनसंख्या आदिवासियों की है, जो बुखार और शरीर में सूजन की शिकायत के बाद इनकी अचानक मृत्यु हुई है. नारायणपुर का माड़ व बीजापुर भैरमगढ़ का इंद्रावती नदी पार के गांव है.

मिली जानकारी अनुसार इंद्रावती नदी पार मर्रामेटा, रेकावाया,पेंटा, गुडरा ,पीडियाकोट और बड़े पल्ली क्षेत्र में महामारी की स्थिति निर्मित हो चुकी है. दो माह के भीतर ही बीजापुर जिले के मर्रामेटा पंचायत में 12 ग्रामीणों की, पेंटा पंचायत में 3, पीडियाकोट पंचायत में 7, बड़े पल्ली पंचायत में 7 लोगों की शरीर फूलने और तेज बुखार के कारण मौत हो गई है. वहीं नारायणपुर जिले के अंतर्गत आने वाली ग्राम रेकावाया, गुडरा में 10 ग्रामीणों की इन्हीं लक्षणों वाली बीमारियों के कारण मौत होने की जानकारी आ रही है.

सूत्रों ने बताया कि इन क्षेत्रों में अब भी 50 से अधिक ग्रामीण ऐसे ही बीमारियों के चपेट में है. इन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नही है. सूत्र यह भी बताते है कि बीते 5 माह से कोई भी स्वास्थ अमला इन क्षेत्रों में नहीं पंहुचा है. इससे क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासीयों की असामयिक मृत्यु होना, निश्चित ही चिंता का विषय है. ग्रामीणों में एक तरह से दहशत बनी हुई है. इन गांवों में शिक्षा के अलावा स्वास्थ्य विभाग का प्रचार-प्रसार भी वैसा नहीं हुआ है, जैसा होना चाहिए. स्वास्थ्य विभाग अगर इन्ही की भाषा में ऐसे क्षेत्रों में जागरूकता पैदा करें तो निश्चित है, इन ग्रामीणों की स्वास्थ्य व सेहत में सुधार आ सकती है. लेकिन विभाग की इन इलाकों में न पहुंचना गंभीर विषय है.

सूत्रों ने बताया कि मजबूरन ग्रामीण मरीज गांव में ही सिरहा, बैगा-गुनिया से अपना उपचार करवा रहे है, वहीं परिजन अपने बीमार रिश्तेदारों को धीरे-धीरे मौत के आगोश में जाते देख रहे है. उन्हें अब शासन, प्रशासन से कोई उम्मीद नही है, इसी सोच के चलते ग्रामीण यह मान चुके है कि उनकी जिंदगी की कोई मोल नहीं. इन क्षेत्रों के ग्रामीणों का मानना है कि कोई भी स्थानीय जनप्रतिनिधि उनके क्षेत्रों के ओर रुख करने का कभी सोचते ही नहीं है.

सिरहा गुनिया से इलाज कराने के भी कुछ अजीब तर्क है. क्षेत्र के सिरहा गुनिया से इलाज कराने वाले के भी यहां के ग्रामीण आदिवासियों के अपने तर्क हैं उनका मानना है कि कुछ बीमारियां सिरहा गुनिया ठीक करते हैं लेकिन जब उनके हाथों से सब निकल जाता है, तो मौत ही एकमात्र सत्य बनकर सामने आता है. आजादी के 75वें अमृत महोत्सव में भी देश सिरहा गुनिया के अंधकार और अंधविश्वास से बाहर नहीं आया है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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