भगवान नरसिंह की उपासना सौम्य रूप में करनी चाहिए

भगवान नरसिंह की उपासना सौम्य रूप में करनी चाहिए

प्रेषित समय :21:32:53 PM / Thu, May 12th, 2022

भगवान नरसिंह के प्रमुख 10 रूप है १) उग्र नरसिंह २) क्रोध नरसिंह ३) मलोल नरसिंह ४) ज्वल नरसिंह ५) वराह नरसिंह ६) भार्गव नरसिंह ७) करन्ज नरसिंह ८) योग नरसिंह ९) लक्ष्मी नरसिंह १०) छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह
दस नामों का उच्चारण करने से कष्टों से मुक्ति और गंभीर रोगों के नाश में लाभ मिलाता है 
उनकी प्रतिमा या चित्र की विधिबत पूजा सभी कष्टों का नाश करती है 
भगवान नरसिंह जी की पूजा के लिए गूगल,जटामांसी, फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें 
गंगाजल, काले तिल, शहद, पञ्च गव्य, व हवन सामग्री का पूजन में प्रयोग सकल लाभ देता है 
मूर्ती या चित्र को लकड़ी के बाजोट या पटड़े पर वस्त्र बिछा कर स्थापित करना चाहिए 
अखंड दीपक की स्थापना मूर्ती की दाहिनी और करनी चाहिए 
भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें
मंत्र-ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि | 
 तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||
पांच माला के जाप से आप पर भगवान नरसिंह की कृपा होगी 
इस महा मंत्र के जाप से क्रूर ग्रहों का ताप शांत होता है 
कालसर्प दोष, मंगल, राहु ,शनि, केतु का बुरा प्रभाव नहीं हो पाटा 
एक माला सुबह नित्य करने से शत्रु शक्तिहीन हो जाते हैं
संध्या के समय एक माला जाप करने से कवच की तरह आपकी सदा रक्षा होती है 
यज्ञ करने से भगवान् नरसिंह शीघ्र प्रसन्न होते हैं 
जो बिधि-विधान से पूजा नहीं कर पाते और जो मनो कामना पूरी करना चाहते है, उन्हें बीज मंत्र द्वारा साधना करनी चाहिए
1)संपत्ति बाधा नाशक मंत्र 
यदि आपने किसी भी तरह की संपत्ति खरीदी है गाड़ी, फ्लेट, जमीन या कुछ और उसके कारण आया संकट या बाधा परेशान कर रही है तो संपत्ति का नरसिंह मंत्र जपें 
भगवान नरसिंह या विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें 
धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें 
सात दिये जलाएं 
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें 
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें 
मंत्र-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय 
मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है 
2)ऋण मोचक नरसिंह मंत्र 
है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें 
भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें 
पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें 
मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें 
हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें 
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:
रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है 
3)शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र 
यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें 
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें 
धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें 
चौमुखे तीन दिये जलाएं 
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें 
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें 
मंत्र-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः
रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है 
4)यश रक्षक मंत्र 
यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें 
भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजन करें 
कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें 
सात तरह के अनाज दान में दें 
हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें 
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें 
