मानवता के महान उपासक, संत गाडगे महाराज

मानवता के महान उपासक, संत गाडगे महाराज

प्रेषित समय :18:51:06 PM / Thu, Feb 24th, 2022

हेमेन्द्र क्षीरसागर. संत गाडगे महाराज, गाडगेबाबा, गोधडीवाले बाबा, चिंधे बाबा, लोटके महाराज के नाम से सुप्रसिद्ध थे. वे कीर्तन के माध्यम से समाज सुधार और जन जागरूकता का काम बखूबी करते थे. मानवता के सच्चे हितैषी, सामाजिक समरसता के द्योतक यदि किसी को माना जाए तो वे थे संत गाडगे महाराज. आधुनिक भारत के वीरों, संत, महात्माओं, समाज सुधारकों और महापुरुषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें से एक राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा है. वे कहते थे कि शिक्षा बड़ी चीज है. संत गाडगे महाराज ने अंधविश्वास से बर्बाद हुए समाज को सार्वजनिक शिक्षा और ज्ञान प्रदान किया. संत गाडगे महाराज का कहना था कि पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरत के लिए कपड़े खरीदो, टूटे-फूटे मकान में रहो पर बच्चों को शिक्षा दिए बिना न रहो.

उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया. उन्होंने सभी को पढाई करने के लिए प्रोत्साहित किया. ऐसे ज्ञानदीपी बाबा गाडगे का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक रजक परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था. वह एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे. गाडगेबाबा सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर और पैरों में फटी हुई चप्पल पहनकर पैदल ही यात्रा किया करते थे. और यही उनकी पहचान थी. 

गाडगे बाबा स्वैच्छिक गरीबी में रहते थे और अपने समय के दौरान सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और विशेष रूप से स्वच्छता से संबंधित सुधारों की शुरुआत करने वाले विभिन्न गांवों में घूमते रहे. गांव में प्रवेश करते ही वह तुरंत नाले और सड़कों की सफाई शुरू कर देते थे. उसके काम के लिए, ग्रामीण उसे पैसे देते थे. जिनका इस्तेमाल वे शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, धर्मशालाओं और पशु आश्रयों के निर्माण के लिए करते थे. उन्हीं के पदचिन्हों पर आज देश स्वच्छ भारत, स्वस्थ्य भारत महाभियान परिलक्षित हो रहा है. गाडगे महाराज ने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया. यह सब उन्होंने भीख मांग-मांग कर बनवाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई. गाडगे महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायी थे. गाडगे बाबा ने पंढरपुर में अपने छात्रावास का भवन भी पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी को दान कर दिया था, जिसकी स्थापना डॉ आंबेडकर ने की थी.
  
उन्होंने लोगों से पशु बलि बंद करने का आह्वान किया और शराब के सेवन के खिलाफ अभियान चलाया. यही नहीं, नशाखोरी, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों तथा मजदूरों व किसानों के शोषण के भी वे प्रबल विरोधी थे. कुछ लोग खुद के लिए पैदा नहीं होते. दुनिया के लिए अपने आप को खपाना ही उनका जीवनधर्म होता हैं. उनके हाथों में सोने-चाँदी के कंगन नहीं होते, लेकिन निस्वार्थ सेवा का संकल्प होता हैं. वंचित-गरीबों के लिए दिल से प्यार की नदी बहाने वाले ऐसे महान लोगों का चेहरा एक ही होता हैं. सताएं गए लोगों की चीखें सुनने के लिए दौड़ जाना और गिरते हुए को उठाना, यहीं उनका जुनून था. अपने काम से दुनिया को खुबसुरत बनाने वाला ऐसा एक नाम संत गाडबे बाबा है.

संत की श्रृंखला में पहले संत ज्ञानेश्वर है. ज्ञानेश्वर ने संत श्रृंखला की नींव रखी नामदेव ने पूरे भारत में इसका विस्तार किया. नाथ ने इस पर इमारत बनवाई और तुकाराम महाराज ने इसका शिखर चढ़ाया. बाकी का काम गाडगे बाबा ने पूरा किया. यही कारण है कि संत गाडगे बाबा को संतों की श्रृंखला में ‘शिरोमणि’ के रूप में जाना जाता है. जिस तरह से पिछले संतों ने रास्ता दिखाया, गाडगेबाबा उस पर चले, समाज में धर्म के नाम पर होने वाले अन्याय, अत्याचार और अधर्म को खत्म करने के लिए, उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष किया. उन्होंने ताउम्र निस्वार्थ भाव से मानव सेवा की. मानवता के महान उपासक संत गाडगे बाबा 20 दिसंबर 1956 में ब्रह्मलीन हुए. संत गाडगे द्वारा स्थापना किया गया ‘गाडगे महाराज मिशन’ आज भी लोगों की सेवा में समर्पित भाव से कार्य कर रहा है. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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