पूर्वजों को तर्पण या पिंडदान घर पर कैसे करें

पूर्वजों को तर्पण या पिंडदान घर पर कैसे करें

प्रेषित समय :20:37:59 PM / Sat, Sep 10th, 2022

इस वर्ष पितृपक्ष 11 सितंबर, 2022 रविवार (प्रतिपदा) से प्रारंभ होकर 25 सितम्बर, 2022 रविवार (अमावस्या) तक हैं .लेकिन जो लोग पितृ पक्ष पूर्णिमा से मनाते हैं वह लोग 10 सितंबर, 2022 शनिवार से मनाएंगे .

भारतीय संस्कृति में पितृपक्ष का बड़ा महत्व है .इन दिनों में हमारे पूर्वज/पितृदेव जैसे पिता, बाबा परबाबा, माता, दादी, परदादी, नाना, नानी एवं अन्य पूर्वज/पितृ देवता हमारे घरों में आते हैं और 15 दिनों तक हमारे घरों में रहते हैं .
हमारे पितृ देवता पधार रहे हैं तो हमें क्या करना चाहिए ?

हमारे ऋषियों ने एक व्यवस्था बनाई थी कि हमें 15 दिनों तक जलांजलि/तर्पण, पिंड दान एवं अन्य अनुष्ठान परक साधना के द्वारा एक विशेष भावनात्मक, आध्यात्मिक ऊर्जा तैयार करनी है. जिस प्रकार हमारा कोई प्रिय जब बाहर से घर आने को होता है तो खुशी से घरवाले दिन गिनते हैं और नाना प्रकार के व्यंजन आदि बनाने का प्रयास किया जाता है, क्योंकि आज मेरा प्रिय आने वाला है .उसी प्रकार हमारे पितृदेव जैसे पिताजी, बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी, नाना, नानी आदि पितरों के अंदर भी पितृ पक्ष आने के पूर्व ही एक खुशी की लहर होती है कि पितृपक्ष में हमारी भावी पीढ़ी हमें बुलाएगी और हम जरूर जाएंगे . लेकिन आने वाला तो तैयार खड़ा है बुलाने वाला कोई नहीं होता . ऐसे में हमारे पितरों को बड़ा कष्ट होता है और कभी-कभी यह कष्ट आक्रोश में बदल जाता है.

संयुक्त परिवार होने के कारण सामान्यतः घर के बड़े व्यक्ति को पूजा- पाठ, तर्पण आदि की जिम्मेदारी दे दी जाती थी . बाकी सदस्यों को प्रतिदिन पूर्वजों के चित्र के पास बैठकर ध्यान एवं प्रणाम करने का विधान है . पितृपक्ष में भोजन, फल, वस्त्र आदि दान सुपात्रों को देने का विधान है . पशु, पक्षी, जलचर, थलचर आदि को भी घास, दाना, आटा आदि खिलाया जाता है .माना जाता है कि पितृ किसी न किसी रूप में अप्रत्यक्ष रूप से उपस्थित हो हमारे द्वारा श्रद्धा पूर्वक दी गयी वस्तुओ आदि को ग्रहण करते हैं . इन 15 दिनों में हम अपने पितरों को श्रद्धा/भावना पूर्वक याद कर वर्ष भर अप्रत्यक्ष रूप से उनकी कृपा/सहायता प्राप्त कर सकते हैं .

पितृ पक्ष श्राद्ध करने की विधि
पितृलोक से पृथ्वी लोक पर पितरो के आने का मुख्य कारण उनकी पुत्र-पौत्रादि से आशा होती है की वे उन्हें अपनी यथासंभव शक्ति के अनुसार पिंडदान प्रदान करे अतएवं प्रत्येक सद्गृहस्थ का धर्म है कि स्पष्ट तिथि के अनुसार श्राद्ध अवश्य करे यदि पित्र पक्ष मे परिजनों का श्राद्ध नहीं किया गया तो वे श्राप दे देते हैं और ये परिवार के सदस्यों पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है जिससे हानि होनी ही होनी है. अतः इस पक्ष में श्राद्ध अवश्य किया जाना चाहिये.

