महान संगीतज्ञ भी रहे हनुमान!

महान संगीतज्ञ भी रहे हनुमान!

प्रेषित समय :08:41:27 AM / Thu, Apr 29th, 2021

आर.डी अग्रवाल. हनुमान एक शक्तिशाली योद्धा होने के साथ-साथ महान संगीतज्ञ भी रहे! एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय नारद एवं तुम्बुरा में यह बहस छिड़ गयी कि कौन महान संगीतज्ञ है और इसका निर्णय करवाने के लिए जाते हैं विष्णु के पास। नारद और तुम्बुरा ने भगवान विष्णु से कहा- ’सम्पूर्ण ब्रहमांड में श्रेष्ठतम संगीतज्ञ हम दोनों में से कौन हैं? इसका निर्णय करिए!
विष्णु मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहते हैं- ’मैं संगीत के विषय में कुछ नहीं जानता लेकिन इस विषय के महान ज्ञाता ’हनुमान जी‘ हैं। आप उनसेे फैसला करवा लें। दोनों ऋषियों के पैरों तले जमीन खिसक गई और बोले- ’वही हनुमान! जिन्होंने लंका दहन किया। वे भला निर्णायक कैसे हो सकते हैं और वह भी संगीत के? असंभव है।‘
विष्णु भगवान समझाते हैं- आप लोग जाएं तो सही, हिमालय में मिलेंगे। जाने में हानि क्या है? बैकुंठ से चलते हैं हिमालय की ओर, यह विचार करते हुए कि चलो वानर है, कुछ मनोरंजन हो जायेगा क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि हनुमान एक अच्छे संगीतज्ञ हैं। विष्णु ने अपना पल्ला छुड़ाया। इन दोनों से कि कौन बैठे-ठाले झगड़ा मोल लिया जाए क्योंकि अगर कह देते हैं कि हनुमान तुम दोनों से भी महान हैं तो वे नाराज हो जाते!
अंततोगत्वा नारद व तुम्बुरा पहुंचते हैं हिमालय पर और यह देखकर आश्चर्य में डूब जाते हैं कि हनुमान जी मधुर स्वर में कुछ गा रहे हैं और इतने लीन हैं कि उन्हें दोनों आगंतुकों को होश ही नहीं हैं। नेत्रा बंद कर ईश-स्तुति के पद गा रहे हैं और अपने आप में मस्त हैं। दोनों ऋषियों ने करतल बजाते हुए हनुमान जी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
हनुमान जी आंखें खोलीं तो देखते हैं कि दोनों ऋषि नारद व तुम्बुरा खड़े हैं, कुछ तमतमाये हुए से। उन्होंने कहा - ’भगवान विष्णु ने हमें आपके पास भेजा है यह फैसला करने के लिए कि हम दोनों में से महान सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ कौन हैं? चूंकि हमारे पास समय नहीं है, इसलिए शीघ्र ही अपना निर्णय सुना दें।
हनुमान जी ने उनका ईर्ष्यालु व घमंडी स्वभाव देखा लेकिन चूंकि स्वयं हनुमान विनीत व सरल प्रकृति के थे, इसलिए कुछ न कहकर उन्होंने अपनी वीणा उठाई और वीणा के तार साधने लगे ताकि एक विशेष प्रकार की संगीत धुन बजाई जा सके! नारद और तुम्बुरा सोच रहे हैं। यह क्या हो रहा है? कैसे अज्ञानी हैं यह हनुमान? व्यर्थ में समय नष्ट कर रहे हैं।
वे दोनों इस प्रकार ऊट पटांग सोच रहे हैं और इतने में तो हनुमान जी ने सुमधुर राग छेड़ दिया वीणा के तारों पर और महान आश्चर्य घटित होने लगता है जिसके बारे में इन ऋषियों ने कल्पना भी नहीं की थी। कैसा आश्चर्य? हिमालय की बर्फ पिघल कर बह रही है और पहाड़ों से गुजरते हुए नीचे पानी की तेज धारा में प्रवाहित हो रही है।
नारद व तुम्बुरा यह दृश्य देखकर चकरा गये। हनुमान जी के सुमधुर संगीत के सामने हिमालय नत-मस्तक है, बर्फ बनकर बह रहा है। देखते-देखते नारद व तुम्बुरा उस जल में डूबने लगते हैं और हनुमान जी से प्रार्थना करते हैं बचाने हेतु।
हनुमान जी ने वीणा के तारों पर से अपनी अंगुलियां हटाई और संगीत थम गया तथा वह पानी पुनः बर्फ बन जाता है। तब हनुमान जी ने कहा- आप तो दो महान संगीतकार हैं। मैं तो एक साधारण सा विद्यार्थी हूं संगीत कला का। आप दोनों में से जो बर्फ को पिघलाकर पानी बना दें, वही श्रेष्ठ संगीतज्ञ होगा। अब क्या था? दोनों अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए वीणा के तारों पर कवायद करने लगे लेकिन अफसोस कि कोई भी संगीत द्वारा बर्फ को पिघला नहीं सके।
अब निर्णय स्वयं ही हो चुका था। दोनों हार चुके थे। संगीतज्ञ की सर्वश्रेष्ठता में और हनुमान ही उस समय के सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ हैं, ऐसा उन्होंने स्वीकार किया। सचमुच में शायद ही हनुमान की इस कला से लोगों को मालूम होगा कि हनुमान जी राम के परम भक्त होने के साथ-साथ महान योद्धा और महान संगीतकार भी थे।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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