बादशाह तो मैं कहीं का भी बन सकता हूँ

पर तेरे दिल की नगरी में हुकूमत का मजा कुछ और है

देश के जाने-माने पत्रकार एवं ख्याति प्राप्त मीडिया शिक्षक प्रो. संजय द्विवेदी को अखिल भारतीय जनसंचार संस्थान का महानिदेशक बनाये जाने का समाचार उमस में ठंडी हवा के झोंके जैसा बेहद सुखद है. अभी महीने पहले उनको माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  भोपाल का प्रभारी कुलपति नियुक्त किया गया है. इससे पहले वे दो बार  विश्वविद्यालय के कुलसचिव की जिम्मेदारी का निर्वहन कर चुके हैं.  

बहुमुखी  प्रतिभा  के धनी, सरस्वती के उपासक, मीडिया शिक्षण को अपनी पुस्तकों और शोध पत्रों के माध्यम से नई दिशा देने वाले संजय के आई आई एम सी में महानिदेशक बनाये जाने के फैसले की हर तरफ सराहना हो रही है.  अखिल भारतीय जनसंचार संस्थान (आई आई एम सी ) देश का प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान है जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है और बेहद कम समय में महानिदेशक के पद पर पर पहुँचकर संजय ने एक नया मुकाम हासिल किया है.

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले संजय बचपन से लेखन में सक्रिय रहे हैं और अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर अपने नाम के अनुरूप दिव्य दृष्टि कलम के माध्यम से देते रहे हैं. उनके पिता परमात्मानाथ द्विवेदी अपने दौर के कुशल शिक्षक और लेखक रहे हैं. संजय बस्ती के सुशिक्षित और सुसंस्कृत संपन्न परिवार से  हैं जिस कारण  अनुशासन और सुसंस्कारों के धनी उनके पिता के सभी संस्कार संजय में देखे जा सकते हैं. शिक्षण और लेखन में जिस एकाग्रता की जरुरत होती है, वह संजय को अपने पिता से प्राप्त हुई. उसी एकाग्रता ने संजय को लेखन और पत्रकारिता में अपनी पूंजी को बटोरने में समर्थवान बनाया. होनहार बिरवान के होत चिकने पात को सही मायनों में उन्होंने बचपन में ही साबित कर दिया, तब बालसुमन जैसी कई पत्रिकाओं का संपादन उन्होंने खुद के बूते कर दिखाया. इंटर की पढाई अपने गृह जनपद में पूर्ण करने के बाद स्नातक की पढाई लखनऊ  विश्वविद्यालय से पूरी करने के बाद वह भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि पहुँचते हैं जहाँ उनके पत्रकारिता के सपने को नई उड़ान मिलती है. यहीं रहते हुए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,  बाबूराव विष्णु पराड़कर, माधव राव सप्रे और माखनलाल चतुर्वेदी को पढ़ते पढ़ते वे उनके लेखन के मुरीद बन गए. भोपाल से पत्रकारिता का प्रशिक्षण लेकर वह दिल्ली, मुंबई, बिलासपुर, रायपुर जा पहुचे और अपनी कलम के जरिये समाज से जुड़े मुद्दों को आवाज देते रहे.

संजय जिस संस्थान में भी गए उसे अपने काम  और मेहनत के बूते स्थपित करने में कोई कसर  नहीं छोड़ी. छत्तीसगढ़ में स्वदेश को जमाने में उनकी भूमिका अहम रही वहीँ रायपुर में हरिभूमि और दैनिक भास्कर को बड़ा ब्रांड बनाने में उनके योगदान को कोई भूल नहीं सकता. रायपुर में जी 24 घंटे राज्य के पहले सेटेलाइट समाचार चैनल को भी पहले पायदान पर काबिज कराने में परदे के पीछे उनकी बड़ी भूमिका रही. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी अपनी पत्रकारिता की धमक दिखाई. टीवी न्यूज चैनल की इस पारी के बाद उन्होंने अकादमिक  दुनिया में कदम रखा. बिलासपुर में गुरु घासीदास विवि में अतिथि शिक्षक की नई बदली हुई भूमिका में नजर आये. कुशाभाऊ ठाकरे विवि रायपुर में पत्रकारिता  विभाग को न केवल अपने प्रयासों से स्थापित किया बल्कि  वहां कुछ समय संस्थापक विभागाध्यक्ष  के तौर पर भी काम किया जिसके बाद 2009 में उनका आगमन एशिया के एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय में होता है जिसे देश में पत्रकारिता का बड़ा देवालय कहा जाता है. माखनलाल पत्रकारिता विवि में आने पर संजय जनसंचार विभागाध्यक्ष बनाये जाते हैं. दस बरस  विभागाध्यक्ष के बाद वे कार्यवाहक कुलसचिव की भूमिका में नजर आते हैं. उसके बाद कुलसचिव की पूर्ण भूमिका में उनका नया अवतार होता है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के आने के बाद उनको कुलसचिव की  कुर्सी से हाथ धोना पड़ा. साथ ही उनके कई करीबियों को भोपाल से दूर कर दिया गया जिसके बाद भी वह विरोधियों के प्रति सदाशयता दिखाने से पीछे नहीं हटे. कर्मों में कुशाग्रता, सकारात्मक व्यवहार,मन में निश्चलता और हृदय में एकाग्रता,विनम्रता, स्पष्टवादी हंसमुख स्वभाव सहित तमाम नीति निपुणता उनकी विशेषता को सुन्दर बनाती है और यही अलहदा पहचान संजय  को अन्य प्रोफेसरों से अलग करती है .

