न्यूज-व्यूज. दिल्ली की सीमा पर नए कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है. जहां किसान इन क़ानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, वही केन्द्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह इन क़ानूनों में संशोधन कर सकती है, लेकिन कानून वापस नहीं लेगी.

आश्चर्यजनक बात यह है कि केन्द्र सरकार इसके पीछे आधार यह मान रही है कि ये कानून बहुमत प्राप्त सरकार ने बनाए हैं, मतलब- ऐसे कानून बनाना केन्द्र सरकार का अधिकार है.

सबसे पहली बात तो यह है कि सीटों के आधार पर भले ही केन्द्र में बीजेपी की बहुमत प्राप्त सरकार हो, लेकिन कुल वोट प्रतिशत के आधार पर क्या पचास प्रतिशत से ज्यादा वोट उसे मिले हैं?

यदि नहीं, तो वह हर फैसले पर देश की 130 करोड़ जनता की मुहर कैसे लगा सकती है?

कायदे से कुल पचास प्रतिशत से कम मत प्राप्त किसी भी सरकार को कृषि कानून जैसे बड़े निर्णय जनमत संग्रह से लेने चाहिएं.

इसके अलावा बहुमत किसी भी सरकार को एकतरफ़ा निर्णय लेने का नैतिक अधिकार नहीं देता है. जो लोग इन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, क्या वे देश के नागरिक नहीं हैं?

यह भी आश्चर्यजनक है कि इसे पंजाब-हरियाणा-राजस्थान के किसानों का आंदोलन करार दिया जा रहा है, तो क्या पंजाब-हरियाणा-राजस्थान भारत में नहीं हैं?

क्या केन्द्र सरकार सीटों के बहुमत के आधार पर केवल अपने समर्थकों के हित के निर्णय लेने को स्वतंत्र है?

जाहिर है, केन्द्र सरकार के बहुमत के अधिकार से भी ज्यादा जरूरी है- उसका देश के प्रति कर्तव्य, लिहाजा कृषि कानून जैसा कोई भी बड़ा निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए और यदि संसद में सर्वसम्मति नहीं बनती है, तो जनमत संग्रह के आधार पर ही निर्णय होना चाहिए!   

सबसे तेज हैं पीएम मोदी, क्योंकि कमजोर है जनता की याददाश्त!

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