मुंबई. नेटफ्लिक्स पर इस शुक्रवार रिलीज हुई फिल्म काली खुही में जहां परम्परा और रीति-रिवाज के नाम पर स्त्रियों के दमन, शोषण और अत्याचार को दिखाया गया है.

काली खुही वैचारिक रूप से झिंझोडऩे वाली फिल्म है, जिसे देखते हुए कई बार विरक्ति का भाव भी आता है कि आखिर एक स्त्री दूसरी स्त्री या नन्ही-सी जान के लिए इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है. कैसे कोई इतना क्रूर हो सकता है कि ठीक से आंखें खोलने से पहले ही मासूम उम्मीदों को काली खुही में फेंक दे, वो भी एक रीत के नाम पर और पूरा गांव उस रीत का आंख मूंदकर पालन करे. उसके खिलाफ एक आवाज़ भी ना करे.

इंसानियत के नाम पर कालिख बनी परम्परा के खिलाफ आखिर किसी पुरुष का ख़ून क्यों नहीं खौलता? बचपन में विरोध करने की हिम्मत नहीं थी, क्योंकि बातें समझ में नहीं आतीं, मगर बड़ा होने पर तो इसका मुखालिफत की जा सकती है. पुरुष की इस बेबसी पर चिढ़ भी होती है. हालांकि काली खुही में एक ही प्रमुख पुरुष किरदार दर्शन है, जिसे सत्यदीप मिश्रा ने निभाया है. दशज़्न के परिवार के जरिए ही काली खुही की काली करतूतें दिखायी गयी हैं.

काली खुही का मैसेज जितना स्ट्रॉन्ग है, उसे दिखाने का तरीका उतना ही लचर है. कहानी में कई ऐसे झोल हैं, जो कमजोर कर देते हैं. दर्शन का अजीबो-गरीब व्यवहार समझ से परे है. उसके व्यवहार में रहस्य और उत्तेजना की एक परत रहती है, मगर क्यों? इसका कहानी में कहीं स्पष्टीकरण नहीं है. टेरी समुंद्रा के निर्देशन में बनी फिल्म में शबाना आजमी, संजीदा शेख़, सत्यदीप मिश्रा आदि ने अभिनय किया है.