शंख के रहस्य

शंख के रहस्य

प्रेषित समय :20:45:09 PM / Sat, May 21st, 2022

भारतीय संस्कृति में शंख को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है. इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है. शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं. कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है. 

यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है. विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है. समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है. ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की. उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है.
हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है. हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है. शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है. 

शंख हर युग में लोगों को आकर्षित करते रहे है. देव स्थान से लेकर युद्ध भूमि तक, सतयुग से लेकर आज तक शंखों का अपना एक अलग महत्त्व है. पूजा में इसकी ध्वनि जहाँ श्रद्धा वा आस्था का भाव जगाती है वहीं युद्ध भूमि में जोश पैदा करती है. रण भूमि में शंखों का पहली बार उपयोग देव-असुर संग्राम में हुआ था. देव दानवों के इस युद्ध में सभी देव-दानव अपने अपने शंखों के साथ युद्ध भूमि में आए थे. शंखों कि ध्वनि के साथ युद्ध शुरू होता और उसी के साथ ख़त्म होता था. तभी से यह माना जाता है कि हर देवी-देवता का अपना एक अलग शंख होता है.

शंख का वास्तु महत्त्व 

शंख का सिर्फ़ धार्मिक वा देव लोक तक ही महत्त्व नहीं है. इसका वास्तु के रूप में महत्त्व भी माना जाता है. वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं. यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है. इसे पापनाशक बताया जाता है. अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है. कहते है कि जिस घर में नियमित शंख ध्वनि होती है वहां कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है. इनके पूजन से श्री समृद्धि आती है.

शंख पूजा का महत्त्व 

सभी वैदिक कार्यों में शंख का विशेष स्थान है. शंख का जल सभी को पवित्र करने वाला माना गया है, इसी वजह से आरती के बाद श्रद्धालुओं पर शंख से जल छिड़का जाता है. साथ ही शंख को लक्ष्मी का भी प्रतीक माना जाता है, इसकी पूजा महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली होती है. इसी वजह से जो व्यक्ति नियमित रूप से शंख की पूजा करता है उसके घर में कभी धन अभाव नहीं रहता. 

शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का स्वरूप कहे जाने वाले माह मार्गशीर्ष में उन्हीं के पंचजन्य शंख की पूजा का विशेष महत्त्व है. अगहन मास में शंख पूजा से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं. शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है. शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है.

शंख-ध्वनि / शंख बजाना 
शंख नाद का प्रतीक है. नाद जगत में आदि से अंत तक व्याप्त है. सृष्टि का आरंभ भी नाद से ही होता है और विलय भी उसी में होता है. दूसरे शब्दों में शंख को ॐ का प्रतीक माना जाता है, इसलिए पूजा-अर्चना आदि समस्त मांगलिक अवसरों पर शंख ध्वनि की विशेष महत्ता है. हिन्दू संस्कृति में पूजा और अनुष्ठान के समय शंख बजाने की परंपरा है जो बहुत पुरानी है. जैन, बौद्ध, शाक्त, शैव, वैष्णव आदि सभी संप्रदायों में शंख ध्वनि शुभ मानी गई है. तीसरा ये कि किसी राजदरबार में राजा के आगमन की सूचना शंख बजाकर दी जाती थी और सबसे प्रचलित शंख ध्वनि युद्ध के प्रारंभ और अंत की सूचना के लिए की जाती थी.

शंख के प्रकार
महालक्ष्मी 
वामावृत्ति शंख
भगवान विष्णु जी 
दक्षिणावृत्ति शंख
गणेश शंख 
विघ्नहर्ता शंख

शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है. उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं. शंख की आकृति (उदर) के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं. ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख. जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है. जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है. 

गणेश शंख / विघ्नहर्ता शंख 
समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई. जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ. जिनमें सर्वप्रथम पूजित देव गणेश के आकर के गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ जिसे गणेश शंख कहा जाता है. इसे प्रकृति का चमत्कार कहें या गणेश जी की कृपा की इसकी आकृति और शक्ति हू-ब-हू गणेश जी जैसी है. गणेश शंख प्रकृति का मनुष्य के लिए अनूठा उपहार है. गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की विघ्न- बाधा और दरिद्रता दूर होती है. जहाँ दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग केवल और केवल लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है. वही श्री गणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है. इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते है.

