अक्षय फल देनेवाली अक्षय नवमी

अक्षय फल देनेवाली अक्षय नवमी

प्रेषित समय :21:02:44 PM / Thu, Nov 11th, 2021

*कार्तिक शुक्ल नवमी (12 नवम्बर 2021) शुक्रवार को ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ कहते हैं | अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है | इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व  है | पूजन में कर्पूर या घी के दीपक से आँवले के वृक्ष की आरती करनी चाहिए तथा निम्न मंत्र बोलते हुये इस वृक्ष की प्रदक्षिणा करने का भी विधान है

 *यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च |*
*तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ||*

 *इसके बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पवित्र ब्राम्हणों व सच्चे साधक-भक्तों को भोजन कराके फिर स्वयं भी करना चाहिए | घर में आंवलें का वृक्ष न हो तो गमले में आँवले का पौधा लगा के अथवा किसी पवित्र, धार्मिक स्थान, आश्रम आदि में भी वृक्ष के नीचे पूजन कर सकते है | कई आश्रमों में आँवले के वृक्ष लगे हुये हैं | इस पुण्यस्थलों में जाकर भी आप भजन-पूजन का मंगलकारी लाभ ले सकते हैं |*

 *आँवला (अक्षय) नवमी है फलदायी* 

 *भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है. कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है. जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं.*

 *आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था. कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है. आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है. इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है.*

 *व्रत की पूजा का विधान* 

 *नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं.*
 *इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है.*
 *तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है.*
 *महिलाएं आँवले के वृक्ष की 108  परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं.*

 *आँवला नवमी की कथा* 

*वहीं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी. अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी. इसका फल उसे उल्टा मिला. महिला कुष्ट की रोगी हो गई.*

 *इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई. तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी.*

 *जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी. इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.*
Astro nirmal
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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