प्रदीप द्विवेदी. देश के वरिष्ठ पत्रकार अजित वडनेरकर को बड़े-बड़े अखबारों में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला और उन्होंने अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन भी किया, क्योंकि उनके पास है- शब्दों का खजाना. इन्हीं शब्दों के खजाने को सजाते-संवारते उन्होंने उम्र से लंबा शब्दों का सफर तय कर लिया है. अजित वडनेरकर को शब्दों से खेलना अच्छा आता है, यही वजह है कि वे जो कुछ भी लिखते हैं, उसके अर्थ से अधिक भावार्थ का वजन होता है.

हिन्दी में लोकप्रिय शब्दों के डीएनए की जानकारी चाहिए तो अजित वडनेरकर के साथ शब्दों का सफर जरूर करें....

जिसका कुछ न जाता हो...  वह कौन?

▪️क्या आपको भी लगता कि 'अव्यय' का इस्तेमाल वाक्यों में जान डाल देता है ? हमारा मानना है कि अधिकांश अव्ययों में मुहावरेदार अर्थवत्ता भी होती है. किन्तु स्कूलों में व्यावहारिक हिन्दी कभी सिखाई नहीं जाती. इसके उलट रूढ़-कठिन परिभाषाएँ पढ़ाई जाती हैं. इन्हें समझना तो दूर रटना भी मुश्किल होता है.

▪️अब देखिए न, अव्यय का अर्थ है “जिसका कुछ व्यय न हो” और यही सबसे आसान परिभाषा भी है मगर गुरुजी रटवाते हैं- “अव्यय अविकारी शब्द हैं जो वाक्यविन्यास में रूप, वचन, लिंग, काल के सन्दर्भ में अपरिवर्तित रहते हैं.”

▪️ख़ैर, बात अव्यय में निहित मुहावरेदार प्रभाव से शुरू हुई थी. मिसाल के तौर पर ‘अब’, ‘जब’, ‘तब’, ‘किधर’, ‘उधर’, ‘हाँ’, ‘ना’, ‘अरे’, ‘चुनांचे’, ‘गोया’, ‘ताकि’, ‘भीतर’, ‘बाहर’, ‘अक्सर’, ‘यहाँ’, ‘वहाँ’, ‘अंदर’, ‘गोकि’, ‘लिहाज़ा’, ‘वगैरह’....

▪️बात यह है कि इन शब्दों का प्रयोग इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि इनका बरताव परिभाषा के मुताबिक होना है. दरअसल इनके गुण की वजह से इन्हें इस्तेमाल किया जाता है. यूँ देखें तो सभी अव्यय क्रिया-विशेषण ही हैं और इस नाते उनके प्रयोग से वाक्य में अनोखापन पैदा हो जाता है. मुहावरों का भी यही काम होता है.

▪️जहाँ तक लिंग, वचन आदि में परिवर्तन आदि न होने से अव्यय कहलाने की बात है, हिन्दी शब्दसागर में इसके अन्तर्गत दिए गए उदाहरण मेरी समझ से बाहर है. कोश कहता है, “व्याकरण में वह जिसका सब लिंगों, सब विभक्तियों और सब वचनों में समान रूप से प्रयोग हो”.

▪️यहाँ तक तो ठीक है पर इस सम्बन्ध में वह शिव, विष्णु आदि का उदाहरण भी देते हैं. शिव और विष्णु अगर लिंग से परे हैं तो पार्वती कौन हैं ? कमला कौन हैं? कुछ अर्सा पहले एक पत्रकार ने शीर्षक लगाया था- "चोरी गई शिवलिंग पकड़ी गई"

▪️अमरकोश के मुताबिक दरअसल ‘अव्यय’ शिव और विष्णु का नाम है जबकि हिन्दी शब्दसागर इनका उल्लेख मिसाल के तौर पर अर्थात बतौर उदाहरण करता है. दोनों में फ़र्क है. इस लिहाज़ से शब्द तो ब्रह्म है तब हर शब्द अव्यय हुआ.

▪️हिन्दी में एक मुहावरा है "क्या जाता है" अर्थात भाव कुछ व्यय न होने का ही है. अव्यय वह है, जिसका कुछ न जाता हो. यूँ ज्ञान बघारने में तो अपना भी कुछ नहीं जाता है.

Ajit Wadnerkar (Shabdon Ka Safar)

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