नारी और पुरुषों के समान अधिकारों की हमारे देश में लाख दुहाई दी जाती है. बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होने के जोर-शोर से कसीदे पढ़े जाते हैं, लेकिन हकीकत में कितना फर्क है, यह इस बार दुर्गा अष्टमी पर हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में देखने को मिला. यहां शूलिनी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. शनिवार को हवन यज्ञ में जब महिला आईएएस अधिकारी रितिका जिंदल ने हिस्सा लेना चाहा तो मंदिर के संचालकों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.परम्पराओं का हवाला देते हुए कहा गया कि मंदिर में महिलाओं को आने की अनुमति है, लेकिन यज्ञ करने की नहीं. उसमें सिर्फ पुरुष ही हिस्सा ले सकते हैं. कार्यकारी तहसीलदार होने के नाते मंदिर क्षेत्र रितिका जिंदल के कार्यक्षेत्र में आता है.

महिला IAS ने सिखाया नारी समानता का पाठ 

रूढ़िवादिता के नाम पर महिलाओं से भेदभाव को आईएएस रितिका जिंदल ने गंभीरता से लिया. आखिर देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा से जुड़ी उन जैसी अधिकारी के साथ ये व्यवहार हो सकता है तो आम महिलाओं के साथ कैसा होता होगा. जब पंडितों और मंदिर से जुड़े अन्य लोगों ने उन्हें हवन में हिस्सा लेने से रोका तो आईएएस अधिकारी ने उन्हें समानता का ऐसा पाठ पढ़ाया कि उन्हें बरसों से चली आ रही परम्परा बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा. आईएएस अधिकारी ने फिर हवन में हिस्सा भी लिया.हैरानी की बात है कि अष्टमी के दिन हम कन्या पूजन करते हैं, महिलाओं के सम्मान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है. रूढ़ियों और परम्पराओं को ढाल बनाया जाता है.रितिका जिंदल के मुताबिक वह सुबह मंदिर में व्यवस्थाओं का जायजा लेने गई थीं. मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और पूजा करने पर कोई रोक नहीं है. रितिका जिंदल ने बताया, “मंदिर में उस वक्त हवन चल रहा था, मैंने वहां मौजूद लोगों से हवन में भाग लेने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. उनका कहना था कि मंदिर में महिलाओं को हवन में बैठने की अनुमति नहीं है.” 

“मैं अधिकारी बाद में हूं, महिला पहले” 

यह सुनकर और ऐसी मानसिकता को जानकर आईएएस अधिकारी को धक्का लगा. उन्होंने सोचा कि नारी समानता को अगर हकीकत में बदलना है तो ऐसी विचारधारा बदलने की आवश्यकता है और इसे वे तभी बदल सकती हैं, जब वे इस रूढ़िवादी सोच का खुद विरोध करें. रितिका जिंदल ने कहा, “मैं अधिकारी बाद में हूं, पहले महिला हूं. इसीलिए वे नारी समानता के हक में आगे आईं, यह अधिकार हर महिला को मिलना चाहिए.” रितिका जिंदल ने कहा, “एक लड़की या महिला को हवन में हिस्सा नहीं लेने देना तार्किक नहीं है. इसका कोई तुक नहीं है. उन्होंने मुझे बताया कि ऐसा बरसों से होता आ रहा है. इस पर मैंने उनसे कहा कि हम आंखें मूंद कर किसी बात का इसीलिए समर्थन नहीं कर सकते कि वो बरसों से चलता आ रहा है. हमारा संविधान समान अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सुनिश्चित किया है.” 

आखिर बदलनी पड़ी परम्परा 

आईएएस अधिकारी ने हवन में हिस्सा लेने पर जोर दिया तो फिर पुजारियों और मंदिर के अन्य लोगों ने विरोध नहीं किया.   रितिका जिंदल ने कहा, मैंने उनसे कहा कि जो वो कर रहे थे वो गलत था, इसलिए मैंने हवन की सारी रस्मों में हिस्सा लिया. इसका ये मतलब नहीं कि आप लोगों ने मुझे हवन में बैठने के लिए इसलिए अनुमति दी कि मैं मंदिर की ऑफिस इंचार्ज हूं. सभी महिलाओं और लड़कियों को आज से हवन में बैठने की अनुमति मिलनी चाहिए.