बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर नए काम की शुरुआत करना बहुत ही शुभ माना जाता

बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर नए काम की शुरुआत करना बहुत ही शुभ माना जाता

प्रेषित समय :19:10:31 PM / Sun, May 15th, 2022

भगवान बुद्ध के जन्म दिवस को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा 16 मई 2022 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी. बुद्ध पूर्णिमा को “बुद्ध जयन्ती” और “वैसाक” और “वैशाख पूर्णिमा” नामों से भी पुकारा जाता है.

बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भूमि, भवन और वाहन की खरीद के साथ ही पदभार ग्रहण करना बहुत ही शुभ माना जाता है. नए काम की शुरुआत के लिए भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है.

ईसा पूर्व कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन की धर्मपत्नी महारानी महामाया देवी की कोख से नेपाल की तराई के लुम्बिनी वन में जन्मे सिद्धार्थ ही आगे चलकर बुद्ध कहलाए. बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ में भारतीय पंचांग के वैशाख मास की पूर्णिमा की पवित्रता की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है.

वैशाखी पूर्णिमा पावनता की त्रयी है. इस पुनीत तिथि को ही बुद्ध का अवतरण हुआ, आत्मज्ञान अर्थात बोध हुआ और महापरिनिर्वाण हुआ.

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में संतुलन की धारणा को महत्व दिया. उन्होंने इस बात पर बहुत बल दिया कि भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है. भोग की अति से चेतना के चीथड़े होकर विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं. परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की दहलीज पर विनाश डेरा डाल देता है.

ठीक वैसे ही तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है. परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति अलभ्य हो जाती है, क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित-से मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना ठीक वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्मित करने का स्वप्न संजोना.

गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं : पहला यह कि दुःख है. दूसरा यह कि दुःख का कारण है. तीसरा यह कि दुःख का निदान है. चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है.

गौतम बुद्ध के मत में अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है. अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है. मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है, अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेयस्कर है.

गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं. ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी. गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री के मोगरों की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है. वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता. अबैर से मैत्री से ही बैर मिटता है.

गौतम बुद्ध के बार में 10 अनसुनी बातें.

1 यह संयोग है या कि प्लानिंग कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी वन में ईसा पूर्व 563 को हुआ. उनकी माता महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था वहीं पुत्री का जन्म दिया. इसी दिन (पूर्णिमा) 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के ‍नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में विदा कह गए.

2 बुद्ध का जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया. सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था. सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था.

3 गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे. शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ. यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया. बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे.

4 बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी. राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो. बस यही गलती शुद्धोदन ने कर दी और सिद्धार्थ के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया.

5 कहते हैं कि एक बार वे शाक्यों के संघ में सम्मलित होने गए. वहां उनका विचारिक मतभेद हो गया. मन में वैराग्य भाव तो था ही, इसके अलावा क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे. वह यह कि फांसी चाहते हो या कि देश छोड़कर जाना. सिद्धार्थ ने कहा कि जो आप दंड देना चाहें. शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और हमें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें, मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा. आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी.

आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्यागकर 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे. वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर दिया. उस वक्त उनकी आयु थी 29 वर्ष. कठिन तप के बाद उन्होंने बोधी प्राप्त की. बोधी प्राप्ति की घटना ईसा से 528 वर्ष पूर्व की है जब सिद्धार्थ 35 वर्ष के थे. भारत के बिहार में बोधगया में आज भी वह वटवृक्ष विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है. सम्राट अशोक इस वृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले गए थे, वहां भी यह वृक्ष है.

6 कुछ लोग कहते हैं कि श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में हमें शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है. कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया. कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे. इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे. इसका क्रम इस प्रकार बताया गया है.

शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए. इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे. राहुल को कहीं-कहीं लांगल लिखा गया है. राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए. इस तरह का उल्लेख शाक्यवंशी समाज की पुस्तकों में मिलता है. शाक्यवार समाज भी ऐसा ही मानता है.

7 भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा. तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया. कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए. अंतत: थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ. अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी. उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के कहीं. देह छोड़ने के पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे 'अप्प दिपो भव:...सम्मासती. अपने दीये खुद बनो...स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो.

8 बुद्ध के प्रमुख गुरु गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त थे जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) थे. दूसरी ओर बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व या बोधिधर्मा, विमल मित्र, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि का नाम लिया जाता है.

बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई. बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी. बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में संघ के दो हिस्से हो गए. हीनयान और महायान. सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया था. उसके बाद भी भरपूर प्रयास किए गए सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव आता रहा.

9 शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं. यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं. धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया. सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है. 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो ‍कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है. त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक. सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है. इसके अलावा बौद्ध जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं. जिनके आधार पर ही ईसप की कथाएं निर्मित हुई.

10 पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं. चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी जगत की तादाद बढ़ी है. सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है, क्योंकि बौद्ध धर्म, ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था.

दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों. दुनिया भर के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है. दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है. बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है. बुद्ध के ध्‍यान और ज्ञान पर बहुत से राष्ट्रों में शोध हो रहे हैं.

इस दिन को दैवीयता का दिन माना जाता है इसी दिन भगवान बुद्ध, देवी छिन्नमस्तिका और श्री कूर्म अवतार का जन्म भी हुआ था
इस दिन ध्यान दान और स्नान विशेष लाभकारी होता है
इस दिन ब्रह्म देव ने काले और सफ़ेद तिलों का निर्माण भी किया था अतः इस दिन तिलों का प्रयोग जरूर करना चाहिए.
इस तरह करें स्नान और ध्यान
 प्रातः काल स्नान के पूर्व संकल्प लें इसके बाद पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें. फिर स्नान करना आरम्भ करें. स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य दें. साफ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करें , फिर मंत्र जाप करें.

आज के दिन इन मंत्रों का जाप देता है समृद्धि
 ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः"
नमः शिवाय"
 ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः"
मंत्र जाप के पश्चात सफ़ेद वस्तुओं और जल का दान करें.
चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं
आज इन कर्मो से बचें
इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे. 
झूठ बोलना एवं धोखा देने से बचें.
इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है. 
पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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