सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है. मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है. आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति के बारे में रोचक तथ्‍य.

1. *मकर संक्रांति का अर्थ* : मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं. चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है.

2. *वर्ष में होती है 12 संक्रांतियां* : पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है. वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है. भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया

है जिसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति.

3. *इस दिन से सूर्य होता है उत्तरायन* : चन्द्र के आधार पर माह के 2 भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष. इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के 2 भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन. इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है. उत्तरायन अर्थात इस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है. इसे सोम्यायन भी कहते हैं. 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन. मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं.

भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं. यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया.

4. *फसलें लहलहाने लगती हैं* : इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है. खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं. खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं.

5. *संपूर्ण भारत का पर्व* : मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है. उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि कहा जाता है. मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है. पूर्वोत्तर भारत में बिहू नाम से इस पर्व को मनाया जाता है.

6. *तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान* : सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए, खाए और बांटे जाते हैं. इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं. उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है.

7. *स्नान, दान, पुण्य और पूजा* : माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है. इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है. इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं. इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है.

8. *पतंग महोत्सव का पर्व* : यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है. पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना. यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है. अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है.

9. *ऐतिहासिक तथ्‍य* : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं. महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है.

इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है. इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी. उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था. इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है.

10. *वार युक्त संक्रांति* : ये बारह संक्रान्तियां सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता. घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को, ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगल को, मन्दाकिनी बुध को, मन्दा बृहस्पति को, मिश्रिता शुक्र को एवं राक्षसी शनि को होती है. कोई संक्रान्ति

यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों.

11. *नक्षत्र युक्त संक्रांति* : 27 या 28 नक्षत्र को सात भागों में विभाजित हैं- ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा. उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी.

12. *देवताओं का दिन प्रारंभ* : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है. कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है. अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है. मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है. उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है.

13. *सौर वर्ष का दिन प्रारंभ* : इसी दिन से सौर वर्ष के दिन की शुरुआत मानी जाती है. हालांकि सौर नववर्ष सूर्य के मेष राशि में जाने से प्रारंभ होता है. सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होता है. 12 राशियां सौर मास के 12 माह है. दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है. सूर्य पर आधारित को सौरवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं. जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन. सौरवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है. नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है.

*गीता में लिखे हैं मकर संक्रांति के 3 रहस्य*

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करने को संक्रांति कहते हैं. वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 4 संक्रांति मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति ही प्रमुख मानी गई हैं. मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं. गीता में इसका क्या महत्व है जानिए 3 रहस्य.

1. *उत्तरायण में शरीर त्यागने से नहीं होता है पुनर्जन्म* : मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है. भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं. इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और

इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है. यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया. माना जाता है कि उत्तरायण में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है.

2. *देवताओं का दिन प्रारंभ* : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है. कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है. अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है. मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है. उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है.

3. *दो मार्ग का वर्णन* : जगत में दो मार्ग है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष. देवयान और पितृयान. देवयान में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं. पितृयान में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है....लेकिन जिनके शुभकर्म नहीं हैं वे उक्त दोनों मार्गों में गमन नहीं करके अधोयोनि में गिर जाते हैं.

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