नई दिल्ली. केंद्र सरकार कई ऐसे अपराधों की परिभाषा को वर्तमान समय के हिसाब से बदलने की तैयारी में है. वैवाहिक दुष्कर्म, इच्छामृत्यु, यौन अपराधों और राजद्रोह से संबंधित कई अपराधों की परिभाषा पर फिर से विचार करने की तैयारी गृह मंत्रालय की ओर से की गई है. इसके लिए एक समिति का गठन भी किया गया है. 

वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण, यौन अपराधों को लिंग तटस्थ बनाने से लेकर इच्छामृत्यु को वैध बनाने और राजद्रोह की परिभाषा पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है. समिति ने 49 तरह के अपराधों को पुनर्विचार के लिए चुना है. इनमें से एक यह है कि क्या धारा 124ए के तहत देशद्रोह के अपराध की परिभाषा, दायरे और संज्ञान में संशोधन किए जाने की आवश्यकता है. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के कुलपति डॉक्टर रणबीर सिंह, की अध्यक्षता वाली समिति ने प्रमाणिक और प्रक्रियात्मक आपराधिक कानून और साक्ष्य कानून पर ऑनलाइन सार्वजनिक और विशेषज्ञों की सलाह मांगी है. 

इस समिति का गठन पांच मई को किया गया था. सिंह के अलावा समिति में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार, दिल्ली के जीएस बाजपेई, जबलपुर में धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति बलराज चौहान, वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी और दिल्ली जिला अदालत के पूर्व न्यायाधीश जीपी थरेजा भी शामिल हैं.

समिति हिंसक घटनाओं के लिए विशेष कानूनों की शुरुआत करने पर भी विचार कर रही है. जिसमें भीड़ हिंसा और ऑनर किलिंग (सम्मान की रक्षा में हत्या) शामिल है. दिसंबर 2019 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को सूचित किया था कि सरकार भीड़ जुटाने से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए आईपीसी और सीआरपीसी में आवश्यक संशोधन करने पर विचार कर रही है क्योंकि संसद के सदस्यों ने इसपर अंकुश लगाने के लिए अलग कानून बनाने का आह्वान किया था.

शाह ने तब ब्रिटिश युग की विधियों को संशोधित करने के लिए सरकार के संकल्प को भी रेखांकित किया था. आईपीसी और सीआरपीसी में बदलावों की सिफारिश सबसे पहले 2003 में मलीमठ समिति ने किया था जिसका गठन तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा किया गया था.

समिति ने मांगे हैं सुझाव

रणबीर सिंह समिति ने इस पर सुझाव मांगे हैं कि क्या अपराध करने के लिए आपराधिक जिम्मेदारी की न्यूनतम उम्र को बदलने की आवश्यकता है. 2015 में, कानून में 16 साल से अधिक उम्र के किशोर के साथ जघन्य अपराधों के मामलों में वयस्क के तौर पर व्यवहार करने और आजीवन कारावास या मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया था.

समिति सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के साथ कानूनों का सामंजस्य स्थापित करना चाहती है, जिनमें इच्छा मृत्यु और अपनी नाबालिग पत्नी के साथ पति के शारीरिक संबंध बनाने के मामले शामिल हैं. 2017 में एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि यद्यपि वैवाहिक दुष्कर्म कोई आपराधिक अपराध नहीं है, लेकिन अपनी नाबालिग पत्नी के साथ किसी व्यक्ति के यौन संबंध को दुष्कर्म माना जाएगा.

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