मंत्र-ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष 
संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है 
5)नरसिंह बीज मंत्र 
यदि आप पूरे विधि विधान से भगवान नरसिंह जी का पूजन नहीं कर सकते तो आपको चलते फिरते मानसिक रूप से लघु मंत्र का जाप करना चाहिए 
लघु मंत्र के जाप से भी मनोरथ पूरण होते हैं 
मंत्र-ॐ नृम नृम नृम नरसिंहाय नमः .
भगवान नरसिंह को मोर पंख चढाने से कालसर्प दोष दूर होता है 
भगवान नरसिंह को दही अर्पित करने से मुकद्दमों में विजय मिलती है 
भगवान नरसिंह को नाग केसर अर्पित करने से धन लाभ मिलता है 
भगवान नरसिंह को बर्फीला पानी अर्पित करने से शत्रु पस्त होते हैं 
भगवान नरसिंह को मक्की का आटा चढाने से रूठा व्यक्ति मान जाता है 
भगवान नरसिंह को लोहे की कील चढाने से बुरे ग्रह टलते हैं 
भगवान नरसिंह को चाँदी और मोती चढाने से रुका धन मिलता है 
भगवान नरसिंह को भगवा ध्वज चढाने से रुके कार्य में प्रगति होती है 
भगवान नरसिंह को चन्दन का लेप देने से रोगमुक्ति होती है
नृसिंहस्तोत्रम् ॥
नतोऽस्म्यनन्ताय दुरन्तशक्तये विचित्रवीर्याय पवित्रकर्मणे .
विश्वस्य सर्गस्थितिसंयमान्गुणैः स्वलीलया सन्दधतेऽव्ययात्मने ॥ १॥
श्रीरुद्र उवाच .कोपकालो युगान्तस्ते हतोऽयमसुरोऽल्पकः .
तत्सुतं पाह्युपसृतं भक्तं ते भक्तवत्सल ॥ २॥
प्रत्यानीताः परम भवता त्रायतां नः स्वभागा
दैत्याक्रान्तं हृदयकमलं त्वद्गृहं प्रत्यबोधि .
कालग्रस्तं कियदिदमहो नाथ शुश्रूषतां ते
मुक्तिस्तेषां न हि बहुमता नारसिंहापरैः किम् ॥ ३॥
ऋषय ऊचुः .त्वं नस्तपः परममात्थ यदात्मतेजो येनेदमादिपुरुषात्मगतं ससर्ज .
तद्विप्रलुप्तममुनाद्य शरण्यपाल रक्षागृहीतवपुषा पुनरन्वमंस्थाः ॥ ४॥
पितर ऊचुः .श्राद्धानि नोऽधिबुभुजे प्रसभं तनूजैर्दत्तानि तीर्थसमयेऽप्यपिबत्तिलाम्बु .
तस्योदरान्नखविदीर्णवपाद्य आर्च्छत्तस्मै नमो नृहरयेऽखिल धर्मगोप्त्रे ॥ ५॥
सिद्धा ऊचुः .यो नो गतिं योगसिद्धामसाधुरहारषीद्योगतपोबलेन .
नानादर्पं तं नखैर्निर्ददार तस्मै तुभ्यं प्रणताः स्मो नृसिंह ॥ ६॥
विद्याधरा ऊचुः .
विद्यां पृथग्धारणयाऽनुराद्धां न्यषेधदज्ञो बलवीर्यदृप्तः .
स येन संख्ये पशुबद्धतस्तं मायानृसिंहं प्रणताः स्म नित्यम् ॥ ७॥
नागा ऊचुः .
येन पापेन रत्नानि स्त्रीरत्नानि हृतानि नः .
तद्वक्षःपाटनेनासां दत्तानन्द नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
मनव ऊचुः .
मनवो वयं तव निदेशकारिणो दितिजेन देव परिभूतसेतवः .
भवता खलः स उपसंहृतः प्रभो करवाम ते किमनुशाधि किङ्करान् ॥ ९॥
प्रजापतय ऊचुः .
प्रजेशा वयं ते परेशाभिसृष्टा न येन प्रजा वै सृजामो निषिद्धाः .
स एष त्वया भिन्नवक्षानुशेते जगन्मङ्गलं सत्त्वमूर्तेऽवहारः ॥ १०॥
गन्धर्वा ऊचुः .
वयं विभो ते नटनाट्यगायका येनात्मसाद्वीर्यबलौजसा कृताः .
स एष नीतो भवता दशामिमां किमुत्पथस्थः कुशलाय कल्पते ॥ ११॥
चारणा ऊचुः .
हरे तवांग्घ्रिपङ्कजं भवापवर्गमाश्रिताः .
यदेव साधु हृच्छयस्त्वयाऽसुरः समापितः ॥ १२॥
यक्षा ऊचुः .
वयमनुचरमुख्याः कर्मभिस्ते मनोज्ञैस्त इह दितिसुतेन प्रापिता वाहकत्वम् .
स तु जनपरितापं तत्कृतं जानता ते नरहर उपनीतः पञ्चतां पञ्चविंशः ॥ १३॥
किम्पुरुषा ऊचुः .
वयं किम्पुरुषास्त्वं तु महापुरुष ईश्वर .
अयं कुपुरुषो नष्टो धिक्कृतः साधुभिर्यदा ॥ १४॥
वैतालिका ऊचुः .
सभासु सत्रेषु तवामलं यशो गीत्वा सपर्यां महतीं लभामहे .
यस्तां व्यनैषीद्भृशमेष दुर्जनो दिष्ट्या हतस्ते भगवन्यथामयः ॥ १५॥
किन्नरा ऊचुः .
वयमीश किन्नरगणास्तवानुगा दितिजेन विष्टिममुनाऽनुकारिताः .
भवता हरे स वृजिनोऽवसादितो नरसिंह नाथ विभवाय नो भव ॥ १६॥
विष्णुपार्षदा ऊचुः .
अद्यैतद्धरिनररूपमद्भुतं ते दृष्टं नः शरणद सर्वलोकशर्म .
सोऽयं ते विधिकर ईश विप्रशप्तस्तस्येदं निधनमनुग्रहाय विद्मः ॥ १७॥
इति श्रीमद्भागवतान्तर्गते सप्तमस्कन्धेऽष्टमध्याये नृसिंहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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