55 वर्षीय भावना जगवानी 1992 में गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में थीं, जब उन्होंने दवा की प्रतिक्रिया के कारण अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी.

जब वे 27 साल की थी तब उनके पैरों तले जमीन खिसक गई, जब डॉक्टरों ने घोषणा की कि वह अपने बच्चे को कभी नहीं देख सकती. लगभग 25 दिनों के बाद उनकी रोशनी वापस आ गई. लेकिन अंधेरे में बीते इन 25 दिनों ने उन्हें जीवन में एक नया उद्देश्य दे दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जगवानी, जिन्होंने 10 साल बाद जयपुर का पहला नेत्र बैंक स्थापित किया, कहती है, “जब डॉक्टरों ने मुझे बताया था कि मैं फिर से नहीं देख पाऊंगी, तो मुझे सदमा लगा. मैं बस फर्श पर बैठ कर ध्यान करती. यह एक बहुत दर्दनाक अनुभव था. लेकिन हर चीज में एक उद्देश्य होता है.” 2002 में, जगवानी ने राजस्थान की नेत्र बैंक सोसायटी (EBSR) की स्थापना की. कॉर्निया संग्रह के प्राथमिक उद्देश्य के साथ स्थापित, ESBR टीम पिछले 18 वर्षों में राजस्थान में लगभग 14,000 नेत्र दान सुनिश्चित करने में सक्षम रही है. अभियान के कारण, जगवानी ने 2014 में राजस्थान में कैडेवर ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट प्रोग्राम शुरू किया और एक गैर सरकारी संगठन, मोहन फाउंडेशन - जयपुर सिटीजन फोरम (एमएफजेसीएफ) की स्थापना की.

“मेरे बेटे के जन्म के तुरंत बाद, मैंने अपनी आँखें दान करने के लिए नेत्रदान केंद्र की तलाश शुरू कर दी थी. मैं जानती थी कि मेरे परिवार में या मेरे दोस्तों के अलावा किसी और की तुलना में आंखों की रोशनी का मूल्य अधिक है." यह तब था जब उन्हें पता चला कि जयपुर में कोई नेत्र बैंक नहीं था.

साभार: yourstory. dot com

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