हिन्द फौज के सिपाहियों को नेहरू ने स्वाधीनता सेनानी नहीं माना: जयंत वर्मा

हिन्द फौज के सिपाहियों को नेहरू ने स्वाधीनता सेनानी नहीं माना: जयंत वर्मा

प्रेषित समय :20:24:45 PM / Wed, Jul 28th, 2021

महू (इंदौर). ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम जनजातीय समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा .  आम आदमी के साथ किसानों और मालगुजारों ने आगे बढक़र लड़ाई लड़ी’ .  यह बात वरिष्ठ इतिहासकार श्री जयंत वर्मा ने कही .  श्री वर्मा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू एवं हेरिटेज सोसायटी पटना के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘मध्य भारत के भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी’ विषय पर मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे.  उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में उन तमाम लोगों का स्मरण किया जिन्हें समय के साथ विस्मृत करने की कोशिश की गई है तो उन सभी का भी स्मरण किया जिनके बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है.  अनेक अनुछूये संदर्भों का उल्लेख करते हुए इतिहासकार श्री वर्मा ने बताया कि कैसे अंग्रेजी शासन के साथ मिलकर विश्वासघात किया गया था और हमारे नायकों को अंग्रेजों के दमन का शिकार होना पड़ा था.  सुभाष बाबू के आजाद हिन्द फौज के असंख्य लोगों ने देश की स्वाधीनता संग्राम में प्राणों की आहुति दी.  लेकिन नेहरू ने इन्हें स्वाधीनता सैनिक मानने से इंकार कर दिया .   

इतिहासकार श्री वर्मा ने सशस्त्र विद्रोह, मुक्ति संग्राम और बुंदेला विद्रोह के साथ अनेक विद्रोह का विस्तार से उल्लेख करते हुए ऐसे प्रसंगों से परिचित कराया जिनके बारे में कभी सुना नहीं गया था.    

अंग्रेजों के साथ मिलकर विश्वासघात करने के दो बड़े प्रसंग का उल्लेख उन्होंने किया जिसमें साथी के विश्वासघात के कारण जनजातीय समाज के एक बड़े लडैया भीमा नायक को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया था.    भीमा नायक अंग्रेजों के लिए एक बड़ी मुसीबत बन चुके थे.    एक अन्य घटना राजा हिरदेशाह के बारे में भी बताया कि वे भी विश्वासघात के शिकार हुए थे.    असंख्य वीर जवानों के नामों का उल्लेख करते हुए श्री वर्मा ने बताया कि रघुनाथ शाह और शंकर शाह, दोनों पिता पुत्र थे और अंग्रेजों ने उन्हें तोप में बांधकर उड़ा दिया था.    मौत की सजा पहले उन्होंने कहा कि उनके बच्चे (प्रजा) सुरक्षित रहें और अंग्रेजी शासन का अंत कर सकें.   अझमेरा के बख्तावर, खाज्या नायक और ट्ंटया भील की वीरता का उल्लेख करते हुए कहा कि इन लोगों ने अंग्रेजी शासन को चैन से बैठने नहीं दिया.    स्वाधीनता संग्राम में केवल पुरुषों का योगदान नहीं रहा, महिलाओं ने भी बढ़-चढक़र हिस्सेदारी की.    इस संदर्भ में उन्होंने रामगढ़ की रानी अवंतिबाई का उल्लेख करते हुए उनकी वीरता की कहानी को सप्रसंग सुनाया.   

सुपरिचित साहित्यकार प्रेमचंद के नाती एवं इतिहासकार श्री जयंत वर्मा ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि स्वाधीनता संग्राम का इतिहास दोषपूर्ण लिखा गया है ताकि भारत के युवा उनसे अपरिचित रहें .  अब समय आ गया है कि इतिहास का पुनरावलोकन किया जाए और स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को पुन: लिखा जाए .    श्री वर्मा ने कहा कि अनेक शहीदों के परिवार गुमनामी के शिकार हैं और उनके पास दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं है.  ऐसे परिवारों को तलाश कर उनका सम्मान किया जाना चाहिए.  जबलपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद पर जीत जाने के बाद गांधी और नेहरू के साथ असहमति के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.  इसके बाद सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया.  आजाद हिन्द फौज के असंख्य लोगों ने देश की स्वाधीनता संग्राम में प्राणों की आहुति दी.  लेकिन नेहरू ने इन्हें स्वाधीनता सैनिक मानने से इंकार कर दिया. 

कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अतिथि वक्ता श्री वर्मा का स्वागत किया और विनम्रता के साथ उनका परिचय दिया.  वेबीनार का संचालन डॉ. कृष्णा सिन्हा ने किया तथा आभार योगिक साइंस विभाग के  डॉ. अजय  दुबे माना.  कार्यक्रम के सह-संयोजक हेरिटेज सोयायटी के महानिदेशक श्री आशुतोष द्विवेदी ने विषय के बारे में जानकारी दी एवं विशेष वक्ता श्री जयंत वर्मा का स्वागत किया.  वेबीनार के सफल संचालन के लिए डीन डॉ. डीके वर्मा एवं रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा के साथ विश्वविद्यालय परिवार का सहयोग रहा. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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