रामपुर और आजमगढ़ की हार से सपा की चिंताएं बढ़ीं, कहीं छिटक न जाए जनाधार 

रामपुर और आजमगढ़ की हार से सपा की चिंताएं बढ़ीं, कहीं छिटक न जाए जनाधार

प्रेषित समय :10:19:56 AM / Tue, Jun 28th, 2022

आजमगढ़ और रामपुर में मिली हार ने समाजवादी पार्टी के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ा दी है। खासतौर पर यादव बेल्ट में खिसकता जनाधार और मुस्लिम मतों का विभाजन सपा के लिए वर्ष 2024 के सियासी समर में बड़ी मुसीबत बनते नज़र आ रहे हैं। कमोबेश उपचुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि मौजूदा हालात के मद्देनज़र सपा मुखिया अखिलेश यादव को पार्टी में टिकट के लिए कद्दावर नेताओं के दबाव से निपटने के साथ ही स्थानीय संगठन को तरजीह देने की जुगत बिठाना अहम होगा। वहीं अपने गढ़ में मुस्लिम-यादव वोट छिटकने से भी रोकना जरूरी होगा।

सपा में अंदरखाने चर्चा है कि धर्मेंद्र यादव आजमगढ़ से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। वह अपनी बदायूं सीट पर ही काम करने के लिए अड़े थे लेकिन हाल ही में सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के दबाव में धर्मेंद्र यादव को बदायूं से लड़ाया गया। दरअसल, यह मिशन-2024 का ही मैनेजमेंट था। स्वामी प्रसाद चाहते हैं कि उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को 2024 में बदायूं से ही लड़ाया जाए। आजमगढ़ में परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव के लिए सियासी स्कोप बना रहे, नतीजतन, धर्मेंद्र को आजमगढ़ से उतारा गया।

स्थानीय सपा संगठन में इसे लेकर खिन्नता रही कि यदि मौका देना था तो किसी स्थानीय नेता को भी चुनाव लड़ाया जा सकता था। अखिलेश को कुछ ऐसी ही स्थिति से रामपुर में भी जूझना पड़ा। लोकसभा चुनावों से पहले आजम खां की नाराज़गी का सबब भी समझने में समाजवादी पार्टी नाकाम रही थी, ऐसा भी नहीं है। आजम अपने और अपने चहेतों के लिए ही उपचुनाव में टिकट चाहते थे लिहाजा नाराज़गी को हथियार बनाया गया। कहना गलत न होगा कि सपा मुखिया इस दांव को भी सलीके से संभाल नहीं सके। इस तथ्य को भी नकार दिया गया कि वर्ष 2019 में सपा-बसपा साथ में थे और आजम खां की जीत हुई थी। बसपा की नामौजूदगी में क्या सियासी समीकरण होगा उसे भी समझने में सपा मुखिया ने चूक की।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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