गंगा सप्तमी: घर की उत्तर दिशा में करें पूजन, मां गंगा करेंगी हर पाप का नाश

गंगा सप्तमी: घर की उत्तर दिशा में करें पूजन, मां गंगा करेंगी हर पाप का नाश

प्रेषित समय :19:30:35 PM / Sat, May 7th, 2022

गंगा सप्तमी  या गंगा जयंती हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है. वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2022  में यह जयन्ती 8 मई  को है .

गंगा जयंती के शुभ अवसर पर गंगा जी में स्नान करने से सात्त्विकता और पुण्य लाभ प्राप्त होता है. वैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जाता है यह तिथि पवित्र नदी गंगा के पृथ्वी पर आने का पर्व है गंगा जयंती. स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है.

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में दर्शाया गया है. अनेक पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुए हैं. गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है. लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं तथा मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं. लोग गंगा घाटों पर पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं.

गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है. गंगाजल को अमृत समान माना गया है. अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है मकर संक्रांति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण समझा माना गया है. गंगा पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है. गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें श्री गंगा सहस्रनाम स्तोत्र एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं.

गंगा जन्म कथा 
गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक है.  इसमें एक कथा अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से हुआ गंगा के जन्म की कथाओं में अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी हैं. जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ.

एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था.

गंगा जयंती महत्व 
शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है.  जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है.  गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. विधि विधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है.

पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अंगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के श्राप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार  करने के लिए हुआ था  

पौराणिक कथानुसार जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या की. वे अपनी कठिन तपस्या से गंगा को प्रसन्न कर धरती पर ले आए. गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका. शास्त्रों ने गंगा को मोक्षदायिनी कहा है. पुराणों में गंगा को मंदाकिनी रूप में स्वर्ग, गंगा के रूप में पृथ्वी व भोगवती रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया है.

विष्णु पुराण में गंगा को विष्णु के बायें पैर के अंगूठे के नख से प्रवाहित माना है. महादेव ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित किया है जिनमें नलिनी, ह्लादिनी व पावनी पूर्व में, सीता, चक्षुस् व सिन्धु पश्चिम में व सातवीं धारा भागीरथी प्रवाहित हुई. पौराणिक आख्यान के अनुसार गंगा हिमालय व मैना की पुत्री तथा उमा की बहन हैं. गंगा का संबंध कार्तिकेय के मातृत्व से भी है. पौराणिक चित्रण के अनुसार गंगा मकर पर आरूढ़ हैं और अपने हाथों में कलश धारण करती हैं. ऋग्वेद के नदी सूक्त में गंगा की स्तुति हुई है. इस दिन गंगा स्नान से दस पापों का अंत होता है, सभी पाप धुल जाते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है. गंगा सप्तमी के अवसर पर देवी गंगा के पूजन, व्रत, उपाय, दान व स्नान से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है, रोगों का निवारण होता है व दुर्भाग्य दूर होता है.

विशेष पूजन: मध्यान काल में घर की उत्तर दिशा में लाल कपड़े पर जल का कलश स्थापित करें. ॐ गंगायै नमः का जाप करते हुए जल में थोड़ा सा दूध, रोली, अक्षत शक्कर, इत्र व शहद मिलाएं तथा कलश में अशोक के 7 पत्ते डालकर उस पर नारियल रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें. शुद्ध घी का दीप करें, सुगंधित धूप करें, लाल कनेर के फूल चढ़ाएं, रक्त चंदन चढ़ाएं, सेब का फलाहार चढ़ाएं व गुड़ का भोग लगाएं. इस विशेष मंत्र को 108 बार जपें. इसके बाद फल किसी गरीब को बांट दें. 

विशेष मंत्र: गं गंगायै हरवल्लभायै नमः
उपाय

दुखों से मुक्ति पाने के लिए 7 लाल मिर्च के बीज सिर से 7 बार वारकर जल प्रवाह करें.
दुर्भाग्य दूर करने के लिए 7 मुट्ठी सतनाजा किसी भिखारी को दान करें.
रोगों के निवारण के लिए 7 बच्चों में 7 खजूर बाटें.

गंगा सप्तमी मध्याह्न मूहूर्त - 10:48 ए एम से 01:26 पी एम
अवधि - 02 घण्टे 38 मिनट्स
गंगा दशहरा बृहस्पतिवार, जून 9, 2022 को
सप्तमी तिथि प्रारम्भ - मई 07, 2022 को 02:56 पी एम बजे
सप्तमी तिथि समाप्त - मई 08, 2022 को 05:00 पी एम बजे

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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