शिवतांडव स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

शिवतांडव स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

प्रेषित समय :20:36:24 PM / Mon, Aug 15th, 2022

शिव तांडव स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली शिव स्तोत्र है, जिसके नित्य पाठ से भगवान शिव की भक्ति और उनकी कृपा प्राप्त होती है. इस तांडव स्तोत्र की रचना लंकापति रावण के द्वारा की गयी थी.

रावण परम विद्वान और महान शिवभक्त था. उसने भगवान शिव को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न करके बहुत सारे वरदान प्राप्त किये थे.

एक बार रावण अपनी शक्ति के मद में चूर होकर और भगवान के समक्ष अपनी भक्ति के प्रदर्शन के उद्देश्य से कैलाश पर्वत को अपनी भुजाओं में उठा लिया.

अन्तर्यामी भगवान शिव रावण के मनोभाव को समझकर उसके अहंकार के नाश के लिए कैलाश पर्वत का भार बढ़ाने लगे जिसे रावण सहन नहीं कर सका.

तब उसे अपनी गलती का आभाष हुआ और उसने धैर्य का परिचय देते हुए क्षणमात्र में ही शिव तांडव स्तोत्र रचकर भगवान शिव को गाकर सुनाया.

जिसे सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और रावण को मनोवांछित वर प्रदान किया.

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन मस्तिष्क शांत रहता है.

जीवन में आने वाली बाधायों से मुक्ति मिलती है.

शिव तांडव स्तोत्र के नियमित रूप से जाप करने से आपको स्वस्थ्य संबंधित रोगों से जल्द छुटकारा मिलता है.

शिव तांडव स्तोत्र के जाप से आप ना केवल धनवान बल्कि गुणवान भी बन सकते हो. इससे आपको शिव की विशेष कृपा होगी और जीवन में शांति का अनुभव होगा.

नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि कलाओ में जुड़े लोगों को शिव तांडव स्तोत्र से अच्छा लाभ मिलता है.

यदि आपसे रावण की तरह अनजाने में कोई गलती हो जाती है तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आपकी गलतियों की क्षमा आपको जल्द मिल जाएगी.

कालसर्प से पीड़ित लोगों को यह स्त्रोत काफी मदद करता है.

शनि काल है और शिव कालो के काल (महाकाल) है अत: शनि से पीड़ित लोगों को इसके पाठ से लाभ मिलता है.

श्रीशिवतांडव स्तोत्रं

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌.

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है, और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है, और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें.

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि.

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है, और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं.

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे.

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं.

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे.

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है.

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः.

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें, जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है.

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌.

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं.

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

Leave a Reply