जब किसी को कब्ज की समस्या होती है, तो शरीर व्यर्थ या अपशिष्ट पदार्थ को बाहर निकालने में असमर्थ होता है. कई बार कब्ज एक या दो दिनों तक रहता है और फिर ठीक हो जाता है. यह काफी कॉमन है, जिसका सामना कई लोग करते हैं. वहीं, कछ लोगों को क्रोनिक कॉन्सटिपेशन या कब्ज की समस्या होती है. यह एक गंभीर कब्ज की समस्या है, जो लॉन्ग-टर्म तक चलती है. क्रोनिक कब्ज होने पर बाउल मूवमेंट बेहद कम हो जाता है, जो कई हफ्तों या उससे अधिक समय तक बना रहता है. किसी को जब एक सप्ताह में तीन से कम मल त्याग हो, तो उसे कब्ज की समस्या कहते हैं. आइए जानते हैं, क्रोनिक कब्ज होने पर शरीर पर क्या नकारात्मक असर हो सकता है.
कब्ज के लक्षण
- मल का सख्त होना
- सप्ताह में तीन से कम बार मल त्याग करना
- ढेलेदार या सख्त मल होना
- मल त्याग करते समय जोर लगाना
- ऐसा महसूस होना जैसे मलाशय में रुकावट हो, जो मल त्याग को रोकता हो
- ऐसा महसूस होना कि मलाशय से मल खाली नहीं हुआ
- मल त्याग करते समय हाथों से पेट पर दबाव डालना
थकान महसूस करना
एक रिपोर्ट के अनुसार, कब्ज होने से आपको थकान की समस्या हो सकती है. कब्ज के कारण होने वाला डिस्बिओसिस कार्बोहाइड्रेट के फर्मेंटेशन और विभिन्न गैसों के उत्पादन को बढ़ा देता है, जिसमें बदबूदार हाइड्रोजन सल्फाइड भी शामिल है. यह माइटोकॉन्ड्रिया की शिथिलता का कारण बनता है. यह कोशिकाओं के भीतर ऊर्जा का निर्माण करता है. इससे शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है और आप थकान महसूस करते हैं.
बढ़ सकता है वजन
यदि आपको लगातार कब्ज की समस्या रहती है, तो यह वजन बढ़ने का कारण भी बन सकता है. जब आप मल त्याग करते हैं, तो शरीर में हार्मोन असंतुलन भी होता है. विशेष रूप से एस्ट्रोजन से संबंधित असंतुलन होने से लोगों में मोटापे से जोड़कर देखा गया है.
त्वचा को होता है नुकसान
कब्ज से जुड़े विषाक्तता के कारण त्वचा को भी नुकसान होता है. इससे मुंहासे और स्किन ब्रेकआउट की समस्या बढ़ सकती है. यह तब होता है, जब टॉक्सिन और अपशिष्ट पदार्थ समाप्त होने की बजाय कोलन के माध्यम से रक्त प्रवाह में वापस अवशोषित हो जाता है. रक्तप्रवाह से ये विषाक्त पदार्थ शरीर के सबसे बड़े डिटॉक्सिफिकेशन अंग त्वचा से बाहर निकल सकते हैं. अन्य मकैनिज्म जिसके द्वारा कब्ज त्वचा को प्रभावित कर सकता है, वह है आंत के बैक्टीरिया (गट बैक्टीरिया) में परिवर्तन होना.
रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर
हमारी आंतों की वनस्पतियां यानी इंटेस्टाइनल फ्लोरा शरीर की अधिकांश प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिसमें व्यर्थ कोशिकाएं, वायरस, बैक्टीरिया और कैंसर कोशिकाओं को हटाना शामिल है. चूंकि, कब्ज के कारण इंटेस्टाइनल फ्लोरा या बैक्टीरिया क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, इसलिए प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी इसका प्रभाव होता है. कब्ज के कारण टॉक्सिक निर्माण और सूजन होता है, जिससे इम्यूनिटी प्रभावित होती है. इससे आपको यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) भी हो सकता है.
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