संजय के लेखन में सत्यनिष्ठता, ईमानदारी  और भारतीय विचारधारा का विलक्षण समन्वय है. विनम्रता का भाव उनमें पूरी प्रतिष्ठा रखता है. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल में कुलपति के शीर्ष पद पर पहुँचने के बाद भी उनमें जरा सा भी घमंड नहीं आया है. वह अपने गुरुजनों, विद्यार्थियों और सहकर्मियों के साथ आज भी बड़ा आदरभाव रखते हैं और हर किसी से गर्मजोशी के साथ मिलते हैं.एक राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर उन्होंने दशकों से राजनीतिक विश्लेषण और लेखन किया और हर विषय पर खुलकर लिखकर अपनी बात रखी. उनको राजनीती के हर खेमे से तारीफ ही तारीफ मिली. संजय को चाहने  वाले आज हर राजनीतिक दल में मौजूद हैं जिनके साथ उनके घनिष्ठ सम्बन्ध आज तक बने हुए हैं. संजय ने जहाँ जहाँ नौकरी की  वहां उन्होंने अपने काम और व्यवहार से अपने  आसपास चाहने वाले प्रशंसकों की बड़ी फ़ौज खड़ी कर ली और सबका दिल जीत लिया. संजय एक दशक से भी अधिक समय तक अपने हजारों भाषाई नवयुवक पत्रकारों  की  भारी फ़ौज  तैयार कर चुके हैं. सबसे बड़ी बात यह है वो आज की युवा पीढ़ी के लिए किसी रोल माडल से कम नहीं हैं  . उन्होंने अपने छात्रों  को एक ही मंत्र दिया है  खूब  पढ़ो और खूब लिखो. संजय अपने पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों को हमेशा सच के साथ खड़े होने के गुर सिखाते हैं. साथ ही अपनी संवेदनाओं से समाज को देखने का नया नजरिया विकसित करने पर जोर देते हैं. वो मानते हैं मीडिया को मूल्यानुगत  होना चाहिए. वो पत्रकारिता  की पढाई  को डिग्री लेने का माध्यम भर नहीं, समाज के दुःख दर्द को संबल प्रदान करने वाला  बेहतरीन जरिया मानते हैं. सूचनाओं  के साथ वर्तमान दौर की  मिलावट को वो  पत्रकारिता के भविष्य के लिए ठीक नहीं मानते. एजेंडा आधारित पत्रकारिता के बजाय वह मूल्य और  तथ्य आधारित पत्रकारिता पर बल देने की बात दोहराते रहे हैं.

समाज के लोग  संजय द्विवेदी को  आज एक प्रतिबद्ध शिक्षक, एक कुशल  प्रशासक, विद्वान शिक्षाविद, भारतीय चिन्तक, गहन मनीषी के रूप में जानते हैं तो इसका कारण उनका लेखन है जिसने सामाजिक जीवन के व्यवहारिक  पक्षों को अपनी लेखनी के माध्यम से नया स्वर दिया है.  हमें  उनसे शिक्षा प्राप्त करने का अवसर तो नहीं मिला लेकिन उनके विशाल वटवृक्ष के नीचे जो भी आया उसे देश, दुनिया और समाज की बेहतर समझ हो  जाती है. संजय  कभी भी सिस्टम के गुलाम नहीं रहे  हैं. आमतौर पर यह कहा जाता है आज के दौर में गाइड जहाँ शोधार्थियों को परेशान करते हैं और अपने निजी काम उनके मार्फत करवाते हैं वहीँ शोध निर्देशन की भूमिका में वह शोधार्थियों के लिए हमेशा सहयोगी बने  रहे हैं. ऐसा उनके साथ शोध करने वाले लोग बताते हैं.

