ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है. यह शिवजी का चौथा प्रमुख ज्योतिर्लिंग कहलाता है. ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग के दो रुपों ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की पूजा की जाती है.
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग को शिव महापुराण में ‘परमेश्वर लिंग’ कहा गया है. यह परमेश्वर लिंग इस तीर्थ में कैसे प्रकट हुआ अथवा इसकी स्थापना कैसे हुई, इस सम्बन्ध में शिव पुराण की कथा इस प्रकार है.
शिव पुराण में वर्णित कथा-
एक बार मुनिश्रेष्ठ नारद ऋषि घूमते हुए गिरिराज विन्ध्य पर पहुँच गये. विन्ध्य ने बड़े आदर-सम्मान के साथ उनकी विधिवत पूजा की. ‘मैं सर्वगुण सम्पन्न हूँ, मेरे पास हर प्रकार की सम्पदा है, किसी वस्तु की कमी नहीं है’- इस प्रकार के भाव को मन में लिये विन्ध्याचल नारद जी के समक्ष खड़ा हो गया.
अहंकारनाशक श्री नारद जी विन्ध्याचल की अभिमान से भरी बातें सुनकर लम्बी साँस खींचते हुए चुपचाप खड़े रहे. उसके बाद विन्ध्यपर्वत ने पूछा- ‘आपको मेरे पास कौन-सी कमी दिखाई दी? आपने किस कमी को देखकर लम्बी साँस खींची?’
नारद जी ने विन्ध्याचल को बताया कि तुम्हारे पास सब कुछ है, किन्तु मेरू पर्वत तुमसे बहुत ऊँचा है. उस पर्वत के शिखरों का विभाग देवताओं के लोकों तक पहुँचा हुआ है. मुझे लगता है कि तुम्हारे शिखर के भाग वहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे.
वहाँ स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया. प्रणव के अन्तर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए, उन्हें ‘ओंकार’ नाम से जाना जाता है. इसी प्रकार पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, वह ‘परमेश्वर लिंग’ के नाम से विख्यात हुई.
परमेश्वर लिंग को ही ‘अमलेश्वर’ भी कहा जाता है. इस प्रकार भक्तजनों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाले ‘ओंकारेश्वर’ और ‘परमेश्वर’ नाम से शिव के ये ज्योतिर्लिंग जगत में प्रसिद्ध हुए.
जय जय गिरिजालङ्कृतविग्रह
जय जय विनताखिलदिक्पाल.
जय जय सर्वविपत्तिविनाशन
जय जय शङ्कर दीनदयाल ॥ १॥
जय जय सकलसुरासुरसेवित
जय जय वाञ्छितदानवितन्द्र.
जय जय लोकालोकधुरन्धर
जय जय नागेश्वर धृतचन्द्र ॥ २॥
जय जय पण्डितपुरीनिवासिन्
जय जय करुणाकल्पितलिङ्ग.
जय जय संसृतिरचनाशिल्पिन्
जय जय भक्तहृदम्बुजभृङ्ग ॥ ३॥
जय जय भोगिफणामणिरञ्जित
जय जय भूतिविभूषितदेह.
जय जय पितृवनकेलिपरायण
जय जय गौरीविभ्रमगेह ॥ ४॥
जय जय गाङ्गतरङ्गलुलितजट
जय जय मङ्गलपूरसमुद्र.
जय जय बोधविजृम्भणकारण
जय जय पूरितपूजककाम ॥ ७॥
जय जय गङ्गाधर विश्वेश्वर
जय जय पतितपवित्रविधान.
जय जय वंवंनादकृपाकर (बंबं)
जय जय शिव शिव सौख्यनिधान ॥
य इमं शिवजयवादमुदारं पठति सदाशिवधाम्नि.
तस्य सदा शिवशासन योगान्माद्यति सम्पन्नाम्नि ॥ ९॥
इति श्रीदुर्गाप्रसादद्विवेदीविरचिता शिवगाथा समाप्ता.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी: निकाय चुनाव के बीच भाजपा प्रत्याशी ईसाई धर्म छोड़कर बने हिंदू, कहा- मेरे पूर्वज भी हिंदू थे
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