पाकिस्तान की सियासत में मैं देख रहा हूं कि नवाज शरीफ एक धारदार और पुरअसर पोलिटिकल लीडर के रूप में तेजी से उभर रहे हैं.. यह अब तक की उनकी एक व्यापारी की तरह सियासत करने वाले नेता की छवि से एकदम जुदा है.. वह एकतरफा राजनीति में मूमेंटम लाने में कामयाब रहे हैं.. पाकिस्तान में जितनी की जा सकती है, वह उससे भी ज्यादा डिसरप्शन की पोलिटिक्स कर रहे हैं.. यह करो या मरो की तरह दिखती तो है, लेकिन आक्रामक स्पीच के पीछे उनकी सूझबूझ और रणनीति भी है.. नवाज शरीफ ने ठान लिया है कि वह हर उस वर्जित विषय पर बात करेंगे, जिसे छेड़ने से फौजी कियादत को तकलीफ होती है..

नवाज शरीफ ने सीधे आर्मी चीफ कमर बाजवा और डीजी आईएसआई फैज हामिद पर हमले किए और स्थापित कर दिया कि इमरान खान को रणनीति के तहत पालिटिकल इंजीनियरिंग के जरिए पीएम बनाया गया था.. फैज हामिद अगले आर्मी चीफ बनना चाहते हैं और अगर वह बन गए तो पाकिस्तान की सियासत से नवाज शरीफ परिवार का सफाया कर देंगे.. वहीं फौज की जितनी तनकीद अपोजिशन करेगा, इमरान उतने ही ज्यादा फौज का बचाव करेंगे.. लिहाजा इमरान की नाकामी का ढोल फौज पर फटेगा..

#Pakistan पाकिस्तान जैसे एक मुल्क में जहां फौज का दबदबा जिंदगी के हर क्षेत्र में हो और जहां समाज और प्रेस का एक तबका भी फौज को मुल्क से ऊपर प्राकृतिक घटना मानता हो, वहां नवाज शरीफ और मौलाना फजलुर्रहमान ने एक ऐसा तूफान खड़ा कर दिया है, जो अब पाकिस्तान को पहले जैसा तो बिलकुल नहीं रहने देगा.. कुछ न कुछ बदलकर मानेगा.. अगर वे सिविलियन बालादस्ती कायम करने में कामयाब हो जाते हैं, जो तकरीबन नामुमकिन है, तो पाकिस्तान की तारीख में अमर हो जाएंगे.. यह वह निरबंक सत्य होगा, जिसे एक न एक दिन तो प्रकट होना ही है..
नवाज शरीफ के भाई और भतीजे जेल में हैं और खुद उन्हें सजायाफ्ता होने के बाद भगोड़ा होने के इश्तिहार लगाए जा रहे हैं, इसलिए नवाज शरीफ के पास तो फौज ने कोई विकल्प नहीं छोड़े हैं.. इस स्थिति का फायदा नवाज शरीफ को यह हुआ कि उन्होंने सिविलियन बालादस्ती के तर्क को महंगाई से भी ऊपर रखा.. यानी उनका मुतालबा यह है कि साधारण लोगों की जिंदगी में आज जो भी समस्याएं आ रही हैं, उसकी असली वजह फौज है.. फौज का काम केवल सुरक्षा करना है.. पार्टियां बनवाना, चुनाव लड़वाना, दलबदल कराना, न्यायपालिका को प्रभावित करना फौज का काम नहीं है..
लिहाजा जो भी यथास्थितिवादी हैं और मौजूदा व्यवस्था से किसी न किसी तरह का फायदा उठाते रहे हैं, वे फौज के समर्थन में खड़े हैं.. उनका तर्क यह है कि पाकिस्तान में अगर कोई इदारा ठीक-ठाक काम कर रहा है और जिसकी ताकत से मुल्क खड़ा है तो वह फौज है..

कराची की घटना के बाद लोगों को लगा था कि नवाज शरीफ भी बिलावल भुट्टो की तरह घुटने टेक देंगे और कम से कम फौजी एस्टाब्लिशमेंट के खिलाफ हमले करने तो बंद कर ही देंगे.. लेकिन हुआ उल्टा.. नवाज शरीफ ने डीजी आईएसआई फैज हामिद पर अपना अटैक केंद्रित रखा.. आईएसआई की नाटोरियस छवि पाकिस्तान में भी है, लेकिन कोई खुलकर उस पर बात नहीं करता.. नवाज शरीफ करते हैं.. बिलावल कन्नी काट जाते हैं.. बिलावल पीडीएम में हैं भी और दूसरे दरवाजे से फौजी एस्टाब्लिशमेंट को सहला भी रहे हैं.. फौजी कियादत बिलावल से ज्यादा चालाक है.. वह बिलावल को राब्ते में रखना चाहती है, ताकि वह भी नवाज शरीफ पकड़ से बाहर का बागी न बन जाए.. इस तरह फौज पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट को कमजोर भी बनाकर रख सकेगी और इमरान का एक विकल्प भी तैयार रखेगी..