सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के 6वें अंश को देवसेना कहा गया है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का नाम षष्ठी है. षष्ठी देवी ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं. पुराणों में इनका एक नाम कात्यायनी भी है. इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है. इन्हीं षष्ठी देवी को छठी मैया कहा गया है.
छठ व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है. जिन्हें प्रत्यक्ष देखा जा सकता है ये धरती पर सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं. छठ व्रत में सूर्य के साथ-साथ छठी मैया या षष्ठी माता की भी पूजा की जाती है. हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार, षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ और दीघार्यु बनाती हैं. यह व्रत अपने आप में अत्यंत खास है क्योंकि इस व्रत में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को छठ पूजा का अंतिम दिन मनाया जाता है. इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है. 11 नवंबर को सूर्योदय का अर्घ्य दिया जाएगा.
जानिए कौन है छठी मां?
- छठी माता ब्रह्रााजी की मानस पुत्री माना जाता है.
- छठ माता को भगवान सूर्य की बहन भी माना जाता है.
- छठ माता को देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी भी माना गया है.
-संतान की लंबी आयु और आरोग्यता के लिए छठ माता की विशेष पूजा आराधना की जाती है.
छठ व्रत कथा
कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई, इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे.महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया. पूरी प्रजा में में मातम का माहौल छा गया. उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं. जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा. माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है. मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं. इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया. देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए. और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की. मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा.
शास्त्रों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां है?
शास्त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है क्योंकि पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी. श्रीराम ने रावण को अंतिम वाण मारने से पहले आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ कर पहले सूर्य देवता को प्रसन्न किया था. उसके बाद उन्हें विजय मिली थी. इसी तरह जब श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था, तब उन्होंने सूर्य की उपासना करके इस रोग से मुक्ति पाई थी. शास्त्रों के अनुसार सूर्य की पूजा वैदिक काल से भी पहले से होती आ रही है.
छठ पूजा या व्रत के लाभ क्या हैं?
ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान होकर बार बार समाप्त हो जाती हो ऐसे लोगों को इस व्रत से अद्भुत लाभ होता है. अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी ये व्रत लाभदायक होता है. जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को रखते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-छठ पूजा को बनायें अलौकिक, अर्घ्य की तिथि व शुभ मुहूर्त
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