श्राद्ध में पंचबली की महता:
पितृ  पक्ष में ब्राह्मण भोजन और जलमिश्रित तिल से तर्पण करने जितना ही अनिवार्य पञ्चबलि भी है पञ्चबलि का नियम कुछ इस प्रकार है.
एक थाली के पांच भिन्न भिन्न भाग करके थोड़े थोड़े सभी प्रकार के भोजन को परोसकर हाथ मे तिल, अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करते समय निम्न का उचारण करे: अद्यामुक गोत्र अमुक शर्माहं-बर्माहं-गुप्तोहं-दासोहं अमुकगोत्रस्य मम पितुः-मातु आदि वार्षिकश्राद्धे (महालयश्राद्धे) कृतस्य पाकस्य शुद्ध्यर्थं पंचसूनाजनितदोषपरिहारार्थं च पंचबलिदानं करिष्ये.

पंचबलि-विधि इस प्रकार है:
1 गोबलि (पत्ते पर)
ऊँ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः. प्रतिगृह्वन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।। इदं गोभ्यो न मम.
इस श्लोक का उचारण पश्चिम दिशा की और पुष्प और पते को दिखाकर करे. पंचबली का एक निहित भाग गाय को खिलायें.
2 श्वानबलि (पत्ते पर)
द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोöवौ. ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।। इदं श्वभ्यां न मम.
इस श्लोक का उचारण कुत्तों को बलि देने के लिए करे. इस पंचबलि के समय कान मे जनेऊ डालना अनिवार्य है.
3 काकबलि (पृथ्वी पर)
ऊँ ऐन्द्रवारूणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा. वायसाः प्रतिगृह्वन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्।। इदमन्नं वायसेभ्यो न मम.
इस श्लोक का उचारण कौओं को भूमि पर अन्न देने के लिए करे. पंचबली का एक निहित भाग कौओं के लिये छत पर रख दें.
4 देवादिबलि (पत्ते पर)
ऊँ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः. प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।। इदमन्नं देवादिभ्यो न मम.
इस श्लोक का उचारण देवता आदि के लिय अन्न देने के लिए होता है. पंचबली का एक निहित भाग अग्नि के सपुर्द कर दें.
5 पिपीलिकादिबलि (पत्ते पर)
पिलीलिकाः कीटपतंगकाद्या बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः. तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु।। इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम.
इस श्लोक का उचारण चींटी आदि को बलि देने के लिए होता है. पंचबली का एक निहित भाग चींटीयों के लिये रख दें पंचबलि देने के बाद एक थाल मे खाना परोसक निम्न मंत्र का उचारण कर ब्राह्मणों के पैर धोकर सभी व्यंजनों का भोजन करायें.
यत् फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे.
तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां पादसेचने।।
इसे बाद उन्हें अन्न, वस्त्र और द्रव्य-दक्षिणा देकर तिलक करके नमस्कार करें. तत्पश्चात् नीचे लिखे वाक्य यजमान और ब्राह्मण दोनों बोलें
यजमान शेषान्नेन किं कर्तव्यम्. (श्राद्ध में बचे अन्न का क्या करूँ?)
श्राद्धकर्म के नियम
1 श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए. यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं. दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए.
2 श्राद्ध में चांदी के बर्तन का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है. पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है.
3 श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए गए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं.
4 ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें.
5 जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए. पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता.
6 श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं. ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है.
7 श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है. तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है. वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं. कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं.
8 दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए. वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है. अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है.
9 चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है.
10 जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते.
20 श्राद्ध के प्रमुख अंग
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है. श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है.
भोजन व पिण्ड दान: पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है. श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं.
वस्त्रदान वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है.
दक्षिणा दान यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता.
21 श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें. श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं.
22 पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें.
23 तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता कौआ, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें. इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें.
24 कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं. इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं.
25 ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं. ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं.
26 पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए . एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करें या सबसे छोटा.
पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु या नाती को भोजन कराना चाहिए. इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं. ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए, अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं, जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं. पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए. हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए. मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है. 
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या, किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं, या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है. शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है. यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए. बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए, यही उचित भी है.

पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत भाग को प्राप्त करता है. यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया हो तो, श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा. गंधर्व बन गया हो तो, वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है. पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करता है. यदि नाग योनि में है तो, श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति देता है. दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना प्रकार के अन्न पान और भोग्य रसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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