पितृपक्ष 10 सितंबर, शनिवार के दिन से शुरू होगा, जानें श्राद्ध की सही विधि!

पितृपक्ष 10 सितंबर, शनिवार के दिन से शुरू होगा, जानें श्राद्ध की सही विधि!

प्रेषित समय :21:16:48 PM / Fri, Sep 9th, 2022

पितृपक्ष यानि साल में कुछ ऐसे दिनों की वह समय अवधि जिस दौरान हम अपने दिवंगत पितरों को याद करते हैं, उनकी आत्मा की शांति के लिए दान, तर्पण, पूजा, आदि करते हैं और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन पर सदैव बना रहे इसकी कामना करते हैं. पितृपक्ष या श्राद्ध करीब 16 दिनों के होते हैं और इसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार बात करें तो पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होती है और आश्विन मास की अमावस्या को इसका समापन होता है. 
साल 2022 में पितृपक्ष 10 सितंबर, शनिवार के दिन से शुरू होगा और इसका समापन 25 सितंबर, 2022 को होगा.

पितृपक्ष का महत्व
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि हिंदू धार्मिक शास्त्र के अनुसार 16 दिनों तक चलने वाला यह पितृ पक्ष पूरी तरह से हमारे पितरों को समर्पित होता है. इस दौरान हम उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, पूजा, आदि करते हैं. इस दौरान विशेष तौर पर कौवों को भोजन कराया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कौवों के माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंच जाता है. 

इसके अलावा बहुत से लोग ऐसा भी मानते हैं कि पितृपक्ष में हमारे पितृ ही कौवों के रूप में पृथ्वी पर आते हैं इसीलिए इस दौरान भूल से भी भी इस दौरान उनका अनादर नहीं करना चाहिए और उन्हें हमेशा ताज़े बने भोजन का पहला हिस्सा देना चाहिए.

पितृ पक्ष 2022 श्राद्ध की तिथियां-
10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
11 सितंबर- आश्निव, कृष्ण द्वितीया
12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पष्ठी
16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या

पितृ पक्ष के नियम
पितृपक्ष की यह अवधि जहां पूरी तरह से पितरों को समर्पित होती है वहीं दूसरी तरफ इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष की इस अवधि में यदि खुशी का कोई भी काम किया जाए तो इससे पितरों की आत्मा को कष्ट पहुँच सकता है. ऐसे में इस अवधि के दौरान शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, इत्यादि मांगलिक और शुभ कार्य भी नहीं करना चाहिए. साथ ही मुमकिन हो तो इस दौरान कोई बड़ी चीज भी खरीदने से बचें.

इसके अलावा पितृ पक्ष की अवधि विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिनकी कुंडली में पितृ दोष मौजूद होता है. क्या आपकी कुंडली में भी है पितृदोष? यह जानने के लिए आप हमारे विद्वान  भोज दत्त शर्मा से बात कर सकते हैं और व्यक्तिगत परामर्श प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा पितृपक्ष के दौरान आप कुछ विशेष उपाय करके भी इन दोषों का प्रभाव अपने जीवन से कम या दूर भी कर सकते हैं.

पितृ पक्ष की इस अवधि में पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है और यह परंपरा हमारे यहां सदियों से चली आ रही है.
बहुत से लोग (जिनके लिए मुमकिन हो) वह काशी और गया भी जाते हैं और पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान करते हैं. 
इसके अलावा बहुत से लोग इस दौरान ब्रह्मा भोज करवाते हैं. 
बहुत से लोग अपने पितरों की प्रिय वस्तुओं का अपनी यथाशक्ति अनुसार दान पुण्य भी करते हैं. 
माना जाता है इन सभी कार्यों को करने से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन पर हमेशा बना रहता है. हालांकि पितृपक्ष में यदि अपने पितरों का श्राद्ध ना किया जाए तो इससे उनकी आत्मा तृप्त नहीं होती है. कहा जाता है इससे उन्हें शांति भी नहीं मिलती है.

