कूर्म जयंती महत्व

कूर्म जयंती महत्व

प्रेषित समय :19:30:04 PM / Sat, May 14th, 2022

कूर्म जयंती:   15 मई 2022 .  भगवान विष्णु ने कूर्म(कछुए) का अवतार लिया था और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करने समुद्र मंथन में सहायता की थी.

कूर्म अवतार कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस अवतार में भगवान के कच्छप रूप के दर्शन होते हैं. कूर्म अवतार का संबंध समुद्र मंथन के प्रायोजन से ही हो पाया. धर्म ग्रंथों में निहित कथा कहती है कि दैत्यराज बलि के शासन में असुर दैत्य व दानव बहुत शक्तिशाली हो गए थे और उन्हें दैत्यगुरु शुक्राचार्य की महाशक्ति भी प्राप्त थी.
देवता उनका कुछ भी अहित न कर सके क्योंकि एक बार अपने घमंड में चूर देवराज इन्द्र को किसी कारण से नाराज़ हो कर महर्षि दुर्वासा ने श्राप देकर श्रीहीन कर दिया था जिस कारण इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे. इस अवसर का लाभ उठाकर दैत्यराज बलि नें तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवतागण भटकने लगे.
सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें इस संकट से बाहर निकालें. तब ब्रह्मा जी संकट से मुक्ति के लिए देवताओं समेत भगवान विष्णु जी के समक्ष पहुँचते हैं और भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाते हैं. देवगणों की विपदा सुनकर भगवान विष्णु उन्हें दैत्यों से मिलकर समुद्र मंथन करने के कि सलाह देते हैं जिससे क्षीर सागर को मथ कर देवता उसमें से अमृत निकाल कर उस अमृत का पान कर लें और अमृत पीकर वह अमर हो जाएंगे तथा उनमें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा.
भगवान विष्णु के आदेश अनुसार इंद्र दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए जाते हैं. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया जाता है. मंदराचल को उखाड़ उसे समुद्र की ओर ले चले तथा जब मन्दराचल पर्वत को समुद्र में डाला जाता है तो वह डूबने लगता है.
तब भगवान श्री विष्णु कूर्म अर्थात कच्छप अवतार लेकर समुद्र में जाकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लेते हैं. समस्त लोकपाल दिक्पाल उनकी कूर्म आकृति में स्थित हो जाते हैं और भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा तथा इस प्रकार समुद्र मंथन का संपन्न हो सका.

कूर्म जयंती महत्व 

जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.
पुराणों के अनुसार , देवता और असुरो मे युद्ध होता रहता था. सभी देवतागण युद्ध मे, असुरो द्वारा पराजित हो गये और परेशान होकर, भगवान विष्णु जी की शरण मे गये और देवतागण ने, भगवान विष्णु से कहा आपके श्रीकमल चरणों मे हमारा प्रणाम स्वीकार करे. तब भगवान विष्णु ने देवताओ से पूछा, आप सभी देवतागण इतने परेशान क्यों है तब देवताओ ने, उत्तर दिया, हमे असुरो ने युद्ध मे हरा दिया है तो, प्रभु असुरो से जीतने का कोई उपाय बताये. तब भगवान विष्णु बोले, देवगण आप सभी समुद्रतट पर जाकर असुरो से, समझोता कर ले और मंदराचल पर्वत को, मथानी बना कर वासुकी नाग से, रस्सी का काम ले.
तब पर्वतों से जडीबुटीया हटा कर समुद्र मे डाले, और असुरो के साथ समुद्र मंथन कर ले. उसके पश्चात् समुद्र मंथन मे, अमृत उत्पन्न होगा जिसे पीकर, देवता अमृत शक्ति को प्राप्त कर अमर हो जायेंगे जिससे, उसी के साथ सभी देवगण शक्तिशाली हो जायेंगे और उसी शक्ति से, देवगण असुरो को हरा पाएंगे. उसके बाद भगवान विष्णु को प्रणाम कर ,सभी देवताओ ने असुरो के साथ समझोता किया और, समुद्रमंथन की तैयारी मे लग गये.
फिर असुर भगवान विष्णु के पास पहुचे और बोले कि, मैंने मंदराचल पर्वत को उखाड़ कर समुद्र मे डाल दिया. भगवान विष्णु की आज्ञा से, वासुकी नाग वहा आये, और स्वयं विष्णुजी भी वहा उपस्थित हुए और सभी ने, प्राथना करी कि, हे भगवान! हमे आशीर्वाद दे कि, हम समुद्रमंथन मे सफल हो जाये. समुद्रमंथन मे भगवान विष्णु ने, असुरो को नाग के शीर्ष भाग अर्थात् मुख की और तथा देवताओ को, नाग की अंतिम छोर अर्थात् पूछ की और रखा. मंथन शुरु होने पर आधार ना होने के कारण, मंदराचल पर्वत समुद्र मे डूबने लगा. तब भगवान विष्णु ने सोचा, अब मुझे ही कुछ करना होगा तब भगवान ने, कुर्म रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत के नीचे, घुस कर उसका आधार बने.
समुद्रमंथन कई चरणों मे हुआ समुद्रमंथन जिसमे सबसे पहले, कालकठ नामक जहर पैदा हुआ जिसे, सापों ने पी लिया. दुसरे मंथन मे, ऐरावत हाथी और उच्यश्रवर घोडा उत्पन्न हुए. तृतीय मंथन मे, बहुत सुंदर स्त्री उर्वशी प्रकट हुई, और चौथी बार मे, महावृक्ष पारिजात प्रकट हुआ. पांचवी बार मे, क्षीरसागर से चंद्रमा प्रकट हुए जिसको, भगवान शिव ने अपने मस्तक पर लगा लिया. इसके अलावा रत्नभूषण और अनेक देवपुरुष पैदा हुए. मंथन के चलते वासुकी नाग की जहरीली फुंकार से विष निकाला, जिससे कई असुर मर गये या शक्ति विहीन हो गये. उसके बाद समुद्रमंथन मे, माँ लक्ष्मीजी उत्पन्न हुई जो, भगवान विष्णु के ह्रदय मे विराजित हुई.
इसके बाद क्षीर सागर से, अमृत का घडा लेकर भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए तब असुरो ने कहा कि, देवताओ ने धनसम्पति की स्वामी लक्ष्मीजी को विष्णु जी के पास जाने दिया. इसलिये हम ये अमृत ले कर जा रहे है तब, भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया, और असुरो के पास गये तब असुरो ने कहा, वाह क्या सुंदर स्त्री है यह तो बिल्कुल लक्ष्मीजी की तरह है हमे ये स्त्री ही चाहिये. स्त्री के मोहवश उन्होंने, अमृत का कलश जमीन पर रख दिया तभी, भगवान विष्णु ने वह घडा उठा कर देवताओ को दे दिया और कहा कि, असुर उस स्त्री के मोह के कारण अमृत को भूल गये है तो, देवगण आप सभी इस अमृत का पान कर ले. अमृत पीने के बाद देवताओ ने, असुरो को युद्ध मे हरा दिया. इस प्रकार भगवान विष्णु ने, देवताओ के भले के लिये समुद्रमंथन किया और कुर्मावतार लिया.

