अब झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ पर्षद के सदस्यों का मनोनयन कर सकेंगे मुख्यमंत्री, राज्यपाल की भूमिका हुई खत्म

अब झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ पर्षद के सदस्यों का मनोनयन कर सकेंगे मुख्यमंत्री, राज्यपाल की भूमिका हुई खत्म

प्रेषित समय :15:48:54 PM / Sat, Jun 5th, 2021

रांची. आदिवासियों की मिनी असेंबली मानी जाने वाली झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ पर्षद के सदस्यों का मनोनयन अब मुख्यमंत्री कर सकेंगे. इसमें पूर्व की नियमावली के मुताबिक राजभवन की भूमिका नहीं होगी. एकीकृत बिहार के वक्त का लागू नियम राज्य सरकार ने समाप्त कर दिया है और नई नियमावली की अधिसूचना जारी की है. इसमें सदस्यों के मनोनयन का अधिकार राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री को दिया गया है.

मुख्यमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं. पूर्व में इन सदस्यों के मनोनयन की अनुशंसा के लिए राजभवन को सरकार की तरफ से प्रस्ताव प्रेषित किया जाता था. हेमंत सरकार ने सदस्यों के मनोनयन के लिए दो बार नाम राजभवन को भेजे थे, लेकिन वहां से कुछ आपत्तियों और सुझावों के साथ इसे वापस कर दिया गया था.

जानकारी के अनुसार एक चेयरमैन, एक डिप्टी चेयरमैन, 18 सदस्यों का पर्षद होगा, मुख्यमंत्री पदेन चेयरमैन, जनजातीय कल्याण विभाग के मंत्री डिप्टी चेयरमैन होंगे. सीएम की गैरहाजिरी में बैठकों की अध्यक्षता डिप्टी चेयरमैन करेंगे.

बताया जा रहा है कि अब जनजातीय विधायक बन पाएंगे सदस्य, ऐसे विधायकों की संख्या 15 होंगी. इनकी सदस्यता विधानसभा की सदस्यता तक कायम रहेगी, बाकी तीन सदस्य जनजातीय समुदाय से होंगे, जिन्हें जनजातीय मामलों में रुचि, विशेष ज्ञान और अनुसूचित जनजाति कल्याण के क्षेत्र का अनुभव होगा. मुख्यमंत्री की सहमति इनके मनोनयन के लिए आवश्यक होगा और इनका कार्यकाल मुख्यमंत्री की सहमति से बढ़ेगा.

पर्षद का कार्यकाल पांच साल, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के प्रधान या सचिव अथवा कोई अन्य व्यक्ति जिसे सरकार की तरफ चुना जाएगा, वे पर्षद के सचिव होंगे. परिषद का सचिवालय डॉ राम दयाल मुंडा जनजाति शोध संस्थान, मोरहाबादी में होगा. इसके सुगम एवं प्रभावी संचालन के लिए संयुक्त सचिव अथवा समकक्ष स्तर के एक अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी.

राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास के लिए राज्यपाल परिषद की सलाह ले सकेंगे. सदस्यों को सरकार की तरफ से उनके कार्यों के एवज में किसी प्रकार का भुगतान नहीं, एक साल में कम से कम दो सामान्य बैठकें होंगी. हर बैठक की सूचना दस दिन पहले सदस्यों को देनी होगी, बैठक का कोरम पूरा करने के लिए अध्यक्ष सहित कम से कम सात सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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