संजय की संवाद शैली उन्हें एक कुशल संचारक बनाती है. वह जब बोलते हैं तो आपको अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ मंत्रमुग्ध कर देते हैं और जब वह लिखते हैं तो बेहद संतुलित भाषा का इस्तेमाल करते हैं. अब तक देश के तमाम समाचार पत्र पत्रिकाओं में उनके समसामयिक, राजनीतिक, सामजिक विषयों पर हजारों लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं. इसके साथ ही तमाम विमर्शों में वह टेलीविजन चैनलों का अहम चेहरा भी बन चुके हैं. मीडिया विमर्श नाम की संजय की त्रैमासिक पत्रिका ने बीते 14 बरसों से शैक्षणिक जगत में एक ख़ास पहचान बनायी है जो मीडिया शोधार्थियों, अध्यापकों, विद्यार्थियों  लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है. समय समय पर विभिन्न विषयों पर इस पत्रिका के विशेषांक निकलते रहे हैं जिसे पढ़कर हर कोई ज्ञान के महासागर में गोते लगा सकता है.  समाज हित में साहित्यिक मशाल जलाते हुए संजय मीडिया विमर्श के बैनर तले कई बरस से साहित्यिक पत्रकारिता को संबल प्रदान करते हुए अपने दादा पंडित बृजलाल द्विवेदी की याद में अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह प्रतिवर्ष फरवरी में आयोजित करते रहे  हैं.   यही नहीं बीते बरस ही संजय मूल्यानुगत मीडिया अभिक्रम के अध्यक्ष बने हैं और  वर्तमान में  वह देश के तमाम विश्वविद्यालयों  की अकादमिक समितियों सदस्य  भी हैं.

संजय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,प्रभाष जोशी, अच्युतानंद मिश्र, एस पी सिंह पर किताब लिख चुके हैं,वहीँ मीडिया नया दौर नई चुनौतियां, मीडिया शिक्षा : मुद्दे और अपेक्षाएं, उर्दू पत्रकारिता का भविष्य, सोशल नेटवर्किंग : नए समय का संवाद, मीडिया भूमंडलीकरण और समाज, हिंदी मीडिया के हीरो, कुछ भी उल्लेखनीय नहीं, मीडिया की ओर देखती स्त्री, ध्येय पथ, राष्ट्रवाद, भारतीयता और पत्रकारिता, मोदी युग, उनकी कुछ चर्चित पुस्तकें रही हैं. अब तक वह 25 पुस्तकें लिख चुके हैं. इसी बरस उनकी नई पुस्तक  नए समय में अपराध पत्रकारिता सामने आई है जो खासी सुर्खियाँ  बटोर रही है. इसे  उन्होंने दिल्ली विवि की प्रोफ़ेसर  वर्तिका नंदा के साथ मिलकर लिखा है.  अपराध पत्रकारिता विषय में रूचि रखने वाले पाठकों और भावी  पत्रकारों के लिए यह किसी दस्तावेज से कम नहीं है.संजय की मानें तो हर युवा को जीवन में सपने देखने चाहिए और उन सपनों को पूरा करने के लिए दौड़ लगानी चाहिए साथ ही अपेक्षित परिश्रम भी करना चाहिए. वह मानते हैं अगर आप सपने देखते हैं और उनको पूरा करने के लिए आपके अन्दर जज्बा है तो वो अवश्य ही पूरे होते हैं.

आई आई एम सी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान को उनके जैसे विराट व्यक्तित्व का लाभ अवश्य मिलेगा और उम्मीद है वह अखिल भारतीय जनसंचार संस्थान को  को भाषाई पत्रकारिता का बड़ा केंद्र बनाने के साथ ही इसे  पत्रकारिता का बड़ा विश्वविद्यालय बनायेंगे जिससे यहाँ शोध गतिविधियों को नया आयाम मिलेगा. पत्रकारिता के शिक्षण की बेहतरी और पत्रकारिता के भविष्य को उज्जवल करने के लिए आप हमेशा की तरह कुछ नया करेंगे इसी आशा के साथ आपको इस महीने आ रहे जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं. आप  सदैव निरोगी और प्रसन्न रहें.  सत्यमेव जयते. जिस इंसान ने वास्तव में सत्यमेव जयते शब्द को अपने जीवन में अपना लिया हो और वह इन वाक्यों को ब्रह्मवाक्य समझकर जीवन में आगे बढ़ता है तो वास्तव में वह इंसान खूब तरक्की करता है. संजय द्विवेदी उसी इंसान का नाम है.

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