सोनी टीवी पर एक संगीत की प्रतियोगिता का कार्यक्रम देख रहा था, सवाई नामक एक बालक राजस्थान का निवासी है, अपने माता-पिता के साथ कठपुतली का नाच गांव -गांव घूमकर दिखाता और अपनी रोजी रोटी कमाता था, वह भी इस कार्यक्रम में प्रतियोगी है. इस बालक ने असाधारण योग्यता के बल पर इस प्रतियोगिता में शीर्ष पर स्थान बनाया है. सवाई को लोगों का अभूतपूर्व प्यार भी मिल रहा है. सवाई बड़ा लोकप्रिय हो गया है. कल तक गांव -गांव कठपुतली का नाच दिखाने वाला बालक आज एक स्टार बन चुका है. उसकी जिंदगी बदल गयी है और उसका कठपुतली का खेल अब खतम हो चुका है, अब वो एक सिंगर है. गांव के चबूतरे के स्थान पर अब उसे एक भव्य मंच मिल गया है, जहाँ प्रकाश की चकाचौंध है, बड़े सितारों से मिलना जुलना आम बात हो गयी है. उसका सहज गांव वाला भोलापन धीरे धीरे एक प्रतियोगी में बदल रहा है. सवाई एक गंवार घुमक्कड़ बंजारे से एक सभ्य गायक बन चुका है.

इसी एपिसोड में उसके माता-पिता को भी उसका शो देखने बुलाया गया है जहाँ उसके कठपुतली नचाने से लेकर बेटे के शो में आने तक का उनका पूरा यात्रा वृतांत दिखाया गया. उनके गांव से निकलने से लेकर विमान की यात्रा व विमान में बैठने की उनकी प्रसन्नता, माता जी का बादलों के ऊपर उड़ने की कल्पना को साकार होते देखने की बात. मुझे सहज अपनी माता जी की प्रथम वायु यात्रा का स्मरण हो आया, घटना 1998 की है में उन दिनों जामनगर में कार्यरत था. माता जी की दिल्ली से अहमदाबाद की वह जीवन की पहली विमान यात्रा थी. मैं थोड़ा असहज था की पहाड़ मैं जीवन के लगभग 60 वर्ष बिताने के बाद कदाचित उन्हें हवाई यात्रा में असुविधा हो, परन्तु मेरी अपेक्षा के विपरीत उन्हें इस यात्रा में बड़ा आनंद आया, जैसे ही विमान बादलों के ऊपर पहुंचा उनके शब्द थे \"जीते जी स्वर्ग की यही कल्पना होगी शायद आज मैंने स्वर्ग देख लिया बेटा तुझे बहुत आशीष\". माता पिता के लिए ये अद्भुद क्षण होते हैं जब उन्हें उनके बच्चों से ऐसी कोई ख़ुशी मिलती है. ऐसा ही सवाई के माता पिता को देख कर यह सब स्मृति पटल पर उभर आया.

इन दृश्यों के अवलोकन से हम पाएंगे कि जब आपके बच्चे प्रगति के सोपान चढ़ रहे होते है तब वह पल माता-पिता के लिए गौरव के क्षण होते हैं, उन्हें अपना जीवन धन्य लगने लगता है, जीवन की कामना पूर्ण होते देख भगवान  के प्रति श्रद्धा बढ़ जाती है. सवाई एक बड़ा कलाकार बनेगा, शायद फिल्मों में गायन भी उसे मिले, उसे देश-विदेश, जगह-जगह से शो करने के लिए बुलाया जायेगा, उसकी व्यस्तता बढ़ती जाएगी व एक दिन ऐसा आएगा जब माता-पिता से मिलने का भी उसके पास समय नहीं होगा, उन्हें भी सायद मिलने के लिए महीनों या वर्षों इंतजार करना पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं.

सवाई ने जो पाया है वह दुर्लभ है परन्तु जो खोया है वह अमूल्य है. उसका गांव का जीवन जिसमे वह अपनी मिटटी, अपने लोगों के बीच उनकी खुशियों से अपनी खुशिया कमा लेता था, वो दिन भर गांव-गांव  घूम कर थकहार कर अपनी मिटटी की सुगंध की रोटियां खाने, मां  की गोद में सोना, पिता का प्यार दुलार, भाई बहनों का लाड़ सब खोकर उसने यह चमक दमक पायी है. अब उसे कपडे भी शो की मांग के अनुसार पहनने पड़ेंगे, वो स्वयं गाने पर हारमोनियम बजाता है पर अब उसे यह आदत छोड़नी होगी, विज्ञापन दाताओं के अनुसार, उनके मांग के गीत गाने पड़ेंगे, अपनी ख़ुशी के नही. क्या यही सफलता का मापदंड है कि आप एक शो के सेलेब्रिटी सिंगर बन जाएँ?  क्या कठपुतली का नाच दिखाने वाला बालक अपनी उस कला से सेलिब्रिटी नहीं बन सकता?  क्या उसे अपनी संस्कृति, परिवेश, खान-पान, रहन  सहन सब छोड़ने पर ही यह स्टेटस मिलेगा ?

शो में जब सवाई के माता पिता के खाने, रहने की तुलना हो रही थी तो वह क्षण मेरे लिए बड़ा असहज था, जिस प्रकार उनके झोपड़ीनुमा घर व किसी पांच सितारा होटल के रूम की तुलना की जा रही थी, बाजरे की रोटियों व फाइव स्टार मेनू से भोजन को तोला जा रहा था, ऐसा लग रहा था सादगी व प्राकृतिक वातावरण युक्त जीवन का उपहास हो रहा हो. ऐसे प्रस्तुति थी जैसे एक ग्रामीण का जीवन नरक है और हमने उसे स्वर्ग में पहुंचा दिया है. मुझे लगता है ऐसे तुलनात्मक प्रसंग ही ग्रामीण क्षेत्र से पलायन के प्रमुख कारण हैं , जहाँ महानगरों के जीवन की चकाचोंध को इस प्रकार से बढ़ा चढ़ा कर व ग्रामीण जीवन को तुच्छ दिखाया जाता है. लाखों युवा इस चकाचोंध से पतंगों की भांति उड़ आते हैं और गांव  का हरा भरा खुला वातावरण छोड़कर 4x 4 की बदबूदार, नालियों वाली झोपडी में अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं. हमने ग्रामीण जीवन की विधाओं को समाप्त करने में सहायता की है, खेती करना आज पिछड़ेपन का प्रतीक हो गया है, जबकि हमारे धर्म शास्त्रों में अन्नदाता को जीवनदाता का स्थान दिया गया है, परन्तु आज वह अन्नदाता तिरस्कृत है, भूखा मरने पर मजबूर है, आत्महत्या करने पर मजबूर है. दूसरी और गांव  से बड़े सपने लेकर निकला वह युवा जिसे भी सवाई जैसा जादुई चिराग मिलने की उम्मीद  है  किसी गन्दी बदबू भरी झोपड़ पट्टी में अपने दिन गुजारेगा यदि हम इन छोटी छोटी बातों की और ध्यान नहीं देंगे, अपनी कला का बाजार केवल महानगरों को बनाएंगे, नगरीय जीवन को श्रेष्ठ बताने का यह छद्म खेल बंद नहीं करेंगे स्थितियां अधिक गंभीर होती जाएँगी