बृहस्पति ग्रह देवताओं के देव गुरु है,वे रत्नो के भी देव है,अतः जैसे-देव गुरु ब्रह्स्पति का आध्यात्मिक ज्ञान और सभी संसारिक पद और विवाह तथा गृहस्थी जीवन से लेकर सन्तान और मोक्ष तक अधिकार है कालपुरूष  कि कुण्डली मे नवम  भाग्य स्थान और द्वादश भाव  मोक्ष के स्वामी है गुरु को  अच्छा भाग्य और धन, पद प्रतिष्ठा, विवाह और सन्तान और मोक्ष का कारक भी है.

समय पर अच्छे निर्णय लेने की क्षमता में मदद गुरू ही  करता है. जानते हैं किन जातको को पुखराज धारण करना चाहिए.

किसी कन्या या लड़के के निरन्तर विवाह में परेशानी या देरी  हो रही हो तो पुखराज धारण कर सकते हैं.

मीन लग्न हो या धनु राशि वाले या जिनकी जन्मकुंडली में धनु लग्न  या मीन लग्न हो तो धारण कर सकते हैं.

सभी प्रकार के एजुकेशन से जुड़े लोग और विद्यार्थियों कि शिक्षा,अध्यापकों के कार्यों में भी परेशानी आ रही हो तो इस रत्न को धारण कर सकते हैं 
जो जातक उच्च शिक्षा या हाई एजुकेशन और उनके सेंटर चलाने वालों जातको को भी पुखराज धारण करना चाहिए.

जो व्यक्ति  कानून और न्याय,राजनीती के क्षेत्र में कार्यरत हैं वे भी इस रत्न को धारण कर सकते हैं.

जो व्यक्ति आईएस,पीसीएस की तैयारी में लगे हैं, वे  भी पुखराज कर धारण सकते हैं.

आध्यात्मिक क्षेत्र मे  कथाकार ,वक्ता ,, चिकित्सकों, कर्मकांडी पण्डितों,  जो लोग धार्मिक या आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में है,भक्ति की साधना में लगे हुए हैं वे भी पुखराज धारण कर सकते हैं क्योंकि समस्त धर्म बृहस्पति का ही क्षेत्र है. आध्यात्मिक विकास पाने वालों को भी बहुत फायदा होता है.

जीनको पेट की बीमारियों,शुगर,कमजोर पाचन तंत्र,लिवर,किडनी और पीलिया, अल्सर, श्र्वास ,गले के मामले में भी धारण कर सकते हैं बशर्ते कुण्डली मे गुरू कि स्थिती को देखकर ही धारण करना चाहिए.

कुण्डली मे अच्छे शुभ भाव का स्वामी होने पर अगर अस्त हो तो धारण करना चाहिए.

ध्यान दे,,बृहस्पति कुण्डली मे दो भावो का स्वामी होता है इसलिए सोच समझ कर ही धारण करे अगर लग्न कुण्डली मे एक जगह शुभ दुसरी जगह मारकेश हो तो पुर्वार्ध और उतरार्ध को देखकर ही धारण करे.

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