मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते

मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते

प्रेषित समय :21:14:50 PM / Thu, Apr 28th, 2022

मासिक शिवरात्रि 29 अप्रैल 
शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है. हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है.
अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं. परन्तु पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि कहते हैं. दोनों पञ्चाङ्गों में यह चन्द्र मास की नामाकरण प्रथा है जो इसे अलग-अलग करती है. हालांकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पञ्चाङ्ग एक ही दिन महाशिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं.

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए. उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है.
माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है. पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी. इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करते हैं. शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है. अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है.
मासिक शिवरात्रि अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है. शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है. मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है. 

शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व
माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है. इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है. इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए.
शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए. माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं. साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है. अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं. इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है.

शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व
बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है.
शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है. फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना.
धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे.
दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें.
पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं.

समुद्र मंथन की कथा
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था. हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे. भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था. जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था. इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं. उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी. इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी. शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे. जैसे सुबह  हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया. शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया. तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है

शिकारी की कथा 
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था. पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था. वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी.'
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा. बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला.

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए. एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना.' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई.
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली. शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. समीप आने पर 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी. इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं. इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे. उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी. इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं. हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं.

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था. पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा. शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन मृगियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा. 

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं.' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था. उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था. धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया. भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया. वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा. थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. 

उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई. उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया. देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे. घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने  पुष्प वर्षा की. तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'.

भगवान गंगाधर की आरती
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा.
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ 
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने.
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता.
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ 
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता.
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌.
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता.
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते.
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता.
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते.
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ 
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌.
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌.
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ 
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌.
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌.
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ 
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते.
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा.
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ 
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा.
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते.
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥
त्रिगुण शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा.
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ 
एकानन चतुरानन पंचानन राजे.
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ 
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे.
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ 
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी.
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ 
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे.
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ 
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता.
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका.
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ 
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी.
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि 
भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ 
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा .
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा .. 
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा.
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा .. 
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला.
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला .. 
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे.
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ 
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा .. 

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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