किसी भी बुधवार को प्रातः स्नान आदि से निवृत्ति होकर विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्री गणेश शंख को अपने घर या व्यापार स्थल के पूजा घर में रख कर धूप- दीप पुष्प से संक्षिप्त पूजन करके रखें. ये अपने आप में चैतन्य शंख है. इसकी स्थापना मात्र से ही गणेश कृपा की अनुभूति होने लगाती है. इसके सम्मुख नित्य धूप- दीप जलना ही पर्याप्त है किसी जटिल विधि- विधान से पूजा करने की जरुरत नहीं है. भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे. जबकि उन्होंने त्रिपुराशुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था.

महालक्ष्मी शंख 
इसका आकार श्री यंत्र क़ी भांति होता है. इसे प्राक्रतिक श्री यंत्र भी माना जाता है. जिस घर में इसकी पूजा विधि विधान से होती है वहाँ स्वयं लक्ष्मी जी का वाश होता है. इसकी आवाज़ सुरीली होती है. विद्या क़ी देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है. वे स्वयं वीणा शंख कि पूजा करती है. माना जाता है कि इसकी पूजा वा इसके जल को पीने से मंद बुद्धि व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है.

दक्षिणावर्ती शंख 
स्वयं भगवान विष्णु अपने दाहिने हाथ में दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है. पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था. जिसे स्वयं भगवान विष्णु जी ने धारण किया था. यह ऐसा शंख है जिसे बजाया नहीं जाता, इसे सर्वाधिक शुभ माना जाता है.

महाभारत युद्ध और शंख 
महाभारत में युद्ध के आरंभ, युद्ध के एक दिन समाप्त होने आदि मौकों पर शंख-ध्वनि करने का ज़िक्र आया है. महाभारत काल में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे. महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया था. महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख को बजा कर युद्ध का जयघोष किया था. कहते है कि यह शंख जिसके पास होता है उसकी यश गाथा कभी कम नहीं होती. भीष्म ने पोडरिक नामक शंख बजाया था. इस शंख की आवाज़ से कौरवों की सेना में हलचल मच गई थी. 

शंख की उत्पत्ति
शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है. सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा. अन्त में विष्णु ने इस दानव का वध किया. शंखचूड़ के वध के पश्चात्‌ सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई. भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है. अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है. इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है. 

शंख की उत्पत्ति के संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है. भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया. तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ. कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया. उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है.

शिव और शंख
शिव पुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ. शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था. दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने विष्णु के लिए घोर तप किया और तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए. विष्णु ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनों लोको के लिए अजेय पुत्र का वर मांगा और विष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए. तब दंभ के यहां शंखचूड का जन्म हुआ और उसने पुष्कर में ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया. ब्रह्मा ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया फिर वे अंतध्र्यान हो गए. जाते-जाते ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी. ब्रह्मा की आज्ञा पाकर तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया. ब्रह्मा और विष्णु के वर के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया.

शंख की स्थापना
प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है. निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है. रुद्र, गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है. इसका धूप, दीप, नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए. शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं. 

पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है. इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए. गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन, बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है. शंख का तांत्रिक-साधना में भी उपयोग किया जाता है. इसके लिए लघु शंखमाला का प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है.

शंख के वैज्ञानिक पहलू
शंख का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी है. वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं. अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है. इससे आसपास का वातावरण तता पर्यावरण शुद्ध रहता है. आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, कास प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं.

ऋषि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है. बच्चा स्वस्थ रहता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं.

रूक-रूक कर बोलने व हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल का पान करें, तो उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा. दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक महौषधि है.
हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है. यजुर्वेद में कहा गया है कि यस्तु शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः, वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख-ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद करता है.
1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूजा के समय शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर के आस-पास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है. क्योकि 
यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपिक्षित है. गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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