प्रदीप द्विवेदी. केन्द्र में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से व्यक्तिवाद तेजी से बढ़ता गया है. यही वजह है कि इसके बाद केवल मोदी-मोदी के स्वर बुलंद होने लगे और बीजेपी के कई प्रमुख नेताओं, जिन्होंने इस व्यक्तिवाद को स्वीकार नहीं किया, उन्हें सियासी तौर पर किनारे कर दिया गया.

हालत यह रही कि पिछले राजस्थान विधानसभा चुनाव में- मोदी तुमसे बैर नहीं, महारानी की खैर नहीं, जैसे नारे बुलंद हुए.

यही नहीं, बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रदेश में प्रबल राजनीतिक प्रभाव को नजरअंदाज करते हुए, उनके विरोधियों को सियासी तौर पर प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया.

इस वक्त वसुंधरा राजे के सामने दो रास्ते हैं, एक- या तो वे एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान की तरह सियासी समर्पण कर दें या फिर अपना अलग पाॅलिटिकल प्लेटफार्म तैयार करें.

इन सियासी हालातों से नाराज वसुंधरा समर्थकों ने बीजेपी की मोदी-मोदी जिला इकाइयों के समानान्तर जिला स्तर पर अलग राजे-राजे टीमें बना ली हैं.

वसुंधरा राजे समर्थक मंच के नाम से बनाई गई इन टीमों में राजे के प्रबल समर्थकों को शामिल किया गया है.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के हवाले से खबरें हैं कि यह मामला पूरी तरह से आलाकमान की जानकारी में है.

इतना ही नहीं, बीजेपी पार्टी के समानान्तर इस तरह की टीमें बनाए जाने की शिकायत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं से की गई है.

ऐसा नहीं है कि बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच यह सियासी रस्साकशी अभी शुरू हुई है.

वसुंधरा राजे को सियासी तौर पर किनारे करने के लिए लंबे समय से प्रयास जारी है, परन्तु सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वसुंधरा राजे के सियासी कद का और पूरे राजस्थान में लोकप्रिय प्रभावी नेता बीजेपी के पास दूसरा नहीं है.

याद रहे, संपूर्ण राजस्थान में बतौर प्रभावी नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत भैरोसिंह शेखावत के बाद केवल वसुंधरा राजे ही हैं.

खबरें हैं कि वसुंधरा विरोधी नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व से कहा कि वसुंधरा राजे समर्थक मंच में शामिल लोगों का बीजेपी से कोई लेना-देना नहीं है, जबकि मंच के प्रदेश अध्यक्ष विजय भारद्वाज का कहना है कि मैं पिछले 15 साल से भाजपा में हूं. हम तो वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों की जानकारी आमजन तक पहुंचा रहे हैं, इससे राजस्थान में बीजेपी को फायदा होगा और वसुंधरा राजे तीन साल बाद फिर मुख्यमंत्री बनेंगी.

राजस्थान के इन्हीं सियासी हालातों के कारण बीजेपी का आपरेशन लोटस ढेर हो गया था. क्योंकि, वर्तमान में बीजेपी के 73 विधायक हैं, जिनमें से करीब तीन दर्जन विधायक वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक हैं, जिनके समर्थन के बगैर राजस्थान में सत्ता परिवर्तन संभव नहीं है. ये विधायक वसुंधरा राजे को तो मुख्यमंत्री स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन किसी और के लिए वे सक्रिय समर्थन नहीं देंगे.

जाहिर है, बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व के लिए राजस्थान में सियासी समाधान तलाशना आसान नहीं है, मतलब- अशोक गहलोत की मुख्यमंत्री की गद्दी सुरक्षित है, आपरेशन लोटस को सफल करना फिलहाल संभव नहीं है!

सबसे तेज हैं पीएम मोदी, क्योंकि कमजोर है जनता की याददाश्त!
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