जगन्नाथ पुरी से जुड़ा ये ख़ास रहस्य नहीं जानते होंगे आप, आज भी लोग हो जाते हैं हैरान

जगन्नाथ पुरी से जुड़ा ये ख़ास रहस्य नहीं जानते होंगे आप, आज भी लोग हो जाते हैं हैरान

प्रेषित समय :21:10:36 PM / Thu, Jul 8th, 2021

पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है. यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है.मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं. ... इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है. इस यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह निकाली जाती है!  और भी कुछ जानते हैं

वेद स्वरूप है यहां भगवान, भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं.तीनों ही देव प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं. हर बारह वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदले जाने का विधान है. पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से पुनः मूर्तियों की प्रतिकृति बना कर फिर से उन्हें एक बड़े आयोजन के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है. वेदों के अनुसार भगवान हलधर ऋग्वेद स्वरूप, श्री हरि (नारायण) सामदेव स्वरूप, सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति हैं और सुदर्शन चक्र अथर्ववेद का स्वरूप माना गया है.श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय (curve)आकार का है! 
शास्त्रों के अनुसार दुनिया के सबसे बड़े भगवान विश्वकर्मा जब मूर्ति बना रहे थे तब उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब वह मूर्ति बनाएंगे तब वह मंदिर का दरवाजा बंद रखेंगे किंतु अगर मंदिर में कोई भी प्रवेश करेगा तो वह वही मूर्ति बनाना छोड़ देंगे अर्थ कि उन्हें अकेले ही अंदर मूर्ति बनाना था वह नहीं चाहते थे कि कोई और अंदर आए उनके अलावा! एक दिन राजा को अंदर से कोई भी आवाज नहीं आई तो उन्हें लगा भगवान विश्वकर्मा मूर्ति बनाना छोड़ कर चले गए और राजा ने वह दरवाजा खोल दिया उसी समय मैं शर्त हार गए और भगवान विश्वकर्मा वहां से उठकर चले गए  और मूर्ति पूरी बनी थी नहीं तभी से वह मूर्ति वहां आधी ही है! और आज भी उस मूर्ति की पूजा करते हैं! 

मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण की लीला अवधि पूर्ण हुई तो वे देह त्यागकर वैकुंठ चले गए. उनके पार्थिव शरीर का पांडवों ने दाह संस्कार किया. लेकिन इस दौरान उनका दिल जलता ही रहा.ऐसी कथा है कि श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद पांडवों ने इनका अंतिम संस्कार कर दिया. लेकिन शरीर ब्रह्मलीन होने के बाद भी भगवान का हृदय जलता ही रहा तो हृदय को जल में प्रवाहित कर दिया. जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और उड़ीसा के समुद्र तट पर पहुंच गया!
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