सर्वोत्तम पूजा-श्राद्ध तर्पण

सर्वोत्तम पूजा-श्राद्ध तर्पण

प्रेषित समय :22:09:52 PM / Mon, Sep 12th, 2022

हिन्दू सनातन धर्म के ऋषिमुनि , ब्राह्मण , तपस्वी नित्य भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देना , अग्निहोत्र पूजा एवं नदी सरोवर तीर्थ स्नानमे तर्पण नित्य ही करते है और सनातन धर्म की ये श्रेष्ठ पूजा उपासना है . देव , गुरु और पितृओ कि प्रसन्ता से ही सर्वमंगल होता है . इसलिए ही प्रतिमास या भाद्रपद के इस पितृपूजा पक्षमे श्राद्ध तर्पण अवश्य ही करना चाहिए . पितृओ कि प्रसन्ता के बिगैर स्वयम ब्रह्म भी फलदायी नही होते .

पितृपक्ष का रहस्य :-
 ये ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है . मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है . मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है . कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है . जब किसी की मृत्यु होती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है . सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है . बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है .  चंद्र सूक्ष्म सृष्टि का नियमन करते है . 

सूर्य जब कन्या राशिमें प्रवेश करते है तब पाताल ओर पितृलोक की सृष्टि का जागरण हो जाता है . चंद्र की 16 कला है . पूर्णिमा से अमावस्या तक कि 16 तिथि सोलह कला है . जिसदिन मनुष्य की मृत्यु होती है उसदिन जो तिथि हो वो कला खुली होती है इसलिए वो जीवको उस कलामे स्थान मिलता है . भाद्रपद की पूर्णिमा से पितृलोक जागृत हो जाता है और जिस दिन जो कला खुली होती है उसदिन उस कलामे रहे जीव पृथ्वीलोकमें अपने स्नेही स्वजन , पुत्र पौत्रादिक के घर आते है . उस दिन परिवार द्वारा उनकेलिए श्रद्धापूर्वक जो भी पूजा , नैवेद्य , दान पुण्य हो रहा हो वो देखकर तृप्त होते है और आशीर्वाद देते है . 

कुल के आराध्य देवी देवता मृतक जीवोंको तृप्त देखकर प्रसन्न होते है और परिवार को सुख संपदा प्रदान करते है . ऐसे ही जिस घरमे श्राद्ध पूजा कुछ नही होता ये देखकर पितृ व्यथित होकर चले जाते है . और कुलके आराध्य देवी देवता उन जीवात्माओं के व्यथित होने से खिन्न होते है . जीवात्मा की गति का ये सूक्ष्म विज्ञान को समझकर हमारे ऋषि मुनियों ने मनुष्य की सुखकारी केलिए ये धर्म परम्परा स्थापित की है . 

अमावस्या के दिन चंद्र की सभी 16 कला खुली रहती है इसलिए उसदिन भूले बिसरे सभी पितृओ पृथ्वीलोक पर आते है . इसलिए उस दिन के श्राद्ध कार्य अति महत्वपूर्ण है . चंद्र देव का दूध पर आधिपत्य है इसलिए श्राद्धमें दुधपाक या क्षीर भोजन बनाकर पितृओ को नैवेद्य भोग लगाया जाता है . श्राद्धपूजा में ये सब किया जा सकता है 
1  ब्राह्मण के पास पिंडदान तर्पण पूजा
2  दुधपाक क्षीर (खीर) का नैवेद्य बनाकर घरमे पितृदेव को भोग लगाना 
3  पितृओ के नाम ब्राह्मण , भिक्षु , बटुक , कन्या को भोजन करवाना 
4  कौवे ओर पक्षियो को भोजन देना 
5  गाय , कुते ओर पशुओं को भोजन देना 
6  जलचर जीव ओर किट पतंगे जैसे जीवो को भोजन
7  पितृओ के नाम दान दक्षिणा जैसे पुण्यकार्य 
8  शिवमन्दिरमे पूजा कर पितृओ की दिव्यगति केलिए प्रार्थना करना  .
9  पितृओ की प्रसन्ता केलिए 

 " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "  मंत्र का नित्य जाप करना श्रेष्ठ उपासना है .
इनमे से जो भी शक्य हो वो करना चाहिए . पितृ पूर्वजो के आशीर्वाद से परिवार सुख सम्पति धन धान्य सुआरोग्य संतति ओर सन्मान प्राप्त करता है . कुलगोत्र के देवी देवता सह तमाम आराध्य देवी देवता पितृ पूर्वजो की प्रसन्नता देखकर ही कृपा करते है . मनुष्य जीवन को सफल और सुखी बनाने और स्वआत्मा कि दिव्य गति प्राप्त करने केलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों की ये सर्वश्रेष्ठ भावपूजा है . जीव की सूक्ष्म गति को समझनेवाले अनेक साधक प्रतिमास अमावस्या को ये भावपूजा अवश्य ही करते है. जगत के पालनहार नारायण इस पूजा से अति प्रसन्न होते है.
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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