नई दिल्‍ली. ई-वाणिज्य क्षेत्र की प्रमुख कंपनी Amazon ने एक बार फिर से बाजार नियामक Sebi को पत्र लिखा है, जिसमें नियामक से सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थता न्यायाधिकरण के गठन को देखते हुए उससे 24,713 करोड़ रुपये के फ्यूचर-रिलायंस इंडस्ट्रीज सौदे की समीक्षा को निलंबित करने का आग्रह किया गया है.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज की थी याचिका

सूत्रों के अनुसार अमेजन ने दिल्ली उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के समक्ष भी न्यायालय के एकल सदस्यीय पीठ के फैसले के खिलाफ 21 दिसंबर को अपील दायर की है. दिल्ली उच्च न्यायालय की एक सदस्यीय पीठ ने 21 दिसंबर को दिए अपने फैसले में अमेजन द्वारा निययामकीय प्राधिकरण को लिखे जाने से रोकने के फ्यूचर समूह की याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन इसके साथ ही नियामकों को सौदे पर निर्णय लेने के मामले में काम जारी रखने पर भी सहमति जता दी थी.

अमेजन नियामकीय प्राधिकरणों को सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र (एसआईएसी) के मध्यस्थता निर्णय के बारे में जानकारी दे रहा था. इस दौरान अदालत ने कई तरह की टिप्पणियां भी कीं. जिसमें उसने कहा कि अमेजन द्वारा भारतीय कंपनी की गैर-सूचीबद्ध इकाई के साथ कई तरह के समझौतों के जरिए फ्यूचर रिटेल पर नियंत्रण करने का प्रयास फेमा के एफडीआई नियमों का उल्लंघन होगा.

अमेजन ने पांच जनवरी को भेजे पत्र में सेबी को एसआईएसी में मध्यस्थता प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए मध्यस्थता न्यायाधिकरण के गठन के बारे में सूचित किया. इस स्थिति को देखते हुए अमेजन ने सेबी से उसके द्वारा की जा रही सौदे की समीक्षा को निलंबित करने और मामले में अनापत्ति नहीं देने का आग्रह किया है. पत्र में बाजार नियामक से भारतीय शेयर बाजारों को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है कि वह फ्यूचर रिटेल लिमिटेड को किसी तरह की अनापत्ति अथवा मंजूरी नहीं दें.

क्या है विवाद?

यह मामला अगस्त 2019 में फ्यूचर समूह की कंपनी फ्यूचर कूपंस लिमिटेड में 49 फीसदी हिस्सेदारी का अमेजन द्वारा अधिग्रहण किए जाने और इसी के साथ समूह की प्रमुख कंपनी फ्यूचर रिटेल में पहले हिस्सेदारी खरीदने के अधिकार से जुड़ा है. इस हिस्सेदारी के लिए अमेजन ने 1500 करोड़ रुपये खर्च किए थे. फ्यूचर रिटेल में फ्यूचर कूपंस की भी हिस्सेदारी है. इस संबंध में विवाद तब उत्पन्न हुआ जब फ्यूचर समूह ने करीब 24,000 करोड़ रुपये में अपने खुदरा, भंडारण और लॉजिस्टिक कारोबार को रिलायंस इंडस्ट्रीज को बेचने का समझौता किया.