षष्ठ भाव के कारक ग्रह मंगल एवं शनि हैं. षष्ठ भाव को अकारक भाव एवं इसके स्वामी को अकारक ग्रह माना जाता है परंतु सभी लग्न की कुंडली में इसके स्वामी को पूर्णतः अकारक नही माना जाता है. 

किसी भी कारक भाव के स्वामी इस भाव में विराजमान हो तो उनसे संबंधित सुख में कमी एवं परेशानी होती है.

अष्ठम एवं द्वादश भाव के स्वामी षष्ठ भाव में विराजमान हो तो विपरीत राज योग का निर्माण होता है परंतु सभी लग्न में इस नियम को लागू नही कर सकतें हैं.

षष्ट भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो शत्रु पक्ष पर प्रभाव होता है परंतु कई बार इसके कारण मामा के सुख में कमी हो जाती है या किडनी, रीढ़ की हड्डी, कमर दर्द, हर्निया, अंतड़ियों से संबंधित रोग भी हो जाते हैं.

केवल शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी प्रीति करने वाला होता है. या शांत तरीके से शत्रुता को समाप्त करने की कोशिश करता है.

कुंडली का षष्ठ भाव कन्या राशि एवसम बुध सभी पर पाप प्रभाव हो तो षष्ठ भाव से संबंधित अंगों में बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है.

यदि षष्ठेश का संबंध द्वितीय या एकादश भाव से हो जाए तो कई बार व्यक्ति कर्ज लेकर अपना काम चलाता है,परंतु यदि द्वितीय भाव या एकादश भाव का स्वामी षष्ठ भाव में विराजमान हो जाए तो ऐसे व्यक्ति को  कर्ज चुकाने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है या  हमेशा कर्जदार बने रहते हैं.

ऐसे व्यक्तियों को पैसे के लेन-देन में बहुत सतर्क रहना चाहिए.  यदि एकादश भाव का स्वामी षष्ठ भाव में विराजमान हो जाए तो ऐसे व्यक्ति को उसके मेहनत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है.  जहां भी पैसा उधार दे देते हैं वह वापस मिलने में बहुत परेशानी होती  है.

षष्ठ भाव से नौकरी के बारे में भी विचार किया जाता है. दशम भाव का स्वामी षष्ठ भाव में विराजमान हो जाए तो ऐसे व्यक्ति को नौकरी में सफलता प्राप्त होती है.  स्वयं का रोजगार करने पर सफलता प्राप्त नहीं होती है.

दशम भाव में डॉक्टर बनाने वाले ग्रह सूर्य,  मंगल से षष्ठेश का  संबंध हो जाए तो ऐसे व्यक्ति डॉक्टर बन सकते हैं.

षष्ठ भाव से संबंधित फलादेश करना बहुत कठिन कार्य है.

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