गणेश विसर्जन शुक्रवार, 9 सितम्बर 2022 को है!

गणेश विसर्जन शुक्रवार, 9 सितम्बर 2022 को है!

प्रेषित समय :20:42:37 PM / Thu, Sep 8th, 2022

गणेश विसर्जन के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) -05;59  से  10;38 
मुहूर्त (चर) -16;50 से 18;23 
मुहूर्त (शुभ) -12;11  से 13;44 
रात्रि मुहूर्त (लाभ) - 21;17  से 22;22
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - 00 ;11  से 04 ;32 ,10  सितम्बर 
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ -08  सितम्बर  2022 को 21;02  बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - 09 सितम्बर 2022  को 18 ; 07  बजे
गणेश विसर्जन, गणेश उत्‍सव का एक अभिन्‍न अंग है  

जिसके बिना गणेश उत्‍सव पूर्ण नही होता. इसके अर्न्‍तगत गणेश जी की प्रतिमा को गणेश चतुर्थी के दिन स्‍थापित किया जाता है और 10 दिन बाद अनन्‍त चतुर्दशी को उसी गणेश प्रतिमा के विसर्जन के साथ इस गणेश उत्‍सव का समापन होता है.

जो भी व्‍यक्ति गणेश चतुर्थी के बारे में जानता है, लगभग हर वह व्‍यक्ति ये भी जानता है कि गणेश चतुर्थी को स्‍थापित की जाने वाली गणपति प्रतिमा को ग्‍यारहवें दिन यानी अनन्‍त चतुर्दशी के दिन किसी बहती नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित भी किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि आखिर गणपति विसर्जन किया क्‍यों जाता है. गणपति विसर्जन के संदर्भ में अलग-अलग लोगों व राज्‍यों में मान्‍यताऐं भी अलग-अलग हैं, जिनमें से कुछ को हमने यहां बताने की कोशिश्‍ा की है.

हिन्‍दु धर्म के अनुसार ईश्‍वर सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी और ये संसार भी दो हिस्‍सों में विभाजित है, जिसे देव लोक व भू लोक के नाम से जाना जाता है. देवलोक में सभी देवताओं का निवास है जबकि भूलोक में हम प्राणियों का.

देवलोक के सभी देवी-देवता निर्गुण निराकार हैं, जबकि हम भूलोकवासियों को समय-समय पर विभिन्‍न प्रकार की भौतिक वस्‍तुओं, सुख-सुविधाओं की जरूरत होती है, जिन्‍हें देवलोक के देवतागण ही हमें प्रदान करते हैं और क्‍योंकि देवलोक के देवतागण निर्गुण निराकार हैं, इसलिए वे हम भूलोकवासियों की भौतिक कामनाओं को तब तक पूरा नहीं कर सकते, जब तक कि हमारी कामनाऐं उन तक न पहुंचे और भगवान गण‍पति हमारी भौतिक कामनाओं को भूलोक से देवलोक तक पहुंचाने का काम करते हैं.

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की मूर्ति स्‍थापना की जाती है और निर्गुण निराकार भगवान गणेश काे देवलोक से भूलोक की इस मूर्ति में सगुण साकार रूप में स्‍थापित होने हेतु विभिन्‍न प्रकार की पूजा-अर्चना, आराधना, पाठ करते हुए आह्वान किया जाता है और ये माना जाता है भगवान गण‍पति गणेश चतुर्थी से अनन्‍त चतुर्दशी तक सगुण साकार रूप में इसी मूर्ति में स्‍थापित रहते हैं, जिसे गणपति उत्‍सव के रूप में मनाया जाता है.

ऐसी मान्‍यता है कि इस गणपति उत्‍सव के दौरान लोग अपनी जिस किसी भी इच्‍छा की पूर्ति करवाना चाहते हैं, वे अपनी इच्‍छाऐं, भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं. फिर अन्‍त में भगवान गणपति की इसी मूर्ति को अनन्‍त चतुर्दशी के दिन बहते जल, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है ताकि भगवान गणपति इस भूलोक की सगुण साकार मूर्ति से मुक्‍त होकर निर्गुण निराकार रूप में देवलोक जा सकें और देवलोक के विभिन्‍न देवताओं को भूलोक के लोगों द्वारा की गई प्रार्थनाऐं बता सकें, ताकि देवगण, भूलोकवासियों की उन इच्‍छाओं को पूरा कर सकें, जिन्‍हें भूलोकवासियों ने भगवान गणेश की मूर्ति के कानों में कहा था.

