शिव निवास का विचार, रुद्राभिषेक का फल

शिव निवास का विचार, रुद्राभिषेक का फल

प्रेषित समय :20:55:23 PM / Sun, May 22nd, 2022

किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर, नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है.
"परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महा विपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है."

रुद्राभिषेक करने की तिथियां-
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है.
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है.
 किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है.

रुद्राभिषेक क्या है ?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना. रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना. यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है. वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है. अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं. शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना. वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है.
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है. रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं. वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं.
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?

प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई. ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है. परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ. इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए. इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए. कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ.

रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि 
रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद

पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप om के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है .अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता ! स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है . संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है . लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है ! 

रुद्राभिषेक से लाभ
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा. रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं .

रुद्राभिषेक कैसे कर

1 जल से अभिषेक
हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें.
सर्वप्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें तत्पश्चाततांबे को छोड़ अन्य किसी भी पात्र विशेषकर चांदी के पात्र में शुद्ध जल भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें,  om इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करेत हुए om तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

2 दूध से अभिषेक
शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
 भगवान शिव के प्रकाशमय स्वरूप का मानसिक ध्यान करें.
अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए. खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए. इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं. तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है. क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं. पात्र में दूध भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, om श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए om सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
3 फलों का रस
अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें.
 भगवान शिव के नील कंठ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में गन्ने का रस भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, om कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -om ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
4 सरसों के तेल से अभिषेक
ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें.
भगवान शिव के प्रलयंकर स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में सरसों का तेल भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें  om भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए om नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें,  शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
5 चने की दाल
 किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें.
भगवान शिव के समाधी स्थित स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में चने की दाल भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें,  om यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें,  पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -om शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
6 काले तिल से अभिषेक
तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें. इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के नीलवर्ण स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में काले तिल भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, om हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -om क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
7 शहद मिश्रित गंगा जल
संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें.
सबसे पहले भगवान शिव के चंद्रमौलेश्वर स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में शहद मिश्रित गंगा जल भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, om चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -om वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें.
8 घी व शहद
 रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें.
इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के त्रयम्बक स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में घी व शहद भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें फिर om धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -om ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
9  कुमकुम केसर मिश्रित जल
आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर के मिश्रण से अभिषेक करें.
सर्वप्रथम भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें चाँदी अथवा स्टील के पात्र में कुमकुम केसर और पंचामृत भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – om उमायै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र om नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-om नम: शिवाय फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें. अभिषेक का मंत्र-om ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा  शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

रूद्राभिषेक पूजा प्रक्रिया:

रुद्र अभिषेक का विस्तृत संस्करण होमा या आग में यज्ञ संबंधी वस्तुएं चढ़ाने के बाद किया जाता है. यह सिद्ध पुजारियों द्वारा किया जाता है. इसमें शिवलिंग को उत्तर दिशा में रखते हैं. भक्त शिवलिंग के निकट पूर्व दिशा की ओर मुंख करके बैठते हैं. अभिषेक गंगा जल से शुरू होता है और गंगा जल के साथ हर तरह के अभिषेक के बीच शिवलिंग को स्नान कराने के बाद अभिषेक के लिए आवश्यक सभी सामग्री शिवलिंग पर अर्पण की जाती है. अंत में, भगवान को विशेष व्यंजन अर्पित किए जाते हैं और आरती की जाती है. अभिषेक से एकत्रित गंगा जल को भक्तों पर छिड़का जाता है और पीने के लिए भी दिया जाता है, जिसे माना जाता है कि सभी पाप और बीमारियां दूर हो जाती हैं. रूद्राभिषेक की संपूर्ण प्रक्रिया में रूद्राम या 'ओम नम: शिवाय' का जाप किया जाता है.

रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है, न ही इससे बिना रुद्राभिषेक ही संभव है और न ही इसके बिना शिव पूजन ही किया जा सकता है. यह शुक्लयजुर्वेद का मुख्य भाग है. इसमें मुख्यत: आठ अध्याय हैं पर अंतिम में शान्त्यध्याय: नामक नवम तथा स्वस्तिप्रार्थनामन्त्राध्याय: नामक दशम अध्याय भी हैं. इसके प्रथम अध्याय में कुल 10 श्लोक है तथा सर्वप्रथम गणेशावाहन मंत्र है, प्रथम अध्याय में शिवसंकल्पसुक्त है. द्वितीय अध्याय में कुल 22 वैदिक श्लोक हैं जिनमें पुरुसुक्त (मुख्यत: 16 श्लोक) है. इसी प्रकार आदित्य सुक्त तथा वज्र सुक्त भी सम्मिलित हैं. पंचम अध्याय में परम् लाभदायक रुद्रसुक्त है, इसमें कुल 66 श्लोक हैं. छठें अध्याय के पंचम श्लोक के रूप में महान महामृत्युंजय श्लोक है. सप्तम अध्याय में 7 श्लोकों की अरण्यक श्रुति है प्रायश्चित्त हवन आदि में इसका उपयोग होता है. अष्टम अध्याय को नमक-चमक भी कहते हैं जिसमें 24 श्लोक हैं.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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