उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में यहां के समृद्ध इतिहास के चिन्ह बिखरे पड़े हैं. राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सितापुर में भी इतिहास के चिन्ह मौजूद हैं. लेकिन रखरखाव की कमी के कारण बर्बाद हो रहे हैं. अपनी नक्कशियों और बुलंद इमारत में एक इतिहास समेटे खैराबाद का मक्का दर्जी इमामबाड़ा व मस्जिद के गेट जमींदोज कर दिया गया. 

मस्जिद के इमाम हाफिज सिद्दीक ने बताया कि मस्जिद का दरवाजा काफी जर्जर हो चुका था, जिससे मस्जिद में आने वाले नमाजीयों कि जान को खतरा था इसलिए जर्जर हो चुके दरवाजे को गिर दिया गया है. इसकी जगह दूसरा दरवाजा बनवाया जा रहा है.

स्थानीय लोगों को कहना है कि, यह ऐतिहासिक धरोहर सुन्नी वक्फ की है, लेकिन इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया. वरिष्ठ नागरिक व पूर्व सभासद ओमकार नाथ कपूर ने बताया कि चूंकि इमामबाड़ा एक ऐतिहासिक धरोहर है जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के हाथों में है उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से यह दरवाजा गिराया गया है वह पूरी तरह अनुचित है.

अपने अतीत में सीतापुर कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए है. उन्हीं में से एक है यह खैराबाद का इमामबाड़ा भी. जिला मुख्यालय से महज 8 किमी दूर स्थित यह इमामबाड़ा, इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. बेहतरीन नक्काशी की बेजोड़ मिसाल बने इस बेहद खूबसूरत इमामबाड़े का निर्माण नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने सन 1838 में कराया था.

बुजुर्ग बताते हैं कि नवाब साहब ने अपनी शेरवानी व टोपी की बेहतरीन सिलाई से खुश होकर मक्का दर्जी के लिए यह इमामबाड़ा बनवाया था. अनूठी कलाकारी की झलक पेश करती यह ऐतिहासिक इमारत अब बदहाल होती जा रही है.  

शासन प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि पिछले दो दशकों से यहां कोई झांकने तक नहीं पहुंचा है. अपनी खूबसूरती के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध मुगल काल में बने इस भूलभुलैया की तुलना लखनऊ की भूलभुलैया से की जाती है. उपेक्षा से बदहाल होती जा रही भूलभुलैया पर फिलहाल कुछ लोगों का कब्जा है. आरोप है कि कुछ लोग इसकी बेशकीमती जमीन को हथियाने की फिराक में रहते हैं.

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