इसके अलावा धार्मिक ग्रन्‍थों के अनुसार एक और मान्‍यता है कि श्री वेद व्‍यास जी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश जी को गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्‍त चतुर्थी तक लगातार 10 दिन तक सुनाई थी. यह कथा जब वेद व्‍यास जी सुना रहे थे तब उन्‍होंने अपनी आखें बन्‍द कर रखी थी, इसलिए उन्‍हें पता ही नहीं चला कि कथा सुनने का ग‍णेशजी पर क्‍या प्रभाव पड रहा है.
जब वेद व्‍यास जी ने कथा पूरी कर अपनी आंखें खोली तो उन्‍होंने देखा कि लगातार 10 दिन से कथा यानी ज्ञान की बातें सुनते-सुनते गणेश जी का तापमान बहुत ही अधिक बढा गया है, अन्‍य शब्‍दों में कहें, तो उन्‍हें ज्‍वर हो गया है. सो तुरंत वेद व्‍यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुअा.

इसलिए मान्‍यता ये है कि गणेश स्‍थापना के बाद से अगले 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्‍छाऐं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं, कि चतुर्दशी को बहते जल, तालाब या समुद्र में विसर्जित करके उन्‍हें फिर से शीतल यानी ठण्‍डा किया जाता है.

इसके अलावा एक और मान्‍यता ये है कि कि वास्तव में सारी सृष्टि की उत्पत्ति जल से ही हुई है और जल, बुद्धि का प्रतीक है तथा भगवान गणपति, बुद्धि के अधिपति हैं. जबकि भगवान गणपति की प्रतिमाएं नदियों की मिट्टी से बनती है. अत: अनन्‍त च‍तुर्दशी के दिन भगवान गणपति की प्रतिमाओं को जल में इसीलिए विसर्जित कर देते हैं क्योंकि वे जल के किनारे की मिट्टी से बने हैं और जल ही भगवान गणपति का निवास स्‍थान है. 

गणपति बप्‍पा मोरया”
गणपति बप्‍पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गण‍पति जी का मयूरेश्‍वर स्‍वरूप माना जाता है. गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्‍याचार से बचने हेतु देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया. सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर (मोर) को अपना वाहन चुना और छह भुजाओं वाला अवतार धारण किया. इस अवतार की पूजा भक्‍त लोग “गणपति बप्‍पा मोरया” के जयकारे के साथ करते हैं, और यही कारण है की जब गणेश जी को विसर्जित किया जाता है तो गणपति बप्‍पा मोरया, अगले बरस तू जल्‍दी आ का नारा लागया जाता है.

कैसे करते हैं गणपति विसर्ज भगवान गणपति जल तत्‍व के अधिपति है और यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन ही भगवान गणपति की पूजा-अर्चना करके गणपति-प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. शास्‍त्रों के अनुसार मिट्टी की बनी गणेश जी की मूर्तियों को जल में विसर्जित करना अनिवार्य है. इसके लिए लोग गणेश जी की प्रतिमा को लेकर ढोल-नगारों के साथ एक कतार में निकलतें है, नाचते-गाते बहती नदी, तालाब या समुन्‍द्र के पास जाकर बड़े ही हर्षो उल्‍लास के साथ उनकी आरती करते हैं, और उसके बाद जब गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है तो सभी भक्‍त मिलकर मंत्रोउच्‍चारण के जरिये प्रार्थना करते है. जो निम्‍न प्रकार से होती है

मूषिकवाहन मोदकहस्त, चामरकर्ण विलम्बितसूत्र .
वामनरूप महेस्वरपुत्र, विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥

हे भगवान विनायक. आप सभी बाधाओं का हरण करने वाले हैं. आप भगवान शिव जी के पुत्र है, और आप अपने वाहन के रूप में मुस्‍कराज को लिये है. आप अपने हाथ में लड्डु लिये, और विशाल कान, और लम्‍बी सूण्‍ड लिये है. मैं पूरी श्रद्धा के सा‍थ आप को नमस्‍कार करता हूँ.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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