समुद्रमंथन का सार 
चरण. उत्पत्ति
प्रथम चरण, विष
दूसरा चरण..ऐरावत हाथी और उच्यश्रवर घोडा
तीसरा चरण .उर्वशी
चतुर्थ चरण .पारिजात
पंचम चरण चंद्रमा
इसके पश्चात् क्रमशः रत्नआभूषण उत्पन्न हुए.
तदुपरान्त माता लक्ष्मीजी प्रकट हुई.
अंत मे अमृत उत्पन्न हुआ.
कूर्म मंत्र . ॐ कूर्माय नम:
ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय 
ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:
ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा 
ॐ जय कच्छप भगवान,प्रभु जय कच्छप भगवान.
सदा धर्म के रक्षक-2,भक्त का राखो मान.
सत्यनारायण के अवतारा,पूर्णिमाँ तुम शक्ति-
विष्णु के तुम रूपक-2,द्धितीय ईश शक्ति.
घटी जब देवो की शक्ति तब,सागर मंथन दिया उपाय-
मंद्राचल पर्वत को थामा-2,कच्छप पीठ अथाय..
वासुकि को मथनी बनाया,देव दैत्य आधार-
चौदह रत्न मथित हो निकले-2,अमृत मिला उपहार..
चतुर्थ धर्म ऋषियों को बांटा,विश्व किया कल्याण-
एकादशी व्रत को चलाया-2,भक्तों को दे ज्ञान..
महायोग का रहस्य है प्रकट,कच्छप मूलाधार भगवान-
मूल बंध लगा कर-2,चढ़ाओ अपने प्राण अपान.
श्वास प्रश्वास देव दैत्य है,इनसे मंथन सागर काम-
सधे जीवन ब्रह्मचर्य-2,जगे कुंडलिनी बन निष्काम.
चौदह रत्न इस योग मिलेंगे,लक्ष्मी अमृत स्वास्थ अपार-
नाँद शांति आत्म ज्ञान हो-2,कर्मयोग कूर्म अवतार.
इष्ट देव तुम कुर्मी जाति,सनातन द्धितीय अवतार-
कर्मयोग के तुम हो ज्ञानी-2,दिया कर्मठता व्यवहार..
पँच कर्म ज्ञान कच्छप अवतारा,पँच इंद्री कर वशीभूत-
सदा रहो स्वं आवरण-2,ज्यों सिमटे कच्छप कूप.
धीरे धीरे कर्म करो सब,राखों कर्मी ध्यान-
अंत लक्ष्य पर पहुँचे साधक-2,पचा कर्म फल मान.
खीर प्रसाद बनाकर,ईश कच्छप भोग लगाय-
स्वान और निर्धन बांटो-2,दे पूर्णिमाँ मन वरदाय.
जो पढ़े ज्ञान आरती कच्छप,पाये जगत सब मान-
मिले सभी कुछ खोया-2,अंत शरण हो कूर्म भगवान.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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