हिसार. क्रिकेटर युवराज सिंह द्वारा पिछले साल दलित समाज के लिए की गई अभद्र व अपमानजनक टिप्पणी के मामले में औपचारिक मुकदमा दर्ज न करना हरियाणा की हांसी पुलिस के लिए मुश्किल बनता दिख रहा है. इस मामले में हरियाणा पुलिस के तीन वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ ही अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम की धारा 4 के तहत जांच करने के आदेश दिए गए हैं. विशेष अदालत ने यह आदेश दिया है.

अधिनियम की धारा 4 के तहत जांच करने के आदेश दिए

हिसार स्थित एससी/एसटी एक्ट की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वेदपाल सिरोही ने शिकायतकर्ता एवं वकील रजत कलसन की याचिका पर मामले के जांच अधिकारी डीएसपी विनोद शंकर व मामले में जांच अधिकारी रहे व वर्तमान में बरवाला के पुलिस उपाधीक्षक रोहतास सिहाग एवं हांसी शहर थाना के तत्कालीन प्रभारी जसवीर सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम की धारा 4 के तहत जांच करने के आदेश दिए हैं.

यह कहता है प्रावधान

एससी/एसटी एक्ट की इस धारा के तहत किसी लोकसेवक (जो कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है) द्वारा अपने कर्तव्यों की अनदेखी किए जाने पर 6 माह से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है.

रोहित शर्मा से लाइव चैट में युजवेंद्र पर की थी अपमानजनक टिप्पणी 

दरअसल, नेशनल अलायंस और दलित ह्यूमन राइट्स के संयोजक रजत कलसन ने बीते 11 जनवरी को अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि बीते वर्ष 2 जून को उन्होंने युवराज सिंह के खिलाफ हांसी पुलिस को एक शिकायत दी थी, जिसमें उन्होंने मुकदमा दर्ज कर युवराज सिंह को गिरफ्तार करने की मांग की थी. युवराज सिंह पर आरोप है कि उन्होंने बीते साल 1 जून को एक लाइव चैट के दौरान अपने साथी क्रिकेटर रोहित शर्मा के साथ वीडियो कॉलिंग पर क्रिकेटर युजवेंद्र चहल के प्रति अभद्र व अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल किया था, जो कि वीडियो वायरल हो गया था तथा इसके बाद उपजे विवाद के चलते युवराज को माफी भी मांगनी पड़ी थी.

बिना मुकदमा दर्ज किए ही प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई

कलसन के अनुसार, हाल में ही एससी/ एसटी एक्ट में हुए संशोधन तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा पृथ्वीराज चौहान बनाम महाराष्ट्र सरकार में आए प्रावधान के अनुसार पुलिस को ऐसे मामले में एक्ट की धारा 18 ए के तहत पहले मुकदमा दर्ज करना होता है उसके बाद जांच शुरू की जाती है, लेकिन हांसी पुलिस ने इस मामले में उनकी शिकायत पर कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया गया और बिना मुकदमा दर्ज किए ही प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई.