विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को तिल के लड्डुओं का भोग लगाने से लाभ प्राप्त होता

विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को तिल के लड्डुओं का भोग लगाने से लाभ प्राप्त होता

प्रेषित समय :21:08:59 PM / Tue, May 3rd, 2022

विनायक चतुर्थी 04 मई 2022 के दिन पड़ रही है. प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थिया पड़ती हैं. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है. शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा या पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है.

भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है. विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

विनायक चतुर्थी का व्रत भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार इस दिन दान करने का अधिक महत्व होता है. इस दिन गणेश भगवान को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है. गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला तथा विघ्नहर्ता माना जाता है. जो भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं उनके घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है.

गणेश जी से जुड़े पौराणिक तथ्य

1 किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है. इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं किया जाता है. यहाँ तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश’ एक मुहावरा बन गया है. शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है.

2 गणेश जी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है. गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति जी के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है.

3 शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है. जिससे गणपति जी की महत्ता साफ़ पता चलती है.

4 ‘गण’ का अर्थ है - वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईश’ का अर्थ है - स्वामी. शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें ‘गणेश’ कहते हैं.

5 शिवजी को गणेश जी का पिता, पार्वती जी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएँ) को पत्नियाँ, क्षेम व लाभ को गणेश जी का पुत्र माना गया है.

6 श्री गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं; जो इस प्रकार हैं: 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन.

7 गणेश जी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था. भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई. ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि यह कार्य गणेश जी से करवाया जाए.

8 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है. जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है.

गणेश जी और दूर्वा की कथा

हम सभी यह जानते हैं कि श्री गणेश को दूर्वा बहुत प्रिय है. दूर्वा को दूब भी कहा जाता है. यह एक प्रकार की घास होती है, जो सिर्फ गणेश पूजन में ही उपयोग में लाई जाती है. आखिर श्री गणेश को क्यों इतनी प्रिय है दूर्वा? इसके पीछे क्या कहानी है? क्यों इसकी 21 गांठे ही श्री गणेश को चढ़ाई जाती है? एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी. अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था. इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें. तब महादेव ने समस्त देवी-देवताओं तथा ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर, उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं. फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी. इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं. यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई. ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई.

विनायक चतुर्थी - व्रत विधि 

सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. उसके उपरान्त एक स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान भगवान गणेश की धूप-दीप आदि से आराधना करनी चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. फल,फूल, अक्षत, रौली,मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान गणेश को घी से बनी वस्तुओं या लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए.

इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करने के बाद उसी समय गणेश जी के मंत्र 

 "ऊँ गणेशाय नमः:" 

का 1008 बार जाप करना चाहिए. इसी के साथ गणेश गायत्री मंत्र -

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्..

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्..

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्..

का जाप करते हुए पूजन करना चाहिए. संध्या समय में कथा सुनने के पश्चात गणेश जी की आरती करनी चाहिए. इससे आपको मानसिक शान्ति मिलने के साथ आपके घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होगी.

विनायक चतुर्थी व्रत दान

इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है.

विनायक चतुर्थी व्रत कथा

गणेश चतुर्थी के संबंध में एक कथा जग प्रसिद्ध है. कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती के मन में ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है. ऐसे में वे अपने मैल से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भरती हैं. इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं. परंतु जाने से पहले माता बालक को आदेश देती हैं कि किसी परिस्थिति में किसी को भी कंदरा में प्रवेश न करने देना. बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है. कुछ समय बीत जाने के बाद वहां भगवान शिव पहुंचते हैं. शिव जैसे ही कंदरा के भीतर जाने के लिए आगे बढ़ते हैं बालक उन्हें रोक देता है. शिव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन वह उनकी एक न सुना, जिससे क्रोधित हो कर भगवान शिव अपनी त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं.

इस अनिष्ट घटना का आभास माता पार्वती को हो जाता है. वे स्नान कर कंदरा से बाहर आती हैं और देखती है कि उनका पुत्र धरती पर प्राण हीन पड़ा है और उसका शीश कटा है. यह दृष्य देख माता क्रोधित हो जाती हैं जिसे देख सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं. तब भगवान शिव गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का शीश ले आओ जिसकी माता का पीठ उस बालक की ओर हो. गण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं शिव गज के शीश को बाल के धड़ जोड़कर उसे जीवित करते हैं. इसके बाद माता पार्वती शिव से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे. तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा. इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि कोई भी मांगलिक कार्य करने से पूर्व गणेश की पूजा करना अनिवार्य होगा. यदि ऐसा कोई नहीं करता है तो उसे उसके अनुष्ठान का फल नहीं मिलेगा.

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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