पितृ पक्ष में तर्पण की सही विधि
पितृपक्ष में बहुत से लोग रोजाना यानी 16 दिनों की अवधि तक लगातार अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं तो वहीं कुछ लोगों को जिन्हें अपने पितरों के देह त्यागने की तिथियां याद होती है वह उसी तिथि पर ब्राह्मणों को अपने पितरों के नाम से भोजन आदि कराते हैं. 
श्राद्ध वाले दिन आप ब्राह्मणों को अपने घर बुलाकर उन्हें भोजन कराएं. 
भोजन कराने के बाद जितना भी आपसे मुमकिन हो आप उन्हें दान दें, भेंट दें और उनका आशीर्वाद लें और फिर उन्हें विदा करें. 
इस दिन ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए और साथ ही प्याज और लहसुन से दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
यह जानते हैं आप? पितृपक्ष में पितरों को अंगूठे से ही क्यों दिया जाता है पानी? दरअसल महाभारत और अग्नि पुराण के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब पितरों को अंगूठे से जल दिया जाए तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इसके अलावा ग्रंथों के अनुसार बताई गई पूजा पद्धति के अनुसार बात करें तो हमारी हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है उसे पितृ तीर्थ कहा जाता है. ऐसे में पितृ तीर्थ से चढ़ाया गया जल पिंडों तक जाता है और इससे हमारे पितृ पूरी तरह से तृप्त होते हैं.
इसके अलावा श्राद्ध के दौरान अनामिका उंगली में कुशा घास से बनी अंगूठी धारण करने की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, और मूल भाग में भगवान शंकर निवास करते हैं. ऐसे में जब हम इस अंगूठी को धारण कर के श्राद्ध करते हैं तो इससे हमारे पितृ प्रसन्न और पवित्र होते हैं, हमारी पूजा स्वीकार करते हैं, और हमारे जीवन पर अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखते हैं.
पितृपक्ष में इस बात का रखें विशेष ख्याल
पितृपक्ष को लेकर ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में चतुर्थी तिथि के दिन श्राद्ध नहीं किया जाता है. ऐसा करने पर परिवार में तमाम दिक्कतें आने लगती है और लोग विवाद में भी घिर जाते हैं. इसके अलावा ऐसा कहा जाता है कि जो लोग चतुर्थी तिथि के दिन श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करते हैं उनके घर में अकाल मृत्यु का भय बनने लगता है. हालांकि इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जा सकता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो. अकाल मृत्यु का अर्थ होता है जिनकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, या दुर्घटना की वजह से हुई हो.
पितृ दोष के कारण और लक्षण और उनके निवारण के उपाय
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि पितृपक्ष की अवधि विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिनके जीवन में पितृदोष का साया हो. ऐसे में आइए कुछ लक्षणों के माध्यम से जान लेते हैं कि कहीं आपकी जीवन पर भी पितृ दोष तो नहीं है? अगर है तो इसके क्या कारण होते हैं और इसके निवारण के लिए आप क्या कुछ उपाय कर सकते हैं.
पितृ दोष के लक्षण
यदि आपके जीवन में दुख निरंतर बना रहता है या धन का अभाव रहता है तो यह पितृ दोष के लक्षण हो सकते हैं. 
सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक साधनों में बाधा उत्पन्न होना पितृ दोष का लक्षण होता है. 
अदृश्य शक्तियां यदि आपको परेशान करती है तो यह भी पितृ बाधा के लक्षण होते हैं. 
जिन जातकों के जीवन में पितृदोष का साया होता है उनके उनके माता पक्ष के लोगों के साथ संबंध अच्छे नहीं होते हैं. 
इसके अलावा पितृपक्ष का साया जिन व्यक्तियों के जीवन में होता है ऐसे लोगों की तरक्की रुक जाती है, समय पर विवाह नहीं होता है, और हो भी जाता है तो उसमें तमाम बाधाएं आने लगती हैं, काम करते में रुकावट आती है, पारिवारिक कलह क्लेश बढ़ जाता है और जीवन एक संघर्ष की तरह हो जाता है. 
ऐसे में कोई भी कदम उठाने से पहले विद्वान भोज दत्त शर्मा से परामर्श करके इस बात की जानकारी जान लें कि आपके जीवन में भी पितृदोष का साया तो नहीं? साथ ही आप पूरे नियम और विधि विधान के साथ किसी विद्वान ज्योतिषी से पितृ दोष निवारण पूजा का विकल्प भी चुन सकते हैं.  
पितृ दोष कारण
वजह जानने के बाद अब अहम सवाल उठता है कि, आखिर पितृ दोष के कारण क्या होते हैं? तो यह भी जान लेते हैं. दरअसल, 
जब किसी जातक के घर के आसपास व्यक्ति मंदिर में तोड़फोड़ हुई हो या पीपल का पेड़ काटा गया हो या पिछले जन्म के पाप की वजह से भी पितृ दोष लगता है. 
पूर्वजों से संबंधित आपने कोई गलत काम या पाप किया हो तो इससे भी पितृदोष जीवन में बन सकता है. 
यदि व्यक्ति पाप कर्मों में सलंग्न हो तो इससे भी पूर्वज रुष्ट हो जाते हैं और जीवन में पितृदोष का साया बन जाता है. 
इसके अलावा यदि आपने कभी भी गाय, कुत्ते, या किसी भी निर्दोष जानवर को सताया हो, परेशान किया हो तो भी पितृ दोष आपके जीवन में लगता है.
पितृ दोष निवारण उपाय
विशेष रूप से पितृपक्ष के दौरान पितरों का नियम पूर्वक श्राद्ध करें. इसके लिए आप हमारे विद्वान पंडितों से परामर्श लेकर या उनके मार्गदर्शन में भी इस पूजा को संपन्न कर सकते हैं. 
इसके अलावा रोज सुबह और शाम घर में संध्या वंदन के समय कर्पूर जलाएं. 
घर का वास्तु सुधारें और ईशान कोण को मजबूत बनाएं. 
हनुमान चालीसा का पाठ करें. 
श्राद्ध पक्ष के दिनों में तर्पण करें और अपने पूर्वजों के प्रति अपने मन में श्रद्धा, भक्ति, इज्जत रखें. 
अपने कर्म सुधारें. 
तामसिक भोजन का त्याग करें और जानवरों को परेशान करना बंद करें. 
परिवार में सभी को एक समान इज्जत दें और क्रोध कम करें. 
जितना मुमकिन हो कौवों, चिड़ियों, कुत्तों, और गायों को भोजन कराते रहें. 
पीपल और बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं. 
केसर का तिलक लगाएं.
महत्वपूर्ण जानकारी: श्राद्ध का सबसे उपयुक्त समय है कुतुप बेला. क्या होता है यह समय आइए जानते हैं. दरअसल मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में 16 दिनों तक हमेशा श्राद्ध को कुतुप काल में ही संपन्न किया जाना चाहिए. सवाल उठता है कि आखिर यह कुतुप काल क्या होता है? दरअसल दिन का आठवाँ मुहूर्त कुतुप काल कहलाता है. 
दिन के अपराहन 11:36 से लेकर 12:24 तक का समय श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है और इसे ही कुतुप काल कहते हैं. ऐसे में आप मुमकिन हो तो इसी समय अपने पितरों के निमित्त धूप जलाएं, अर्पण  करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं.
भोज दत्त शर्मा ,  वैदिक ज्योतिष 
Astrology By Bhoj Sharma

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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