श्री गणेश जी के सम्बन्ध में अतिरिक्त जानकारी

श्री गणेश जी के सम्बन्ध में अतिरिक्त जानकारी

प्रेषित समय :21:01:33 PM / Thu, Oct 28th, 2021

कल्पभेद से गणेश जी के चरित्र अनेक प्रकार के हैं.  उनकी उत्पत्ति, गणनायकत्व, हस्तिमुखत्व, प्रथमपूज्यत्व आदि की कथाएंँ भी भिन्न-भिन्न हैं.  शनेश्वर की दृष्टि पड़ने से सिरोच्छेदन होने और हाथी का मुख जोड़े जाने की कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण की कही गयी.  शिवपुराण रूद्रसंहिता कुमारखण्ड में वह कथा है जिसमें शिवजी ने ही उनका सिर काट डाला था.  यह कथा श्वेतकल्प की है और इस प्रकार है – 

श्रीपार्वतीजी की जया और विजया सखियांँ एक बार आपस में विचार करने लगीं कि जैसे शंकरजी के अनेक गण हैं वैसे ही हमारे भी आज्ञाकारी गण होने चाहिये क्योंकि शिवगणों से हमारा मन नहीं मिलता.  एक समय श्री पार्वती जी स्नान कर रही थीं.  नन्दीश्वर द्वार पर थे.  उनके मना करने पर भी शिवजी भीतर चले आये.  यह देख पार्वतीजी को सखियों का वचन हितकारी एवं सुखदायक समझ पड़ा.  अतएव एक बार परम आज्ञाकारी अत्यन्त श्रेष्ठ सेवक उत्पन्न करने की इच्छा कर उन्होंने अपने शरीर के मैल से सर्वलक्षणसम्पन्न एक पुरुष निर्माण किया जो सर्वशरीर के अवयवों में निर्दोष तथा सर्वावयव विशाल, शोभासम्पन्न, महाबली और पराक्रमी था.  उत्पन्न होते ही देवी ने उसको वस्त्र आभूषण आदि से अलंकृत कर आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो.  गणेशजी बोले कि आज आप का क्या कार्य है ? मैं आपकी आज्ञा पूरी करूंँगा.  द्वार पर बिठाकर वे सखियों सहित स्नान करने लगीं.  इतने ही में शिवजी आये.  भीतर जाने लगे तो गणेशजी ने रोका और न मानने पर उन पर छड़ी से प्रहार किया.  भीतर नहीं ही जाने दिया.  तब गणेशजी पर क्रुद्ध होकर उन्होंने गणों को आज्ञा दी कि इसे देखो 'यह कौन है ? क्यों यहांँ बैठा है ? और बाहर ही बैठ गये.  शिवगणों और गणेशजी में बहुत वाद-विवाद हुआ.  वे शिव आज्ञापालन पर आरूढ़ और ये माता की आज्ञापालन पर आरूढ़.  आखिर शिवजी ने युद्ध की आज्ञा दी.  गणेश जी ने अकेले ही समस्त गणों को मारकर भगा दिया.  तब ब्रह्माजी शिवजी की ओर से शान्ति कराने आये.  आपने ब्रह्माजी की दाढ़ी-मूँछ उखाड़ ली, साथ के देवताओं को मारा, सब भाग गये.  फिर भगवान विष्णु, शिवजी, इन्द्र आदि देवता, कार्तिकेय आदि संग्राम को आये, पर कोई गणेशजी को जीत न सका.  अंत में जब विष्णु जी से युद्ध हो रहा था, उसी बीच में शिवजी ने त्रिशूल से गणेशजी का सिर काट डाला.  नारद जी ने पार्वती जी को समाचार देकर कलह बढ़ाई.  पार्वतीजी ने एक लक्ष शक्तियों को निर्माणकर सभी का नाश करने भेजा.  वे जाकर सबको भक्षण करने लगीं.  हाहाकार मच गया.  तब नारदजी को आगे कर सभी देवता दीनतापूर्वक पार्वती जी के पास आकर उन्हें प्रसन्न करने लगे.  पार्वती जी ने कहा कि यदि मेरा पुत्र जी जाय और तुम सभी के मध्य में पूजनीय हो तभी संहार रुक सकता है.  सभी ने इसे स्वीकार किया.  शिवजी ने देवताओं से कहा कि आप उत्तर दिशा में जाइये.  जो पहले मिले उसका सिर काटकर गणेशजी के शरीर में जोड़ दीजिये.  एक दांँत वाला हाथी उनको प्रथम मिला.  उसका सिर काट लाकर उन्होंने गणेशजी के धड़ पर लगा दिया.  सिर्फ जल को अभिमन्त्रित कर उन पर छिड़का, जिससे बालक जी उठा.  इस कारण _*'करिबर बदन'*_ व *'गजानन'* नाम पड़ा.  पुत्र को जीवित देख माता ने प्रसन्न होकर बहुत आशीर्वाद दिये और कहा कि जो तुम्हारी सिन्दूर, चन्दन दूर्वा आदि से पूजा कर नैवेद्य, आरती, परिक्रमा तथा प्रणाम करेगा, उसे सब सिद्धियांँ प्राप्त हो जायेंगी और पूजन से विघ्न दूर होंगे.  देवताओं ने बालक को शिवजी की गोद में बैठा दिया और उन्होंने इन्हें अपना दूसरा पुत्र स्वीकार किया.  तब गणेशजी ने पिता को तथा भगवान विष्णु, ब्रह्माजी को प्रणाम कर क्षमा मांँगते हुए कहा कि मनुष्य में मान ऐसा ही होता है.  त्रिदेव ने एक साथ वर दिया कि यह हमारे समान पूजनीय होगा.  इसकी पूजा बिना जो हमारी पूजा करेगा उसको पूजा का फल नहीं मिलेगा.  यह गणेश विघ्नहर्ता और सभी कामनाओं एवं फलों को देनेवाला होगा.  इस प्रकार गणेशजी विघ्नविनाशन और सभी कामनाओं के देनेवाले हैं.  शिवजी ने वर दिया कि विघ्न हरने में तुम्हारा नाम सदा श्रेष्ठ होगा.  तुम मेरे सब गणों के अध्यक्ष और पूजनीय होगे.  इसीलिये *'सुमिरत सिधि होइ'* और *'गणनायक'* हुए.  गणेशजी की उत्पत्ति भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी को चन्द्रोदय के समय हुई थी. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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